प्रस्तुति - संत शरण /
रीना शरण /अमी शरण
*परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -रोजाना वाक्यात- 7 अगस्त 1932:- रविवार- तीसरे पहर विद्यार्थीयों के सत्संग में आज फिर कुरान मजीद से कुछ हिस्सा पढ़ा गया ।पैगंबर साहब के लिए पीढियों से मूर्तिपूजक व मामूली समझ बूझ वाले अरबों में को खुदा के प्रकाश का अस्तित्व का अनुमान कराना नेहा एक मुश्किल काम था मगर सूरत नूर में जिस खूबसूरती से यह विषय बयान हुआ है निहायत काबिले तारीफ है। अब विद्यार्थी अमृत बचन पढ़ना चाहते हैं लेकिन चूँकि यह निहायत मुश्किल किताब है इसलिए मशवरा दिया गया कि राधास्वामी मत संदेश पढी जावे। उन्होंने मंजूर कर लिया लेकिन बहुत क्रोध के अधीन। काश हमारे संस्थाओं से जो विद्यार्थी निकले उन्हें मालूम रहे कि दुनिया में जितने सच्चे रसूल ऋषि व संत सबके सब सच्चाई का उपदेश करते थे । सबकी गरज इंसानों को लाभ पहुंचाना थी और सब की तालीम जानने को दूर करने के लायक है।। क्षत्रिय महासभा के एक उपदेशक साहब अपने साथियों के साथ तशरीफ लायें। बातों बातों में क्षत्रियों की बहादुरी का चल पड़ा। उन्होंने फरमाया -देखो हमारे क्षत्रिय मुस्कुराते हुए जेल जाते हैं और जेल की तकलीफ उठाते हैं। जवाब दिया गया बेहतर होता कि वह जेल में रहकर वक्त नष्ट करने के बजाय किसी हस्तकलाँ को उन्नयन देते या कोई अविष्कार करते। टॉडस राजस्थान व कहानियां-ए-हिंद में राजपूत रानियों के बडे दर्दनाक किस्से दर्ज है और लोग गर्व के साथ कहते हैं कि हजारों राजपूत रानियों ने मुसलमानों के कब्जे में जाना मंजूर करने के बजाय अपने स्वयं को जलाकर खाक कर दिया उन रानियों की कुर्बानीनियों में कतई शक नहीं है लेकिन उन्होंने सख्त कमजोरी दिखलाई। बेहतर होता कि अपने मर्दों की तरह आक्रमणकारियों से लड़ती हुई हलाक होती। मरना तो उन्हे था ही लेकिन अगर सौ पचास दुश्मन मारकर मरती तो ज्यादा लाभकारी व प्रभावशाली होता। यह दुरुस्त है कि जान कुर्बान कर देना हर किसी के बस की बात नहीं है लेकिन व्यर्ध जान गवाँ देना बहादुर का चिन्ह नहीं है। अगर आप कोई ऐसा काम करें जिससे दूसरों को जबर्दस्त फायदा पहुंचे या खुद आपका भला हो और उस सिलसिले में आपके जान का खतरे में पढ़ना आवश्यक हो और आप खुशी से अपनी जान खतरे में डाले और जान चली जाए तो बिना शुबह आप बहादुरी करते हैं और आप सच्चे बहादुर है। इसके अलावा गौर करना चाहिए कि हर वक्त एक ही कसम के हथियारों से लड़ाई नहीं लड़ी जाती । हिंदुस्तान की मौजूदा मुसीबतों का कारण तालीम और योग्यता की कमी है। इस वक्त क्षत्रियों के जिम्में फर्ज है कि इस दिशा में कदम बढ़ा कर बहादुरी दिखलावें। रात के सतसंग में बहुत देर तक सन्यासी साहब के सवालात के जवाबात दिए गए लेकिन उनको इत्मीनान नहीं हुआ। उनको भी समझ में नहीं आता कि वेदों के बाहर भी कोई इल्म हो सकता है।🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻*
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