**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज
-सत्संग के उपदेश-
भाग तीसरा
- अगर कोई सतसंगी यह ख्याल करता है कि महज रूपए पैसे खर्च करने से जीव का कल्याण हो सकता तो यह उसकी बड़ी भूल है ।
यह ठीक है कि सत्संग में रुपये पैसे भेंट करने से सत्संगी का धन में मोह कम होता है और उसे गुरु महाराज की दया प्राप्त है और दया प्राप्त होने से उसका चित्त शुद्ध होता है और बुद्धि निर्मल होती है और चित्त शुद्ध व बुद्धि निर्मल होने से परमार्थ कमाने में सहूलियत रहती हैं और बुरे कर्मों से बचाव रहता है लेकिन ये फायदे तब होते हैं जब रूपया पैसा प्रेम व श्रद्धा से भेंट किया जावे।
जो लोग प्रेम व श्रद्धा के बजाय महज दिखलावे या कोई दुनियावी नफा हासिल करने की गरज से रुपया पैसा भेंट करते हैं वे नुकसान में रहते हैं ।
(प्रेम प्रसारण- 3 नवंबर 2008 अंक 21)
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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