प्रस्तुति - अनामी शरण बबल /
डा. ममता शरण / कृति शरण
**परम गुरु हुजूर महाराज-
प्रेमपत्र- कल का शेष:-
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सोते वक्त रूह यानी सूरत की धारा आंख और सभ के मुकाम से किसी कदर अंतर की तरफ हट जाती है, फिर चिंता और दुख सुख देह और संसार का बिल्कुल नहीं ब्यापता है। इसी तरह से जब डॉक्टर लोग सीसी की दवा यानी क्लोरोफॉर्म सुँघाते हैं उस वक्त बदन के काटने की तकलीफ नहीं मालूम होती। और ऐसे ही नशे की हालत में भी सुरत किसी कदर मामुली, यानी आँख के मुकाम से, हट जाती है कि उसी वक्त सुरूर यानी नशे का आनंद आ जाता है और चित्त भी उदार हो जाता है, क्योंकि उस वक्त कोई इसके पास आवे सब को उसी नशे की चीज, चाहे जैसी कीमती होवे, मिस्ल शराब या अफीम के, खिला पिला कर अपने मुआफिक नशे के सरूर में मस्त करना चाहता है । और दुनिया के सोच और फिक्र और रंज किसी कदर बिल्कुल हट जाते हैं। और इसका मन भी निष्कपट हो जाता है, क्योंकि नशे थे वक्त में जो कोई इससे कोई भेद की गुप्त बात पूछे तो वेतकल्लुफ फौरन जाहिर कर देता है ।।
अब ख्याल करना चाहिए कि जब नशे की या क्लोरोफॉर्म की मदद से सुरत के थोड़े बहुत आँख आंख के मुकाम से सरकने में में इस कदर दुख और दर्द और फिक्र देह और संसार का दूर हो जाता है और अंतर में एक तरह का आनंद या रस आता है, तो जो कोई अभ्यास की कमाई से बाइख्तियार अपने यानी स्वतंत्रता के साथ चाहे जब अंतर में सुरत को इधर से हटाकर ऊपर को चढ़ाने की ताकत हासिल करेगा उसको किस कदर कुदरत की ताकत नजर आएगी और आनंद प्राप्त होगा और सफाई और मन की होती जाएगी और देह और संसार के दुख सुख का असर कम होता जाएगा ।इससे जाहिर है कि सच्ची मुक्ति और सच्चा उद्धार एक दिन इसी जुगत यानी सुरत शब्द की कमाई से हासिल होना मुमकिन है। और जो बाहरमुखी परमार्थी पूजा या चालें या अंतर में हृदय नाभी के मुकाम के अभ्यास है, उनसे सच्चा उद्धार और रुह की अपने निज घर की तरफ चढ़ाई मुमकिन नही है।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 **
ई
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