राधास्वामी!/- 14-11-2021-(रविवार)
आज सुबह सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-
मूरख मनुआँ भोग न छोड़े।
याहि कस समझाऊँ री।।१।।
बहु बिधि याहि समझौती दीनी।
देख भोग ललचाऊँ री।।२।।
भोग करे बहु बिधि दुख पावे।
फिर फिर मैं पछताऊँ री।।३।।
बिन गुरू कौन करे मेरी रक्षा।
उन चरनन में धाऊँ री।।४।।
मेहर करें या मन को सम्हालें।
तब निज घर में जाऊँ री।।५।।
सतसँग करूँ बचन उर धारूँ।
शब्द में सुरत लगाऊँ री।।६।।
राधास्वामी सतगुरु दीनदयाला ।
मैं तो तुमहीं नित्त मनाऊँ री।।७।।
(प्रेमबानी-3-शब्द-6-पृ.सं. 212, 213 )**
**राधास्वामी!
14-11-2021-आज सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-
सुरत पियारी सन्मुख आई।
प्रेम प्रीति गुरु हिये बसाई।।१।।
सतसँग बचन अधिक मन भायें ।
जग ब्योहार अति तुच्छौं दिखाये॥२॥
परमारथ का भाव बढ़ावत ।
छिन छिन चित चरनन में धावत॥३॥
गुरु सेवा लागत अति प्यारी ।
तन मन धन चरनन पर वारी॥४॥
निरखत रहूँ रूप गुरु सुन्दर ।
हरखत रहूँ बचन गुरु सुन कर॥५॥
किरपा कर गुरु दीन्हा भेदा ।
काल करम के मिट गये खेदा॥६॥
सुरत खैच धुन शब्द सुनाई ।
शब्द शब्द का भेद जनाई॥७॥
सहसकँवल चढ़ त्रिकुटी आई ।
जोत लखी गुरु रूप दिखाई॥८॥
दसम द्वार का पाट खुलाना ।
सेत चंद्र परकाश दिखाना॥९॥
भँवर गुफा होय सतपुर आई । सत्तपुरुष का दरशन पाई॥१०॥
अलख अगम के पार सिधारी ।
पुरुष अनामी रूप निहारी॥११॥
आरत का फल पाया पूरा।
राधास्वामी चरनन हो गई धूरा।।१२।।
(प्रेमबानी-1-शब्द-56-पृ.सं.219,220)*
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