Monday, May 4, 2020

कैसे कैसे सत्संगी



राधास्वामी!!

04-05 -2020-

आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन-

कल से आगे-( 127)-

  इसमें शक नहीं कि सबसे अच्छा वही सत्संगी है जिसने अपने मन व इंद्रियों को पूरी तरह से बस कर लिया है और जिसके हृदय में सच्चे मालिक से मिलने की तेज चाह काम कर रही है और जो इस चाह के पूरा करने के निमित्त मुनासिब यत्न व साधन में लगा है। लेकिन आम सत्संगियों की यह हालत नहीं हो सकती। परमार्थ के हिसाब से दुनिया में सबसे खराब वे लोग हैं जो मन के अंगों में बेखौफ हो कर बर्तते हैं । इनसे कम खराब वे लोग हैं जो गफलत की वजह से मन के अंगों में बर्तते हैं। और इन दोनों से वे बेहतर है जो जब तब मालिक का डर मानते हैं और अपने मन को बस में रखने की चाहत रखते हैं और इनसे बेहतर वे है जो अपने सब काम सोच समझ कर करते हैं और मालिक को हाजिर नाजिर मानते हैं और गलती व कसूर बन पड़ने पर सच्चे दिल से झुरते व पछताते हैं और उनसे भी बेहतर वे है जो हर वक्त मालिक की प्रसन्नता का ख्याल रखतज हैं और मन व इंद्रियों को काबू में रख कर संसार का काम करते हैं संभलकर चलने की कोशिश करते हैं। ज्यादातर सतसंगी सँभल कर चलने की कोशिश करते है और ठोकर खाकर गिर जाने पर झुरते और पछताते है और आयन्दा ज्यादा एहतियात से चलने की फिक्र करते हैं और उनके अंतर के अंतर मालिक से मिलने की काफी तेज चाह मौजूद है। रफ्ता रफ्ता उनकी पुरानी कमजोरियाँ दूर हो रही है और उनके अंदर सात्विक अंग जाग रहे हैं । पुरानी बीमारी व कमजोरी समय लेकर ही जाती है ।🙏🏻राधास्वामी 🙏🏻                   सत्संग के उपदेश -भाग तीसरा।

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