**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
रोजाना वाकियात-
कल का शेष:-
रात के सत्संग में कबीर साहब के एक शब्द के हवाले से बयान हुआ कि जीव को परम पद में रसाई सिर्फ सार शब्द या निज नाम की मदद से मिल सकती है। जो लोग सार शब्द से लापरवाह है और दूसरे नामों का आसरा लेते हैं उन्हें होश आने पर पछताना पड़ेगा।। शुक्र है कि सत्संगी भाइयों और बहनों ने ब्याह शादी के मुतअल्लिक़ मेरे मशवरा को आम तौर व्यवहारिक जामा पहनाना शुरू कर दिया है । ब्याह शादी जिंदगी को सुखारी करने के लिए की जाती है न कि मर्द या औरत के गले में चक्की का पाट बांधने की गरज से। दयालबाग में शादियां निहायत आसानी से हो जाती है। पक्षकार को सिविल मैरिज एक्ट की पाबंदी करनी होती है। शादी का खर्चा अंदाजन 8 आना होता है। न जात पात का लिहाज और न मुहुरत और तिथी का बखेड़ा। सभी जीव मालिक के बच्चे हैं और सभी दिन मालिक के पैदा किए हुए इसका।जिसका जी चाहे शादी करें, जिसका जी ना चाहे ना करें। अलबत्ता जो शादी करना चाहे तंदुरुस्ती का सर्टिफिकेट हासिल करें। और जिन मर्दो की स्त्रियां 40 वर्ष की उम्र के बाद मर जाये , वह बेवा स्त्रियों से शादी करें । और हर शादी यथाशक्ति गन,कर्म व स्वभाव के मुताबिक होनी चाहिए अभी दो दिध हुए बेवा की शादी हुई। जिसमें उसके सब रिश्तेदार निहायत खुशी से शरीक हुए ।और दिसंबर माह के लिए अनेक शादियां मुकर्रर हो चुकी हैं । उम्मीद है कि 23 दिसंबर का दिल जो हर साल शादियों के लिये मखसूस होता है इस साल खूब रौनक का दिन होगा।🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
[07/05, 02:38] Contact +918377958104: **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- सत्संग के उपदेश- भाग 2-( 46)-【सत्संगी भाइयों के लिए एक जरूरी मशवरा 】:-अपनी जमात की कमजोरियों से आगाह होकर मौका मिलने पर उनके दूर करने के लिए कोशिश करना हर समझदार मेंबर का जरूरी फर्ज है और अगर कोई शख्स ऐसे मौके पर चश्मपोशी या सुस्ती व काहिली से काम लेता है तो वह अपना व नीज कुल जमात का नुकसान करता है। हमें यह तस्लीमा करना होगा कि सतसंगमंडली के अंदर अर्सा से भेदभाव की सूरत कायम है लेकिन हमें दृढ विश्वास है कि यह हालत ज्यादा अर्से त्क कायम ना रहेगी। हुजूर राधास्वामी दयाल जरुर दया फर्माकर इस भिन्नति के जहरीले पौधे की जड़ काटने के लिए मुनासिब तजवीज व तदवीर अमल में लाएंगे और नीज उन प्रेमी भाइयों व बहनों की हर तरह व पूरी तौर से सहायता फर्मावेंगे जो सत्संगमंडली की इस मुबारक सेवा का बोझ अपने जिम्मे लेंगे। वाजह हो कि इंसान इस संसार के बागीचे में मिस्ल एक पेड़ के हैं। इंसान के गुण मिस्ल उस रस के हैं जो पेड़ के राग व रेशे के अंदर हर वक्त घूमता है ओर उसके शुभ बतौर उन फूलों व फलों के है जिन से पेड़ की शोभा होती है और उसके दूसरे कर्म उन पत्तो और काटों के समान है जो फूलों व फलों की हिफाजत करते हैं। नीज लाजह हो कि जो हाल एक इंसान का है वही जमात का है। जमाअते आखरी चंद इंसानों के मजमुए को कहते हैं। क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
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