प्रस्तुति - शशिधर पंडित
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
सत्संग के उपदेश- भाग 2-
कल का शेष :- यहां पर यह तफ्सील के साथ बयान करने की जरूरत नहीं है कि वह पवित्र सेवा क्या है जिसकी निस्बत ऊपर इशारा किया गया । पेड़ की नजीर ध्यान में रखने से उसका बयान मुख़्तसिर अल्फाज अल्फाज में हो सकता है।
जैसे पेड़ के नजदीक आने वालों को उसके फूलों की खुशबू से ज्यादा सुख मिलता है और जो पेड़ के पास आते हैं वह छाया में बैठकर धूप की तपिश और बारिश वगैरह से अमान पाते हैं और जो पेड़ के साथ गहरा रिश्ता कायम करते हैं वे वक्त मुनासिब पर उसके मीठे फलों का रस लेते हैं।
हुजूर राधास्वामी दयाल ने सत्संगमंडली का पेड़ कम व बेश इसी किस्म के फायदे के लिए संसार में कायम किया है यानी जो लोग सत्संग की किसी कदर नजदीकी में आवें उनके दिल को शांति और दिमाग को तरावट सत्संग की पवित्रत तालीम और सतसंगीयो की पवित्र रहनु गहनघ के असर से हासिल हो और जो लोग सत्संग के जेरेसाया आने की तकलीफ गवारा करें उन्हें काल, कर्म व मन इंद्रियो के उत्पात से अमान मिले और जो सत्संग के साथ गहरा रिश्ता कायम करें वे हुजूर राधास्वामी दयाल के चरणों की भक्ति, आत्मदर्शन व सच्चे मालिक के दरबार का लुफ्त उठावें।
जाहिर हैं कि इस किस्म की सेवा बआसानीव बखूबी तभी अंजाम पा सकती है जबकि आमतौर पर सत्संगी भाइयों व बहनों की रहनी गहनी संतमत की तालीम के मुताबिक हो।
मन कमबख्त का स्वभाव है कि थोड़ी सी बड़ाई पाकर या थोडा सा निरादर होने पर एकदम नीचता के गड्ढे में गिर जाता है और फिर विकारी अंग निहायत जोर-शोर के साथ अपना इजहार करने लगते हैं। मन की इस हालत से क्या इंसान क्या जमाअतो को नुकसान पहुंचता है।
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी दयाल की दया राधास्वामी सहाय राधास्वामी
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