प्रस्तुति - कृष्ण मेहता:
''राम'' के नाम का रहस्य*
*12-अंत समय में राम कहने से वह फिर जन्मता-मरता नहीं। ऐसा राम नाम है। भगवान ने ऐसा मुक्ति का क्षेत्र खोल दिया है। कोई भी अन्न का क्षेत्र खोले तो पास में पूंजी चाहिए। बिना पूंजी के अन्न कैसे देगा? शंकर जी कहते हैं-हमारे पास ‘राम’ नाम की पूंजी है। इससे जो चाहे मुक्ति ले लो।*
*13-मुक्ति जन्म महि जानि*
*ग्यान खानि अघ हानि कर।*
*जहं बस संभु भवानि*
*सो कासी सेइअ कस न॥*
*यह काशी भगवान शंकर का मुक्ति क्षेत्र है। यह राम नाम की पूंजी ऐसी है कि कम होती ही नहीं। अनंत जीवों की मुक्ति कर देने पर भी इसमें कमी नहीं आती। आए भी तो कहां से। वह अपार है, असीम है*।
*14-नाम की महिमा कहते- कहते गोस्वामी जी कहते हैं*
*कहौं कहां लगि नाम बड़ाई, रामु न सकङ्क्षह नाम गुन गाई॥* (बाल.दो.26/8)
*भगवान श्री राम भी नाम का गुणगान नहीं गा सकते। इतने गुण राम नाम में हैं।*
*‘महामंत्र जोइ जपत महेसू’*
*इसका दूसरा अर्थ यह भी हो सकता है कि यह महामंत्र इतना विलक्षण है कि महामंत्र राम नाम जपने से ‘ईश’ भी महेश हो गए। महामंत्र का जप करने से आप भी महेश के समान हो सकते हैं।*
*🚩जय श्री सीताराम जी की*🚩
[07/05, 08:07] Morni कृष्ण मेहता: *||✍✍✍||*
*||"निष्काम भक्ति"||*
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वृन्दावन में एक बिहारी जी का परम् भक्त था, पेशे से वह एक दूकानदार था । वह रोज प्रातः बिहारी जी के मंदिर जाता था और फिर गो सेवा में समय देता और गरीब, बीमार और असहाय लोगों के उपचार और भोजन और दवा का प्रबन्ध करता ।
वह बिहारी जी के मंदिर जाता, न तो कोई दीपक जलाता, न कोई माला, न फूल, न कोई प्रसाद। उसे अपने पिता की कही एक बात.. जो उसने बचपन से अपने पिता से ग्रहण करी थी और जीवन मन्त्र बना ली ।
उसके पिता ने कहा था। बिहारी जी की सेवा तो भाव से होती है बिहारी तो उसकी सेवा स्वीकार करते हैं, जो उनकी हर सन्तान की.. जो किसी न किसी कारण दुखी है, उनकी सेवा करता है ।
जो पशु पक्षियों की सेवा करता है, देखो भगवान ने स्वयं गो सेवा की थी ।
लेकिन एक बात थी.. मंदिर में बिहारी जी की जगह उसे एक ज्योति दिखाई देती थी, जबकि मंदिर में बाकी के सभी भक्त कहते वाह ! आज बिहारी जी का श्रंगार कितना अच्छा है, बिहारी जी का मुकुट ऐसा, उनकी पोशाक ऐसी, तो वह भक्त सोचता.. बिहारी जी सबको दर्शन देते है, पर मुझे क्यों केवल एक ज्योति दिखायी देती है । हर दिन ऐसा होता । एक दिन बिहारी जी से बोला ऐसी क्या बात है कि आप सबको तो दर्शन देते है, पर मुझे दिखायी नहीं देते ।
कल आप को मुझे दर्शन देना ही पड़ेगा । अगले दिन मंदिर गया.. फिर बिहारी जी उसे ज्योत के रूप में दिखे । वह बोला- बिहारी जी अगर कल मुझे आपने दर्शन नहीं दिये तो मैं यमुना जी में डूबकर मर जाँऊगा ।
उसी रात में बिहारी जी एक कोड़ी के सपने में आये जो कि मंदिर के रास्ते में बैठा रहता था और बोले- तुम्हे अपना कोड़ ठीक करना है। वह कोड़ी बोला-हाँ भगवान, भगवान बोले-तो सुबह मंदिर के रास्ते से एक भक्त निकलेगा तुम उसके चरण पकड़ लेना और तब तक मत छोड़ना, जब तक वह ये न कह दे कि बिहारी जी तुम्हारा कोड़ ठीक करे ।
कोड़ी बोला पर प्रभु वहां तो रोज बहुत से भक्त आते हैं मैं उन्हें पहचानुगां कैसे..??
भगवान ने कहा: जिसके पैरों से तुम्हे प्रकाश निकलता दिखायी दे, वही मेरा वह भक्त है । अगले दिन वह कोड़ी रास्ते में बैठ गया.. जैसे ही वह भक्त निकला.. उसने चरण पकड़ लिए और बोला: पहले आप कहो कि मेरा कोड़ ठीक हो जाये ।
वह भक्त बोला: मेरे कहने से क्या होगा, आप मेरे पैर छोड दीजिये, कोड़ी बोला: जब तक आप ये नहीं कह देते कि बिहारी जी तुम्हारा कोड़ ठीक करे, तब तक मैं आपके चरण नहीं छोडूगा । भक्त वैसे ही चिंता में था कि बिहारी जी दर्शन नहीं दे रहे, ऊपर से ये कोड़ी पीछे पड़ गया तो वह झुँझलाकर बोले.. जाओ बिहारी जी, तुम्हारा कोड़ ठीक करे और मंदिर चला गया, मंदिर जाकर क्या देखता है कि बिहारीजी के दर्शन हो रहे हैं, बिहारी जी से पूछने लगा कि अब तक आप मुझे दर्शन क्यों नहीं दे रहे थे, तो बिहारीजी बोले: तुम मेरे निष्काम भक्त हो, आज तक तुमने मुझसे कभी कुछ नहीं माँगा.. इसलिए मैं क्या मुँह लेकर तुम्हे दर्शन देता, यहाँ सभी भक्त कुछ न कुछ माँगते ही रहते है
इसलिए मैं उनसे नज़रे मिला सकता हूँ, पर आज तुमने रास्ते में उस कोड़ी से कहा कि बिहारी जी तुम्हारा कोड़ ठीक कर दे, इसलिए मैं तुम्हे दर्शन देने आ गया ।
अत: भगवान की निष्काम भक्ति ही करनी चाहिये, भगवान की भक्ति करके यदि संसार के ही भोग, सुख ही माँगे तो फिर वह भक्ति नहीं.. वह तो सोदेबाजी है...!!
*सीख :~*
सबसे बड़ी परमात्मा की सेवा उनकी है, जो वास्तव में बेबस और लाचार है। असहाय और दुखीयों की निस्वार्थ सेवा ही इस जगत की सबसे बड़ी सेवा है।
. *जय जय श्री राधे राधे*
*"जय श्री कृष्ण"*
🎖️
[07/05, 08:08] Morni कृष्ण मेहता: *◆सुखी रहने का तरीका◆*
*एक बार की बात है संत तुकाराम अपने आश्रम में बैठे हुए थे। तभी उनका एक शिष्य, जो स्वाभाव से थोड़ा क्रोधी था उनके समक्ष आया और बोला-*
*गुरूजी, आप कैसे अपना व्यवहार इतना मधुर बनाये रहते हैं, ना आप किसी पे क्रोध करते हैं और ना ही किसी को कुछ भला-बुरा कहते हैं? कृपया अपने इस अच्छे व्यवहार का रहस्य बताइए?*
*संत बोले- मुझे अपने रहस्य के बारे में तो नहीं पता, पर मैं तुम्हारा रहस्य जानता हूँ !*
*“मेरा रहस्य! वह क्या है गुरु जी?” शिष्य ने आश्चर्य से पूछा।*
*”तुम अगले एक हफ्ते में मरने वाले हो!” संत तुकाराम दुखी होते हुए बोले।*
*कोई और कहता तो शिष्य ये बात मजाक में टाल सकता था, पर स्वयं संत तुकाराम के मुख से निकली बात को कोई कैसे काट सकता था?*
*शिष्य उदास हो गया और गुरु का आशीर्वाद ले वहां से चला गया।*
*उस समय से शिष्य का स्वभाव बिलकुल बदल सा गया। वह हर किसी से प्रेम से मिलता और कभी किसी पे क्रोध न करता, अपना ज्यादातर समय ध्यान और पूजा में लगाता। वह उनके पास भी जाता जिससे उसने कभी गलत व्यवहार किया था और उनसे माफ़ी मांगता। देखते-देखते संत की भविष्यवाणी को एक हफ्ते पूरे होने को आये।*
*शिष्य ने सोचा चलो एक आखिरी बार गुरु के दर्शन कर आशीर्वाद ले लेते हैं। वह उनके समक्ष पहुंचा और बोला-*
*गुरुजी, मेरा समय पूरा होने वाला है, कृपया मुझे आशीर्वाद दीजिये!”*
*“मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है पुत्र। अच्छा, ये बताओ कि पिछले सात दिन कैसे बीते? क्या तुम पहले की तरह ही लोगों से नाराज हुए, उन्हें अपशब्द कहे?”*
*संत तुकाराम ने प्रश्न किया।*
*“नहीं-नहीं, बिलकुल नहीं। मेरे पास जीने के लिए सिर्फ सात दिन थे, मैं इसे बेकार की बातों में कैसे गँवा सकता था?*
*मैं तो सबसे प्रेम से मिला, और जिन लोगों का कभी दिल दुखाया था उनसे क्षमा भी मांगी” शिष्य तत्परता से बोला।*
*"संत तुकाराम मुस्कुराए और बोले, “बस यही तो मेरे अच्छे व्यवहार का रहस्य है।"*
*"मैं जानता हूँ कि मैं कभी भी मर सकता हूँ, इसलिए मैं हर किसी से प्रेमपूर्ण व्यवहार करता हूँ, और यही मेरे अच्छे व्यवहार का रहस्य है।*
*शिष्य समझ गया कि संत तुकाराम ने उसे जीवन का यह पाठ पढ़ाने के लिए ही मृत्यु का भय दिखाया था ।*
*वास्तव में हमारे पास भी सात दिन ही बचें हैं :-*
*रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि, आठवां दिन तो बना ही नहीं है ।*
👏👏 *"आइये आज से परिवर्तन आरम्भ करें।"* 👏👏
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