**राधास्वामी!! 23-01-2021- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) कोइ दिन का है जग में रहना सखी। ले सुध बुव घर की ओर चलो।।टेक।। -(सतपुर से भी अधर चलो। घर अलख अगम के पार बसो।। लख अचरज लीला मगन रहो। राधास्वामी चरन में जाय घुलो।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-2-पृ.सं.90,91)
(2) पाती भेजूँ पीव को प्रेम प्रीति सों साज। छिमा माँग बिनती कहूँ सुनिये पति महाराज।।-(बात काटनी मैं नहिं चाहूँ। सुपने भी यह मध नहिं लाऊँ।।-( ) (प्रेमबिलास-शब्द-129-पृ.सं.191,192,193)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।। 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-
कल से आगे:-( 128)-
ज्ञात हो कि पूर्वोक्त नियम अनुसार संतों ने सर्वसाधारण के हृदयों में सूक्ष्म परमार्थी विषयों के लिए अनुराग उत्पन्न करने और प्रमार्थियों कि समझ बूझ जागृत करने के लिए हर प्रकार के काव्य- रचना का उपयोग किया है। श्री ग्रंथ साहब को देखिये, उसमें हर प्रकार के राग और रागनियाँ विद्यमान हैं। चौतीसे, कवित्त, सवैये, छंद, चौपाई, बारहमासे, बसंत , होली आदि सभी प्रकार के पद संतों की बानी में मिलते हैं।
इसी प्रकार उन्होंने उल्टे शब्द अर्थात् पहेलियाँ भी रची है। कबीर साहब ने तो पचासों ऐसे शब्द बनाए हैं। उदाहरण के रूप में एक शब्द नीचे लिखा जाता है :- है कोई सुरज्ञान पंडित उलट बेद बूझे। पानी में आग लागी अंधे को सूझे।।टेक।
गदहा पीरथम तारधारी कच्छ बिलार नाचे। कूरम तेरे संग डोले घूस पुरान नाचे।।
हस्ती कारपन करे भैंसा कर जोड़े। ऊँट घोडे मगन भये बैल तान तोड़े।।
बकरी ने बाघ मारयो हिरन मारयो चीता। चील नगारो दे चली बटेरी बाज जीता।। अटकोरे पर ढोल बाजे सुन बे बहरे!
अंधे ने चौर धरयो धावे लँगरे।।
टुंडा मिरदंग झारे गूंगा पद गावे।
कहे कबीर इसको बिरला लख पावे।।
संभवतः आप यह सुनकर आश्चर्य करेंगे कि स्वयं वेद भगवान् में यह शैली प्रयुक्त हुई है। और यदि वेद ईश्वरकृत है तो मानना होगा कि स्वयं ईश्वर को पहेलियाँ कहना रूचीकर है। आप पंडित राजाराम साहब का अथर्व वेद- संहिता- भाष्य के नवें काँड का नौवां और दसवाँ सूक्त निकाल कर देखें कि उसमें क्या लिखा है। इस सूक्त का प्रकरण 'ज्योतिसंबंधी रहस्य' है। इस शीर्षक के नीचे पंडितजी ने फुटनोट दिया है जिसमें बतलाया गया है कि दोनों सूक्तो में रहस्य और पहेलियाँ है।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा
- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!*
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