प्रस्तुति - कृष्ण मेहता:
🌻वास्तविक सत्य को देखो
🌷
🍂मुझे सिरदर्द है। मैं दवा की दुकान पर गया। दुकान में एक नौकर था, उसने मुझे गोलियों की एक पट्टी दी, 4 दिन सुबह-शाम लीजिये - कहा! मैंने उससे पूछा कि मालिक कहाँ हैं? उन्होंने कहा कि मालिक को सिरदर्द था इसलिए वह कॉफी पीने चला गया !! मैं अपने हाथ में गोली को देखता रहा…।
🍂मेरी मां को हाई बीपी और शुगर था, इसलिए सुबह मैं उन्हें हमारे फैमिली डॉक्टर के पास ले गई। डॉ। योग और व्यायाम कर रहे हैं। मैं उनसे लगभग 45 मिनट बाद मिला। डॉक्टर अपनी नींबू पानी की बोतल के साथ क्लिनिक में आया और मेरी माँ की जांच करने लगा। उन्होंने मेरी माँ से कहा कि उन्हें अपनी दवा बढ़ाने की ज़रूरत है, और उन्होंने एक नुस्खे पर लगभग 10 दवाओं के नाम लिखे। उन्होंने अपनी मां को नियमित रूप से दवा लेने का निर्देश दिया। तब मैंने डॉक्टर से जिज्ञासा से पूछा कि क्या वह नियमित रूप से योग आदि करते हैं।
🍂डॉ। कहा कि वह पिछले 15 वर्षों से योग, प्राणायाम और स्वस्थ जीवन जी रहे हैं !! मैं अपने हाथ में अपनी माँ के नुस्खे को देख रहा था, जिसमें डॉक्टर ने बीपी और शुगर कम करने के लिए कई दवाएँ दी थीं ...
🌺 एक दिन मैं अपनी पत्नी के साथ था और मैं ब्यूटी पार्लर के वेटिंग रूम में बैठी थी। मेरी पत्नी बालों का इलाज करवाना चाहती थी क्योंकि उसके बाल बहुत सूखे थे। रिसेप्शन पर बैठी लड़की ने उसे कई पैकेज और उनके फायदे बताए। ये पैकेज 1000 / - से लेकर रु। 3000 / - तक थे और कुछ छूट देने के बाद उन्होंने मेरी पत्नी को रु। 300 / - का पैकेज रु .400 / - में दिया। बाल उपचार के दौरान, मेरी पत्नी का इलाज करने वाली महिला के बालों की एक अलग गंध उसके बालों के माध्यम से महसूस की गई थी। मैंने उससे पूछा कि गंध क्या है .. उसने कहा कि उसने अपने बालों को मुलायम करने के लिए नारियल के तेल में कपूर मिलाया। मेरी पत्नी अपने बालों को बेहतर बनाने के लिए 2400 / - रुपये में आई थी।
🌺मेरे अमीर चचेरे भाई के पास जर्सी गायों का एक बड़ा झुंड है। मैं उसके खेत में गया था। खेत पर पास की गौशाला में लगभग 100 विदेशी गायें हैं और उनकी दुहना आदि का काम कंप्यूटर मशीन द्वारा किया जाता था। एक अलग क्षेत्र में, 2 देशी गिर गायों को हरा चारा खा रहे थे। ये गायें किसके लिए हैं? पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि विदेशी गाय का दूध मेरा व्यवसाय है। और घर पर हम दो देशी गाय के दूध, दही और घी का उपयोग करते हैं!स्नेहा आयूर्वेद ग्रुप
🏵️और मुझे वहां सबसे अच्छा ब्रांडेड दूध मिलना था।
🍂 हम एक प्रसिद्ध रेस्तरां में खाने के लिए गए जो अपने विशेष व्यंजनों और परिष्कृत भोजन के लिए प्रसिद्ध है। बाहर निकलने पर, मैनेजर ने विनम्रता से मुझसे पूछा, "सर, खाने का स्वाद कैसा था? हम शुद्ध घी, तेल और मसालों का इस्तेमाल करते हैं। हम घर पर ही खाना बनाते हैं।" जब मैंने भोजन की सराहना की, तो वह मुझे अपने विजिटिंग कार्ड देने के लिए अपने केबिन में ले गया। काउंटर पर स्टील के टिफिन के 3 बॉक्स रखे गए थे। तभी एक वेटर वहां आया और दूसरे से कहा, "सुनील का खाना केबिन में रख दो, वे बाद में खा लेंगे"।
🍃मैंने वेटर से पूछा- सुनील यहाँ नहीं खाता है? उन्होंने जवाब दिया, "सुनील सर कभी बाहर नहीं खाते, उनके लिए घर से खाना आता है।" मैं अपने हाथ में १६ my० / - रुपये का बिल देखता रहा ...
🌹 यहाँ कुछ उदाहरण हैं।
जो मुझे यह एहसास दिलाता है कि हम जो सामान बेचते हैं, उसका ज्यादातर समय विक्रेताओं द्वारा स्वयं उपयोग नहीं किया जाता है .. और हम केवल उनके उत्पादों और सेवाओं के लिए अत्यधिक कीमत वसूलते हैं।
[06/05, 09:01] Morni कृष्ण मेहता: 🌻वास्तविक सत्य को देखो
🌷यह लेख मेरा नहीं है लेकिन मुझे यह पसंद है इसलिए इसे उत्तेजक समझा जाता है
🍂मुझे सिरदर्द है। मैं दवा की दुकान पर गया। दुकान में एक नौकर था, उसने मुझे गोलियों की एक पट्टी दी, 4 दिन सुबह-शाम लीजिये - कहा! मैंने उससे पूछा कि मालिक कहाँ हैं? उन्होंने कहा कि मालिक को सिरदर्द था इसलिए वह कॉफी पीने चला गया !! मैं अपने हाथ में गोली को देखता रहा…।
🍂मेरी मां को हाई बीपी और शुगर था, इसलिए सुबह मैं उन्हें हमारे फैमिली डॉक्टर के पास ले गई। डॉ। योग और व्यायाम कर रहे हैं। मैं उनसे लगभग 45 मिनट बाद मिला। डॉक्टर अपनी नींबू पानी की बोतल के साथ क्लिनिक में आया और मेरी माँ की जांच करने लगा। उन्होंने मेरी माँ से कहा कि उन्हें अपनी दवा बढ़ाने की ज़रूरत है, और उन्होंने एक नुस्खे पर लगभग 10 दवाओं के नाम लिखे। उन्होंने अपनी मां को नियमित रूप से दवा लेने का निर्देश दिया। तब मैंने डॉक्टर से जिज्ञासा से पूछा कि क्या वह नियमित रूप से योग आदि करते हैं।
🍂डॉ। कहा कि वह पिछले 15 वर्षों से योग, प्राणायाम और स्वस्थ जीवन जी रहे हैं !! मैं अपने हाथ में अपनी माँ के नुस्खे को देख रहा था, जिसमें डॉक्टर ने बीपी और शुगर कम करने के लिए कई दवाएँ दी थीं ...
🌺 एक दिन मैं अपनी पत्नी के साथ था और मैं ब्यूटी पार्लर के वेटिंग रूम में बैठी थी। मेरी पत्नी बालों का इलाज करवाना चाहती थी क्योंकि उसके बाल बहुत सूखे थे। रिसेप्शन पर बैठी लड़की ने उसे कई पैकेज और उनके फायदे बताए। ये पैकेज 1000 / - से लेकर रु। 3000 / - तक थे और कुछ छूट देने के बाद उन्होंने मेरी पत्नी को रु। 300 / - का पैकेज रु .400 / - में दिया। बाल उपचार के दौरान, मेरी पत्नी का इलाज करने वाली महिला के बालों की एक अलग गंध उसके बालों के माध्यम से महसूस की गई थी। मैंने उससे पूछा कि गंध क्या है .. उसने कहा कि उसने अपने बालों को मुलायम करने के लिए नारियल के तेल में कपूर मिलाया। मेरी पत्नी अपने बालों को बेहतर बनाने के लिए 2400 / - रुपये में आई थी।
🌺मेरे अमीर चचेरे भाई के पास जर्सी गायों का एक बड़ा झुंड है। मैं उसके खेत में गया था। खेत पर पास की गौशाला में लगभग 100 विदेशी गायें हैं और उनकी दुहना आदि का काम कंप्यूटर मशीन द्वारा किया जाता था। एक अलग क्षेत्र में, 2 देशी गिर गायों को हरा चारा खा रहे थे। ये गायें किसके लिए हैं? पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि विदेशी गाय का दूध मेरा व्यवसाय है। और घर पर हम दो देशी गाय के दूध, दही और घी का उपयोग करते हैं!स्नेहा आयूर्वेद ग्रुप
🏵️और मुझे वहां सबसे अच्छा ब्रांडेड दूध मिलना था।
🍂 हम एक प्रसिद्ध रेस्तरां में खाने के लिए गए जो अपने विशेष व्यंजनों और परिष्कृत भोजन के लिए प्रसिद्ध है। बाहर निकलने पर, मैनेजर ने विनम्रता से मुझसे पूछा, "सर, खाने का स्वाद कैसा था? हम शुद्ध घी, तेल और मसालों का इस्तेमाल करते हैं। हम घर पर ही खाना बनाते हैं।" जब मैंने भोजन की सराहना की, तो वह मुझे अपने विजिटिंग कार्ड देने के लिए अपने केबिन में ले गया। काउंटर पर स्टील के टिफिन के 3 बॉक्स रखे गए थे। तभी एक वेटर वहां आया और दूसरे से कहा, "सुनील का खाना केबिन में रख दो, वे बाद में खा लेंगे"।
🍃मैंने वेटर से पूछा- सुनील यहाँ नहीं खाता है? उन्होंने जवाब दिया, "सुनील सर कभी बाहर नहीं खाते, उनके लिए घर से खाना आता है।" मैं अपने हाथ में १६ my० / - रुपये का बिल देखता रहा ...
🌹 यहाँ कुछ उदाहरण हैं।
जो मुझे यह एहसास दिलाता है कि हम जो सामान बेचते हैं, उसका ज्यादातर समय विक्रेताओं द्वारा स्वयं उपयोग नहीं किया जाता है .. और हम केवल उनके उत्पादों और सेवाओं के लिए अत्यधिक कीमत वसूलते हैं।
[06/05, 09:02] Morni कृष्ण मेहता: ।जय सियाराम जय घनश्याम।
एक बार की बात है कि श्री कृष्ण और अर्जुन कहीं जा रहे थे।
रास्ते में अर्जुन ने श्री कृष्ण से पूछा कि प्रभु – एक जिज्ञासा है मेरे मन में, अगर आज्ञा हो तो पूछूँ ?
श्री कृष्ण ने कहा – अर्जन, तुम मुझसे बिना किसी हिचक, कुछ भी पूछ सकते हो।
तब अर्जुन ने कहा कि मुझे आज तक यह बात समझ नहीं आई है कि दान तो मै भी बहुत करता हूँ परंतु सभी लोग कर्ण को ही सबसे बड़ा दानी क्यों कहते हैं ?
यह प्रश्न सुन श्री कृष्ण मुस्कुराये और बोले कि आज मैं तुम्हारी यह जिज्ञासा अवश्य शांत करूंगा।
🌤श्री कृष्ण ने पास में ही स्थित दो पहाड़ियों को सोने का बना दिया।
इसके बाद वह अर्जुन से बोले कि हे अर्जुन इन दोनों सोने की पहाड़ियों को तुम आस पास के गाँव वालों में बांट दो।
अर्जुन प्रभु से आज्ञा ले कर तुरंत ही यह काम करने के लिए चल दिया।
उसने सभी गाँव वालों को बुलाया।
उनसे कहा कि वह लोग पंक्ति बना लें अब मैं आपको सोना बाटूंगा और सोना बांटना शुरू कर दिया।
गाँव वालों ने अर्जुन की खूब जय जयकार करनी शुरू कर दी।
अर्जुन सोना पहाड़ी में से तोड़ते गए और गाँव वालों को देते गए।
लगातार दो दिन और दो रातों तक अर्जुन सोना बांटते रहे।
उनमे अब तक अहंकार आ चुका था।
गाँव के लोग वापस आ कर दोबारा से लाईन में लगने लगे थे।
इतने समय पश्चात अर्जुन काफी थक चुके थे।
जिन सोने की पहाड़ियों से अर्जुन सोना तोड़ रहे थे, उन दोनों पहाड़ियों के आकार में जरा भी कमी नहीं आई थी।
उन्होंने श्री कृष्ण जी से कहा कि अब मुझसे यह काम और न हो सकेगा। मुझे थोड़ा विश्राम चाहिए।
प्रभु ने कहा कि ठीक है तुम अब विश्राम करो और उन्होंने कर्ण बुला लिया।
उन्होंने कर्ण से कहा कि इन दोनों पहाड़ियों का सोना इन गांव वालों में बांट दो।
कर्ण तुरंत सोना बांटने चल दिये।
उन्होंने गाँव वालों को बुलाया और उनसे कहा – यह सोना आप लोगों का है , जिसको जितना सोना चाहिए वह यहां से ले जाये।
ऐसा कह कर कर्ण वहां से चले गए।
यह देख कर अर्जुन ने कहा कि ऐसा करने का विचार मेरे मन में क्यों नही आया?
श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को शिक्षा
इस पर श्री कृष्ण ने जवाब दिया कि तुम्हे सोने से मोह हो गया था।
तुम खुद यह निर्णय कर रहे थे कि किस गाँव वाले की कितनी जरूरत है।
उतना ही सोना तुम पहाड़ी में से खोद कर उन्हे दे रहे थे।
तुम में दाता होने का भाव आ गया था।
दूसरी तरफ कर्ण ने ऐसा नहीं किया। वह सारा सोना गाँव वालों को देकर वहां से चले गए। वह नहीं चाहते थे कि उनके सामने कोई उनकी जय जयकार करे या प्रशंसा करे। उनके पीठ पीछे भी लोग क्या कहते हैं उस से उनको कोई फर्क नहीं पड़ता।
यह उस आदमी की निशानी है जिसे आत्मज्ञान हांसिल हो चुका है।
इस तरह श्री कृष्ण ने खूबसूरत तरीके से अर्जुन के प्रश्न का उत्तर दिया, अर्जुन को भी अब अपने प्रश्न का उत्तर मिल चुका था।
💥 *कथासार* 💥
*दान देने के बदले में धन्यवाद या बधाई की उम्मीद करना भी उपहार नहीं सौदा कहलाता है।*
यदि हम किसी को कुछ दान या सहयोग करना चाहते हैं तो हमे यह बिना किसी उम्मीद या आशा के करना चाहिए, ताकि यह हमारा सत्कर्म हो, न कि हमारा अहंकार ।
[06/05, 09:04] Morni कृष्ण मेहता: ((( ठाकुर श्रीनाथजी की कृपा )))))
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श्री गोवर्धन नाथ श्रीनाथजी के एक भक्त हुए जिनका नाम श्री त्रिपुरदास जी था।
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इन्होंने ऐसी प्रतिज्ञा की थी कि मैं प्रतिवर्ष शीतकाल में ठाकुर श्री गिरिराज श्रीनाथजी के लिए दगला (अंगरखा) भेजा करूँगा ।
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तदनुसार ये अत्यंत ही बहुमूल्य वस्त्र का अंगरखा सिलवाते थे, फिर उसमे सुनहले गोटे लगवाते थे और बड़े प्रेमसे भेजते थे।
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यही कारण है की इनका भेजा हुआ अंगरखा ठाकुर श्रीनाथ जी को अत्यंत प्रिय लगता था और मंदिर के गोसाईं श्री विट्ठलनाथ जी भी उसे बड़े प्रेम से श्री ठाकुरजी को धारण करवाते थे।
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कुछ कालोपरांत इनका ऐसा समय आया कि राजा ने इनका सर्वस्व अपहरण कर लिया।
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ये एक-एक आने को और एक-एक दाने को मोहताज हो गए।
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इसी बीच शरद् ऋतु आ गयी ।
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तब इन्हें श्री ठाकुरजी के लिए अंगरखा भेजने की याद आयी,
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परंतु धन का सर्वथा आभाव होने से श्रीठाकुर जी की सेवा से वंचित होने तथा प्रतिज्ञा-भंग होने के दुख से इनकी आँखो मे आँसु छल छला आये।
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एकाएक पीतल की एक दवात इनकी नजर मे आयी।
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इन्होंने मन में निश्चय किया कि इसको बेचकर श्री ठाकुरजी की सेवा करूँगा ।
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श्री त्रिपुरदास जी ने पीतल की दवात को बाजार मे बेचा, उससे उन्हें एक रूपया मिला।
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उस रूपये से इन्होंने केवल मोटे कपडे का एक थान ख़रीदा।
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फिर उस कपडे को लाल रंग में रंगा।
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परंतु फिर भी इनका साहस नही हुआ कि ऐसे साधारण वस्त्र को लेकर हम कैसे श्री गोसाईंजी के पास जाये, अतः उसे घर मे ही रख लिया।
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सोचा था कि श्री गिरिराज जी की ओर से कोई आयेगा तो उसके द्वारा भिजवा दूँगा।
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इसी बीच श्री गोसाईंजी का कोई सेवक अपने गांव आया हुआ
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सहज ही दिख गया। फिर तो उन्होंने वह वस्त्र उस सेवक को देकर कहा -
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आप इसे भंडारी जी को दे देना।
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यद्यपि यह वस्त्र श्री गोसाईंजी के किसी दास-दासी के भी पहनने योग्य नहीं है तो भी मुझ दीन की यह तुच्छ भेंट आप ले जाइये,
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परंतु एक बात का ध्यान रखियेगा , मेरी आपसे यह प्रार्थना है कि इस वस्त्र का समाचार श्री गोसाईं जी को मत सुनाईयेगा।
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उस सेवक ने श्री त्रिपुरदास जी के वस्त्र को लाकर भण्डारी के हाथ मे दे दिया
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और उस भण्डारी ने उस वस्त्र को बिछाकर उसके ऊपर श्री ठाकुरजी के शृंगार के और बढ़िया वस्त्र रख दिये।
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परंतु परम-सनेही ठाकुर श्रीनाथजी से भक्त के इस प्रेमोपहार की उपेक्षा सही नहीं गयी,
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वे व्याकुल होकर बोले-मुझे बड़े जोर से ठण्डक लग रही है, शीघ्र इसको दूर करने का कोई उपाय करो।
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तब श्री गोसाईंजी ने बहुत से सुंदर सुंदर वस्त्र श्रीअंग पर ओढ़ाये।
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परंतु ठण्ड नहीं गयी। तब श्री गोसाई जी ने अँगीठी जलायी।
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फिर भी ठण्ड दूर नहीं हुई।
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तब श्री गोसाईंजी के ध्यान में आया कि किसी भक्त पर अनुग्रह करने के लिए प्रभु यह लीला कर रहे है,
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अतः तुरंत ही सेवक को बुलवाकर पूछा कि इस वर्ष किस-किस की पोशाकें आई है ?
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किताब बही खोल कर सेवक ने सबका नाम सुनाया, परंतु त्रिपुरदास जी का नाम नहीं लिया।
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गोसाईं श्री विट्ठलनाथ जी ने कहा कि मैंने भक्त त्रिपुरदास का नाम नहीं सुना,
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क्या इस वर्ष इनके यहाँ से पोशाक नहीं आयी है ?
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सेवक ने कहा उनका सब धन नष्ट हो गया है, अतः उनके यहाँ से मोठे कपड़े का एक थान आया है,
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मैंने उसे और पोशाकों के नीचे रख दिया है।
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श्री गोसाईंजी ठाकुर जी के मन की बात जान गये की प्रेम-प्रवीण प्रभु तो भक्तों के भाव को देख कर उनके प्रेमोपहार को सहर्ष स्वीकार करते है,
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आज्ञा दी कि उस कपडे को शीघ्र लाओ।
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सेवक अनमना-सा होकर उस कपडे को ले आया।
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तुरंत ही श्रीठाकुरजी के दर्जी को बुला कर उस कपडे को नाप-साध कर कटवा कर अँगरखा सिलाया गया।
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श्री गोसाईंजी ने तुरंत उस अंगरखे को श्रीठाकुर जी के श्रीअंग में धारण कराया,
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तब श्रीठाकुर जी ने बड़े भावमें भरकर कहा की अब हमारा जाड़ा (ठण्डक) दूर हो गया है।
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(((((((((( जय जय श्री राधे ))))))))))
[06/05, 09:05] Morni कृष्ण मेहता: राम कथा मुनिवर्ज बखानी।
सुनी महेश परम सुख मानी।।
महर्षि अगस्त्य जी महादेव शंकर जी के उचित सत्कार के बाद उनकी प्रसन्नता हेतु बिना पूछे ही श्रीराम कथा कही।हनुमानजी,शंकर जी के प्रसन्न करने हेतु श्रीराम कथा आवश्यक है(एहि बिधि कहत राम गुन ग्रामा।पावा अनिर्वाच्य विश्रामा।।...तुम पुनि राम राम दिनु राति। सादर जपहु अनंग आराती)..और सिद्धांत है...तसि पूजा चाहिय जस देवता...जैसा देवता वैसा पूजा।
अगस्त ऋषि अंतर्यामी हैं अतः शिवजी के इच्छानुसार श्रीराम कथा कहे।
सुनी महेश...अद्वितीय श्रोता हैं देवाधिदेव महादेव जी! यद्यपि वे प्राकृत भाषा में राम चरित मानस के रचयिता हैं..रचि महेश निज मानस राखा।..बिरचेउ शंभु सुहावन पावन..किन्तु वे ही तो पार्वती जी से कहते हैं..राम कथा जे सुनत अघाहीं।रस विशेष जाना तीन्ह नाहीं।।
राम जी को देखें..बेद पुराण वशिष्ठ बखानहिं। सुनहिं राम !जदपि सब जानहिं।।
कोई भले बड़ा विद्वान हो किन्तु भोलेनाथ तथा राम जी जैसे हरि कथा श्रवण करना चाहिए।
सुनते कैसे हैं?...परम सुख मानी- ग्याता होकर भी आदर पूर्वक और अत्यंत आनंद से कथा श्रवण किए।जैसे बिना कहे नाली में गिरे हुए सोना को उठा लेते हैं,जरा नीच के मुख से ही सही श्रीराम कथा सप्रेम श्रवण कर लीजिए। चलिए प्रसंग की ओर...
रिषि पूछी हरि भगति सुहाई...महर्षि अगस्त जी महादेव शंकर जी को श्रीराम कथा कहने के बाद उनसे हरि भक्ति पूछे।
हरि भक्ति..-हरि कौन?...
भक्तानां पापानि ,तापान् , चितं हरति इति हरिः।
सर्वप्रथम यह दृढ़ विश्वास रखें कि..राम,कृष्ण, श्री विष्णु सब हरि ही हैं।जो भक्तों के चित्त के पाप, दैहिक,दैविक भौतिक ताप आदि को हरण कर अपनी भक्ति प्रदान कर हमारे संताप का हरण करते हैं वे हरि हैं।
हरि भगति अर्थात् श्रीराम जी की भक्ति जो अत्यंत सुहावन पावन है परम विज्ञानी महादेव जी से पूछते हैं।
कही शंभु! ..कल्याण कर्ता शंकर जी ने श्रीराम कथा कही,क्यों ?...क्योंकि..अधिकारी पाई...महर्षि अगस्त जी को श्रीराम कथा के उत्तम अधिकारी जानकर कहे।
श्रीराम कथा के अधिकारी कौन है?...
राम कथा के तेइ अधिकारी।जिन्हहिं सतसंगति अति प्यारी।।..जिनको श्रीराम कथा से अत्यंत प्रेम हो ,वे श्रीराम कथा के अधिकारी हैं।
अतः कल्याण कर्ता शंकर जी ने श्रीराम कथा के योग्य अधिकारी पाकर कही।..भाई! यदि वक्ता भाग्य से मिलते हैं तो उचित श्रोता बड़े सौभाग्य से मिलते हैं...श्रोता बकता ग्यान निधि कथा राम कै गूढ़।
मैं जड़ प्राणी खुद को क्या समझूँ..
किमि समुझौं मैं जीव जड़...?
कहत सुनत रघुपति गुन गाथा...महादेव शंकर जी और महर्षि अगस्त्य जी के आपस में श्रीराम कथा कथन श्रवण में कुछ दिन व्यतीत हो जाता। वे- कछु दिन तहाँ रहे गिरिनाथा ..देखिए श्रीराम कथा से जितना प्रेम शंकर जी को है उतना सती शरीर धारी भव वामा को नहीं है इस प्रसंग पर ध्यान देने से स्पष्ट हो जाता है। क्योंकि जिनका कथा चला उन्हीं को रास्ते में देखकर मोह ग्रस्त हो जाती हैं।
सीताराम जय सीताराम
सीताराम जय सीताराम
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