**राधास्वामी!! 11-01-2021-आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) प्रेम दात गुरु दीजिये। मेरे समरथ दाता हो।।-(11वीं कडी तक) (प्रेमबानी-4-शब्द-9-पृ.सं.78)
(2) सतगुरु पूरे खोज कर हुआ चरन लौलीन। राधास्वामी कहें पुकार कर शिष पूरा लो चीन।।-(5वीँ कडी तक) (प्रेमबिलास-शब्द-124-दोहै शिष्य का अंग-पृ.सं.180,181)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-
कल से आगे -(118)
- अब जरा उन शब्दों को भी पढ़ लीजिये जो स्वयं शास्त्री जी ने अपनी पुस्तक के दूसरे भाग में आर्यसमाज के विषय में लिखे हैं:- "जहाँ तक तो आर्यसमाज के सिद्धांतों का संबंध है वहाँ तक तो वैदिक सिद्धांतों ने समस्त बुद्धिमान पुरुषों को मोहित कर लिया है ।
परंतु उसके अनुष्ठान में सर्वथा सामाजिक निर्बल है और वह इस बात से ही प्रकट है कि जिसको आर्यों के लिए नित्यधर्म और परम धर्म बताया था अर्थात् वेदों का पढ़ना पढ़ाना इत्यादि । पर आर्यसमाज में अधिकता उन पुरुषों की है जिन्होंने चार वेदों में को देखा भी नहीं । उनका पढ़ना पढ़ाना , सुनना सुनाना तो दूर की बात है। अर्थात् आर्यसमाज समष्टि रूप से इस विषय में नितांत कोरा है ।
और यह स्वतः सिद्ध बात है कि अनुष्ठान श्रद्धा के बिना हो ही नहीं सकता। जब तक हमें अपने धर्म के प्रवर्तक अपने गुरु के वाक्यों में पूर्ण विश्वास न हो उसके लिए हृदय में श्रद्धा न हो और उसकी आज्ञाओं को पूर्णतया मानना अपना कर्तव्य न समझ लिया हो तब तक उसके बचनों का पालन नहीं हो सकता।
आर्यसमाज ने बहुधा अपनी नीव केवल तर्क पर समझी है और अपनी बुद्धि के पीछे ऋषि के सिद्धांतों को चलाने का यत्न किया है। परंतु शास्त्रीय आधार को छोड़कर तर्क धार्मिक संस्थाओं के लिए अत्यंत हानिकारक है।
धर्म केवल अपने सिद्धांतों की सच्चाई के कारण ही नहीं फैला करता, किंतु उसके अनुयायियों के आचरणों से खेला करता है। क्योंकि साधारण लोग धर्म के तत्व और उसके रहस्य को विचार कर उसको मानने के लिए उद्यत नहीं होते जितना कि उसके अनुयायियों के चरित्र के प्रभाव से प्रभावित होकर उसको ग्रहण करते हैं।
आर्यसमाज का पतन केवल श्रद्धाहीन जीवन होने से ही हुआ है। यदि यह कहा जाय तो अत्युक्ति न होगी कि आर्यसमाजियों का जीवन नास्तिकता की ओर झुकता जा रहा है ।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा-
परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज !
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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