प्रस्तुति - आत्म स्वरूप /
सुनीता स्वरुप/ मेहर स्वरूप
*परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज
- सत्संग के उपदेश -भाग 2
-(36)-
【 भजन के लिए समय मुकर्रर करने की जरूरत क्यों है?】-
एक प्रेमी जन का प्रश्न है कि भजन किस वक्त करना चाहिए । हिंदू भाई दो काल या त्रिकाल संध्या करते हैं, मुसलमान भाई पांच वक्त नमाज पढ़ते हैं, ऐसे ही इसाई भाई मुकर्रर वक्तों पर मास पढ़ते हैं और सुमरनी फेरते हैं और सिख भाई सुबह व शाम के वक्त मुकर्ररा वाणी का पाठ करते हैं इसलिए सवाल होता है कि क्या मालिक की याद के लिए कोई खास वक्त मुकर्रर करना लाजमी है ।। इस सवाल का जवाब यह है कि सुबह का वक्त अभ्यास के लिए सबसे योग्य है क्योंकि उस वक्त आमतौर पर दुनिया खामोश होती है और रात भर आराम करने पर चुपचाप रहने से बदन में थकान नहीं रहती। खाना हजम हो चुकने से मैदा हल्का रहता है और दिमाग काफी अर्सा आराम में रहने से दुनिया के झमेलों की याद से आजाद होता है लेकिन इसके यह मानी नहीं है कि किसी दूसरे वक्त अभ्यास करना ही नहीं चाहिए । क्योंकि अभ्यास खास किस्म की अंतरी हालत पैदा करने की गरज से किया जाता है और दुनिया के कम काज का असर हमारे जिस्म व मन को अंतरी हालत की प्राप्ति के नाकाबिल बना देता है इसलिए रात को 5-7 घंटे दुनिया से अलग रहने पर हम कुदरतन अभ्यास के लिए किसी कदर काबिल हो जाते हैं लेकिन अगर कोई शख्स दिन में कामकाज करते हुए भी अपनी तबीयत व तवज्जह पर काबू रखें और वक्तन फवक्तन प्रेम अंग में आकर तवज्जुह अंतर्मुख जोड़ता रहे तो ऐसा शख्स दिनभर अभ्यास में गुजार सकता है। क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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