Tuesday, March 3, 2020

ब्रह्मचारी और निराहारी का रहस्यभेद




प्रस्तुति- दिनेश कुमार सिन्हा

*सुन्दर और दुर्लभ सत्य कथा*
   
एक बार गोपियो ने श्री कृष्ण से कहा की 'हे कृष्ण हमे अगस्त्य ऋषि को भोग लगाने जाना है, और ये यमुना जी बीच में पड़ती है अब बताओ कैसे जायें?
भगवान श्री कृष्ण ने कहा की जब तुम यमुना जी के पास जाओ तो कहना की, हे यमुना जी अगर श्री कृष्ण ब्रह्मचारी है तो हमे रास्ता दे,
गोपियाँ हंसने लगी की लो ये कृष्ण भी अपने आप को ब्रह्मचारी समझते है, सारा दिन तो हमारे पीछे पीछे घूमता है, कभी हमारे वस्त्र चुराता है कभी मटकिया फोड़ता है ...
खैर फिर भी हम बोल देगी ।

गोपिया यमुना जी के पास जाकर कहती है, हे यमुना जी अगर श्री कृष्ण ब्रह्मचारी है तो हमे रास्ता दे, और गोपियो के कहते ही यमुना जी ने रास्ता दे दिया,

गोपिया तो सन्नन रह गई ये क्या हुआ          कृष्ण ब्रह्मचारी ???????????

अब गोपिया अगस्त्य ऋषि को भोजन करवा कर वापिस आने लगी तो अगस्त्य ऋषि से कहा की अब हम घर कैेसे जाये यमुना जी बीच में है,

अगस्त्य ऋषि ने कहा की तुम यमुना जी को कहना की अगर अगस्त्य जी निराहार है तो हमे रास्ता दे,

गोपियाँ मन में सोचने लगी की अभी हम इतना सारा भोजन लाई सो सब गटका गये और अब अपने आप को निराहार बता रहे है???????????

गोपिया यमुना जी के पास जाकर बोली, हे यमुना जी अगर अगस्त्य ऋषि निराहार है तो हमे रास्ता दे और यमुना जी ने रास्ता दे दिया ,

गोपिया आश्चर्य करने लगी की जो खाता है वो निराहार केसे हो सकता है ???????????

और जो दिन रात हमारे पीछे पीछे फिरता है वो ब्रह्मचारी कैसे हो सकता है ???????????

 इसी उधेड़ बुन में गोपिया
कृष्ण के पास आकर फिर से वही  प्रश्न किया

भगवान श्री कृष्ण कहने लगे गोपियो मुझे तुम्हारी देह से कोई लेना देना नही है, मैं तो तुम्हारे प्रेम के भाव को देख कर तुम्हारे पीछे आता हूँ, मैने कभी वासना के तहत संसार नही भोगा मैं तो निर्मोही हूँ इस लिए यमुना ने आप को मार्ग दिया,

तब गोपिया बोली भगवन मुनिराज ने तो हमारे सामने भोजन ग्रहण किया फिर वि ओ बोले की अगत्स्य आजन्म उपवाशी हो तो हे यमुना मैया मार्ग देदे !!!!!!!!!!!!
और बड़े आश्चर्य की बात है कि यमुना ने मार्ग देदिया!!!!!!!

श्री कृष्ण हंसने लगे और बोले कि अगत्स्य आजन्म उपवाशी हैं ।
अगत्स्य मुनि भोजन  ग्रहण करने से पहले मुझे भोग लगाते है ।
और उनका भोजन में कोई मोह नही होता उनको कतई मन में नही होता की में भोजन करु या भोजन कर रहा हूँ।
ओ तो अपने अंदर रहे मुझे भोजन करा रहे होते है इस लिए ओ आजन्म उपवासी हैं।

जो मुझसे प्रेम करता है में उनका सच में ऋणि हुँ, मैं तुम सबका ऋणि हूं।

राधास्वामी।



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