Monday, March 2, 2020

सत्संग के उपदेश बचन सार प्रेमपत्र



**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज




प्रस्तुति - ममता शरण, दीपा शरण,
 सुनीता स्वरुप, रीना शरण



- सत्संग के उपदेश-
भाग-2
 कल का शेष:


- इसी तरह ऐसे लोग, जो दुनिया के सामान से बेपरवाह हो, ज्यादा तादाद में ना मिलेंगे। यह दौलत उन्हीं प्रेमियों को हासिल होती है जिन्हें रुहानी आनंद मिल जाता है । जैसे-जैसे मिस्री मिलने पर इंसान गुड़ को फेंक देता है ऐसे ही प्रेमी परमार्थी रूहानी सुरूर के हासिल होने पर दुनिया के भोग विलास से मुंह फेर लेता है क्योंकि रूहानी सुरूर किसी को तभी हासिल होता है जब वह अपने मन व इंद्रियों को बस में लाकर अपनी तवज्जुह अंतर में जोड़ने लगे । इसलिए दुनिया के सामान से बेपरवाह वे ही मनुष्य हो सकते हैं जिन्होंने एक अरसे तक मन व इंद्रियों को दमन करने और सुरत यानी तवज्जुह को अंतर में जोड़ने का साधन किया हो।  अगर यह सब बयानात दुरुस्त है तो निकालना मुश्किल ना होगा कि सच्चा बेगरज होना हर किसी का काम नहीं है।।                           अब रहा परोपकार की काबिलियत का सवाल। यह भी मुआमला ज्यादा आसान नहीं है । जैसे देखिए कितने लोग स्वराज्य हासिल करने की कोशिश में लगे हैं। यह मान सकते हैं कि सच्चे दिल से समझते हैं कि स्वराज्य हासिल होने से उनके मुल्क को भारी फायदा पहुंचेगा मगर दर्याफ्ततलब यह है कि उनमें कितने भाई स्वराज्य की प्राप्ति का अधिकार रखते हैं । अक्सर लोग बावजूदेकि न कोई खास तजवीजें रखते हैं और ना कोई तजुर्बा , लेकिन तो भी दूसरों को रास्ता दिखलाने के काम में मशरूफ है। अगर कोई शख्स गरीब बीमारों की दवा इलाज किया चाहता है तो अव्वल उसे दवा इलाज का इल्म खूबी हासिल करना चाहिए । इल्म हासिल किए बगैर बीमारों की दवा इलाज शुरू कर देना परोपकार नहीं है बल्कि गरीबों के प्राण लेना और अपनी मूर्खता दिखलाना है । इसलिए हमारा ख्याल नादुरुस्त नहीं है कि सच्चा परोपकार हर किसी के बस की बात नहीं है। सवाल हो सकता है कृपया भूखे प्यासे को भोजन या पानी देना परोपकार नहीं है? क्या गरीबों के लिए अस्पताल या स्कूल कॉलेज खोलना परोपकार नहीं है?  जवाब यह है कि जरूर यह सब काम परोपकार से संबंध रखते हैं मगर इन कामों का सरअंजाम देना घटिया दर्जे का परोपकार है ।घटिया दर्जे का इस मायने में कि यह काम ऐसे नहीं है कि इनके सरअंजाम देने से किसी को उच्च गति प्राप्त हो जावे या इनकी खातिर भजन ध्यान या अंतरी साधनों की कमाई तर्क या मुल्तवी कर दी जावे। हमारा मनुष्यजन्म तभी सफल होगा जब हमें सच्चे मालिक का दर्शन नसीब होगा ।यह नेमत दान, पुण्य या अस्पताल, स्कूल व कॉलेज खोलने से हासिल नहीं हो सकती। इसके हासिल करने के लिए सच्चे सतगुरु की शरण और अंतरी साधनों की कमाई जरूरी है ।

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🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज

- रोजाना वाक्यात-
 25 जुलाई 1932 -


 सोमवार ड्रामा स्वराज्य की फिल्म बनवाने के लिए बहुत से भाई जोर दे रहे हैं।  चुनांचे आज गवर्नमेंट की खिदमत मे एक दरखास्त प्रेषित की गई ।अगर गवर्नमेंट ने ऐतराज न किया तो ड्रामा माह दिसंबर तक फिल्म किया जा सकता है।।               

  शाम के वक्त यंग मैन एसोसिएशन के तत्वाधान में डॉक्टर किशोरीलाल, चौधरी राय बहादुर ओ०बी० ई० असिस्टेंट डायरेक्टर ,पब्लिक हेल्थ डिपार्टमेंट का लेक्चर हुआ । विषय था तंदुरुस्ती, शरीर की सफाई इत्यादि। काबिल लेक्चरर ने पास्चराइस्ड दूध के फायदे बयान करते हुए जोर दिया कि कम से कम मार्च से अक्टूबर तक हर शख्स को डेरी से लेकर पास्तराइस्ड दूध इस्तेमाल करना चाहिए। इसके अलावा नहाने धोने के मकामात, खेतों कुओं, घरों नालियों वगैरह की सफाई के मुतअल्लिक़ मूल्यवान मश्वरे दिये गये। हम लोग पुदीना, गाजर, मूली, बिला लिहाज इह ख्याल के कि वह कैसे पानी से सींचे गए थे इस्तेमाल कर लेते हैं। आमतौर पर यह चीजें गंदे पानी से सींची जाती है ऐसी सूरत में उन्हे परमैगनेट ऑफ पोटाश के पिनी से धोना जरूरी है वरना आशंका है कि उनके द्वारा हमारे जिस्म में बीमारी के कीटाणु दाखिल हो। अफसोस है कि वावजूद हर तरह सावधान रहने की कोशिश करते हुए इस मामले में हम लोग भी फेल हो गए ।

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

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**परम गुरु महाराज- प्रेम पत्र-

कल से आगे

-जो कोई ऐसा मान रहे की मालिक सब जगह मौजूद है फिर जाना आना कहां है, यह बात दुरुस्त नहीं है क्योंकि खुद जीव यानी सुरत इस कदर परदो या गिलाफों में गुप्त छिपी है कि जब तक वह ना फोडे जावे तब तक अपना रूप नजर नहीं आवेगा और फिर वहां से सच्चे मालिक यानी भंडार का दर्शन और भी दूर है और कितने ही पर्दों में गुप्त है। इसी तरह यह भी पर्दे फोड़ कर दो मुकाम तक पहुंचना हो सकता है । इन लोगों की जब नजर पड़ेगी तो बाहर के पर्दे या गिलाफ पर, जिसको स्थूल शरीर कहते हैं । और यह हर दम बदलने वाला और नाशवान है।  फिर  उनको सत्तपद  का दर्शन कैसे मिल सकता है ?

वेदांत शास्त्र कहता है कि अन्नमय स्थूल शरीर, पांच कर्मेद्रियाँ और प्राण , पांच ज्ञानेंद्रियां और मन,  और पाँच ज्ञानेंद्रियाँ और बुद्धि, मन बुद्धि व इंद्रियों के परे आत्मा का बासा है। इन पर्दो को फोड कर जीव यानी सुरत का दर्शन हो सकता है ।और जब इन पदों को फोड़ने का अभ्यास कुछ भी नहीं किया जाता तो इन बातों का कहना और सुनना बेफायदा है, क्योंकि सिर्फ बातों से मुक्ति या सच्चा उद्धार नहीं हो सकता। देखो किसी दरख़्त के बीज को कि उसकी रूह कितने पर्दों यानी तहों या छिलकों में और फिर उसके मगज् के अंदर किसी जगह में गुप्त छिपी हुई है, जहां से कि वक्त उगने के कुल्ला फूट कर धार रुप होकर निकलता है । इसी तरह सब शरीरों में  रूह यानी  जीव या सूरत कितने ही पर्दो में पोशीदा है और उसका दर्शन सब पर्दे हटाकर अंतर के चैतन्य यानी रूह की दृष्टि से हो सकता है। बाहर की रचना में यह एक एक परदा एक एक मँढ्डल के साथ समानता रखता है । सो जब तक भेद इन परदों का दरियाफ्त करके और उनके पार जाने की जुगती का अभ्यास नहीं किया जाएगा, तब तक रास्ता तय होगा और जब तक सच्चे मालिक का दर्शन मिल सकता है। राधास्वामी मत में भेद इन परदों का और जुगत उनके तय करने की साफ साफ बताई जाती है और उसका अभ्यास करने से आहिस्ता आहिस्ता सुरत यानी रूह के मुकाम से ब्रह्मांड की तरफ की सरकती जाएगी और जिस कदर उस तरफ को चलती जावेगी उसी कदर उसको अंतर में आनंद और रस मिलता जाएगा और देह और संसार के दुख सुख और भोगों की चाह का असर कम होता जाएगा।

क्र मश:

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**




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