प्रस्तुति - स्वामी शरण /
दीपा शरण /सृष्टि - दृष्टि
**परम गुरु हुजूर महाराज
- प्रेम पत्र भाग -1-( 12)-
【 भेद नाम का】
:- नाम की दो किस्में है- धुन्यात्मक और वर्णात्मक। धुन्यात्मक उसको कहते हैं जिसकी धुन घट घट के आकाश में आप ही आप हो रही है और वर्णनात्मक जो जबान से बोला जावे और लिखने में आवे। वर्णनात्मक नाम धुन्यात्मक नाम का प्रकट करने वाला है, यानी उसका स्वरूप है, जिस कदर कि बोलने में आ सकता है ।। धुन्यात्मक नाम के तीन दर्दे हैं, उसी मुआफिक जैसे की कुल रचना के संतों में तीन दर्जे मुकर्रर किए हैं ।पहले दर्जे का धनात्मक नाम वह है कि जो निर्मल चेतन देश यानी संतो के देश में प्रकट हो रहा है ।और वह राधास्वामी नाम है कि जो कुल और सच्चे मालिक का नाम है और जो आदि धार के साथ अनामी पुरुष से प्रगट हुआ जिसकी धुन ऊंचे से ऊँचे देश में, जिसको राधास्वामी धाम कहते हैं, आप ही आप हो रही है। इस नाम के अर्थ यह है कि राधा आदि सुरत या आदि धुन या आदि धारा का नाम है और स्वामी कुल मालिक जिसमें से कि वह धुन या धारा निकली है । दूसरा नाम इसी दर्जे में सत्तनाम सत्तपुरुष है , जहां से दो धारें रे निरंजन और जोत की निकली और जिन्होंने नीचे उतर कर ब्रह्मांड की रचना करी। क्रमशः🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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