मौत में होता क्या है?*
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मौत में बस इतना ही होता है कि प्राणों की सारी ऊर्जा जो बाहर फैली हुई है, विस्तीर्ण है, वह वापस सिकुड़ती है, अपने केंद्र पर पहुंचती है। जो ऊर्जा प्राणों की सारे शरीर के कोने-कोने तक फैली हुई है, वह सारी ऊर्जा वापस सिकुड़ती है, बीज में वापस लौटती है।
शरीर...जैसे एक दीये को हम मंदा करते जाएं, धीमा करते जाएं, तो फैला हुआ प्रकाश सिकुड़ आएगा, अंधकार घिरने लगेगा। प्रकाश सिकुड़ कर फिर दीये के पास आ जाएगा।
हम और धीमा करते जाएं, और धीमा; और फिर प्रकाश बीज-रूप में, अणु रूप में निहित हो जाएगा, अंधकार घेर लेगा। प्राणों की जो ऊर्जा फैली हुई है जीवन की, वह सिकुड़ती है, वापस लौटती है अपने केंद्र पर। नई यात्रा के लिए फिर बीज बनती है, फिर अणु बनती है। यह जो सिकुड़ाव है, इसी सिकुड़ाव से, इसी संकोच से पता चलता है कि मरा! मैं मरा! क्योंकि जिसे मैं जीवन समझता था, वह जा रहा है, सब छूट रहा है।
हाथ-पैर शिथिल होने लगे, श्वास खोने लगी, आंखों ने देखना बंद कर दिया, कानों ने सुनना बंद कर दिया। ये तो सारी इंद्रियां, यह सारा शरीर किसी ऊर्जा के साथ संयुक्त होने के कारण जीवंत था।वह ऊर्जा वापस लौटने लगी।
देह तो मुर्दा है, वह फिर मुर्दा रह गई। घर का मालिक घर छोड़ने की तैयारी करने लगा, घर उदास हो गया, निर्जन हो गया। लगता हैः मरा मैं। मृत्यु के इस क्षण में पता चलता है कि जा रहा हूं, डूब रहा हूं, समाप्त हो रहा हूं।
और इस घबराहट के कारण कि मैं मर रहा हूं, इस चिंता और उदासी के कारण, इस पीड़ा, इस एंग्विश के कारण, यह एंग्जायटी कि मैं मर रहा हूं, समाप्त हो रहा हूं, यह इतनी ज्यादा चिंता पैदा कर देती है मन में कि वह उस मृत्यु के अनुभव को भी जानने से वंचित रह जाता है। जानने के लिए चाहिए शांति। हो जाता है इतना अशांत कि मृत्यु को जान नहीं पाता।
बहुत बार हम मर चुके हैं, अनंत बार, लेकिन हम अभी तक मृत्यु को जान नहीं पाए। क्योंकि हर बार जब मरने की घड़ी आई है, तब फिर हम इतने विव्हल, बेचैन और परेशान हो गए हैं कि उस बेचैनी और परेशानी में कैसा जानना? कैसा ज्ञान? हर बार मौत आकर गुजर गई है हमारे आस-पास से और हम फिर भी अपरिचित रह गए हैं उससे।
नहीं, मरने के क्षण में नहीं जाना जा सकता है मौत को। लेकिन आयोजित मौत हो सकती है।आयोजित मौत को ही ध्यान कहते हैं, योग कहते हैं, समाधि कहते हैं।
समाधि का एक ही अर्थ है कि जो घटना मृत्यु में अपने आप घटती है, समाधि में साधक चेष्टा और प्रयास से सारे जीवन की ऊर्जा को सिकोड़कर भीतर ले जाता है, जानते हुए।
ओशो ❤️❤️
मैं मृत्यु सिखाता हूं पुस्तक से ( साभार)
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राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
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