तमन्ना यही है ... संस्कृत में
अभिलाषा इयमेव यावत् जीवेम।
चलेम भ्रमेम सोद्यमभवेम।।
पठेम लिखेम सुवाक् वा वदेम।
न कुर्याम कोsपीदृशं कार्यमेव।।
तवेप्सितविरुद्धं च यदपि भवेत्।
भवत: स्वीकृत्या: प्रतिकूलं भवेत्।।
*राधास्वामी !
21-11-2021-आज सुबह सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा पाठ:-
आज गुरु आये जीव उबारन ।
आरत उनके सन्मुख वारन॥१॥
दीन हीन हिये थाल सजावन ।
बिरह अनुराग की जोत जगावन॥२॥
चरन कँवल गुरु प्रेम बढ़ावन ।
दृढ़ परनीत हिये बिच लावन॥३॥
सुरत शब्द में नित्त लगावन ।
नभ की ओर सुरत मन धावन॥४॥
धुन घंटा और संख बजावन ।
अद्भुत रूप जोत दरसावन॥५॥
त्रिकुटी जाय सुरत हुई पावन ।
हंसन संग मानसर न्हावन॥६॥ भँवरगुफख मुरली धुन गावन ।
सतपुर सुनी धुन बीन सुहावन॥७॥
राधास्वामी चरन धियावन।
मेहर दया उन छिन छिन पावन।।८।।
(प्रेमबानी-3-शब्द-4-पृ.सं. 219)**
🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿🙏🏿
No comments:
Post a Comment