**राधास्वामी!! 23-01-2021- आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) जक्त भाव भय लज्जा छोडो। सुन प्यारे तू कर भक्ति।।-(भाई भतीजों का डर मत कर। सुन प्यारे तू कर भक्ती।।) ( सारबचन-शब्द-दूसरा-पृ.सं.249)
(2) आज होली खेलो गुरु सँग आय।।टेक।। तन मन कुमकुम भर भर मारो। दृष्टि की पिचकार छुडाय।।-(नई प्रीति और नई परतीती। राधास्वामी हिये में दर्द जगाय।।) (प्रेमबानी-2-शब्द-37-पृ.सं.393)
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज- भाग 1-
कल से आगे-
इसके बाद नीचे लिखा हुआ शब्द पढ़ा गया-
जो जवाँ यारी करें खुल कर सुना।
आज दिल कोई राज बज्में यार का।।
( प्रेमबिलास, शब्द 110)
हुजूर अकदस ने इस शब्द का हवाला देते हुए फरमाया- जो शब्द इस वक्त पढ़ा गया उसके अंदर सच्चे प्रेमियों की हालत को बहुत व्याख्या के साथ बयान किया गया है और कहा गया है कि आशिकों की चाल दुनियाँ से निराली रहती है।
सत्संगी साहिबान ने भी पिछले 79 सालों में इस शब्द के अनुसार अपना यही रवैया और तरीके जिंदगी रक्खा। उनकी चाल भी दुनियाँ के लोगों से बिल्कुल निराली ही रही। जो सत्संग की शानदार इमारत हुजूर साहबजी महाराज ने बना कर खडी की है उसके आप तमाम प्रेमी भाई और बहनें बड़े-बड़े स्तंभ है। अपनी जिम्मेदारी का ख्याल रखते हुए और फर्ज याद रखते हुए आपको अपने तमाम काम करने चाहिए।
याद रखिए कि अगर कहीं पर एक भी स्तंभ कमजोर पड़ जाए तो सारी इमारत को खतरा हो सकता है। हुजूर साहबजी महाराज ने फरमाया था कि हुजूर राधास्वामी दयाल ने हमारी संगत को दुनियाँ की भलाई और सेवा के लिए चुन लिया है। अगर आप को इस महान सेवा को सफलता के साथ करना और इस तरह उन दाता दयाल की आज्ञा का पालन करना मंजूर है तो फिर आपको पूरे तौर पर कोशिश करनी होगी।
यह कभी नहीं हो सकता कि आप आप कर्तव्य पालन न करें और दुनियाँ की भलाई के सिलसिले में कोई कार्यवाही अपने आप हो जाय। इसलिए अब आप साहिबान में से हर एक को इसकी प्रीति के लिए पूरी कोशिश करनी चाहिए।
क्रमशः
**राधास्वामी!! 23-01-2021- आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:- (1) जक्त भाव भय लज्जा छोडो। सुन प्यारे तू कर भक्ति।।-(भाई भतीजों का डर मत कर। सुन प्यारे तू कर भक्ती।।) ( सारबचन-शब्द-दूसरा-पृ.सं.249) (2) आज होली खेलो गुरु सँग आय।।टेक।। तन मन कुमकुम भर भर मारो। दृष्टि की पिचकार छुडाय।।-(नई प्रीति और नई परतीती। राधास्वामी हिये में दर्द जगाय।।) (प्रेमबानी-2-शब्द-37-पृ.सं.393) 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज- भाग 1- कल से आगे- इसके बाद नीचे लिखा हुआ शब्द पढ़ा गया- जो जवाँ यारी करें खुल कर सुना। आज दिल कोई राज बज्में यार का।। ( प्रेमबिलास, शब्द 110) हुजूर अकदस ने इस शब्द का हवाला देते हुए फरमाया- जो शब्द इस वक्त पढ़ा गया उसके अंदर सच्चे प्रेमियों की हालत को बहुत व्याख्या के साथ बयान किया गया है और कहा गया है कि आशिकों की चाल दुनियाँ से निराली रहती है। सत्संगी साहिबान ने भी पिछले 79 सालों में इस शब्द के अनुसार अपना यही रवैया और तरीके जिंदगी रक्खा। उनकी चाल भी दुनियाँ के लोगों से बिल्कुल निराली ही रही। जो सत्संग की शानदार इमारत हुजूर साहबजी महाराज ने बना कर खडी की है उसके आप तमाम प्रेमी भाई और बहनें बड़े-बड़े स्तंभ है। अपनी जिम्मेदारी का ख्याल रखते हुए और फर्ज याद रखते हुए आपको अपने तमाम काम करने चाहिए। याद रखिए कि अगर कहीं पर एक भी स्तंभ कमजोर पड़ जाए तो सारी इमारत को खतरा हो सकता है। हुजूर साहबजी महाराज ने फरमाया था कि हुजूर राधास्वामी दयाल ने हमारी संगत को दुनियाँ की भलाई और सेवा के लिए चुन लिया है। अगर आप को इस महान सेवा को सफलता के साथ करना और इस तरह उन दाता दयाल की आज्ञा का पालन करना मंजूर है तो फिर आपको पूरे तौर पर कोशिश करनी होगी। यह कभी नहीं हो सकता कि आप आप कर्तव्य पालन न करें और दुनियाँ की भलाई के सिलसिले में कोई कार्यवाही अपने आप हो जाय। इसलिए अब आप साहिबान में से हर एक को इसकी प्रीति के लिए पूरी कोशिश करनी चाहिए। क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-[ भगवद् गीता के उपदेश]- कल से आगे :- जो इस भेद से वाकिफ है उसके लिए किसी का मारना और मरवाना दोनों गलत हो जाते हैं। अजी! मरना क्या है? शरीरधारी का शरीररूपी पुराना वस्त्र उतारकर और नया शरीररूपी वस्त्र पहन लेना ही तो है? आत्मा को न हथियारों काट सकते हैं, न आग जला सकता, न पानी तर कर सकता है और न हवा खुष्क कर सकती हैं। आत्मा न कट सकता है, न जल सकता है, न तर व खुष्क किया जा सकता है। वह सदा कायम रहने वाला, हर जगह व्यापक, अविनाशी, स्थिर और सनातन है । वह निराकार, ख्याल की पहुँच से परे हैं, एकरस बयान किया गया है। आत्मा को इन गुणों वाला जानते हुए शोक किस बात का?। 25। क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र -भाग 1- कल से आगे-(७) सत्तपुरुष राधास्वामी दयाल को अपना सच्चा माता-पिता और रक्षक समझ कर , उनके चरणों की ओट और सरन लेकर कार्यवाही परमार्थ की शुरू करना और जिस कदर तवज्जह और मेहनत हो सके, उनकी दया के बल और भरोसे के आसरे करना। तो अब उनको मुनासिब और लाजिम हुआ कि काल और माया के घेर से जिस कदर जल्दी बन सके निकल कर अपने निज देश में यानी अपने सच्चे माता और पिता राधास्वामी दयाल के चरणों में पहुँच कर अमर आनंद को प्राप्त होने और देहों के दुख सुख और जन्म मरण से अपना बचाव करें। ( 6 )- मालूम होवे कि राधास्वामी मत में ऊपर की लिखी हुई 7 बातों का निर्णय इस तौर से किया जाता है कि जीव उस कैफियत और हाल को अपने अंतर में, और हर एक देह में भी निरख और परख कर उसकी प्रतीति कर सकता है। किसी किताब या ग्रंथ या किसी पिछले महात्मा के बचन की गवाही नहीं दी जाती है, बल्कि कुदरत और रचना, जिस कदर की नजर में आती है उन बातों की गवाही और मजबूत सबूत देती है। और जो कोई चाहे थोड़े दिन अभ्यास संतों के जुगती का करके अपने अंतर में उसका फल और नतीजा देख कर सबूत इस बात का कि सिवाय सुरत- शब्द मार्ग के और तरह सच्चा और पूरा उद्धार नहीं होगा, हासिल कर सकता हैँ l
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
*🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज
-[ भगवद् गीता के उपदेश]-
कल से आगे :-
जो इस भेद से वाकिफ है उसके लिए किसी का मारना और मरवाना दोनों गलत हो जाते हैं। अजी! मरना क्या है? शरीरधारी का शरीररूपी पुराना वस्त्र उतारकर और नया शरीररूपी वस्त्र पहन लेना ही तो है? आत्मा को न हथियारों काट सकते हैं, न आग जला सकता, न पानी तर कर सकता है और न हवा खुष्क कर सकती हैं। आत्मा न कट सकता है, न जल सकता है, न तर व खुष्क किया जा सकता है। वह सदा कायम रहने वाला, हर जगह व्यापक, अविनाशी, स्थिर और सनातन है । वह निराकार, ख्याल की पहुँच से परे हैं, एकरस बयान किया गया है। आत्मा को इन गुणों वाला जानते हुए शोक किस बात का?। 25।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र -भाग 1-
कल से आगे-(७)
सत्तपुरुष राधास्वामी दयाल को अपना सच्चा माता-पिता और रक्षक समझ कर , उनके चरणों की ओट और सरन लेकर कार्यवाही परमार्थ की शुरू करना और जिस कदर तवज्जह और मेहनत हो सके, उनकी दया के बल और भरोसे के आसरे करना। तो अब उनको मुनासिब और लाजिम हुआ कि काल और माया के घेर से जिस कदर जल्दी बन सके निकल कर अपने निज देश में यानी अपने सच्चे माता और पिता राधास्वामी दयाल के चरणों में पहुँच कर अमर आनंद को प्राप्त होने और देहों के दुख सुख और जन्म मरण से अपना बचाव करें।
( 6 )- मालूम होवे कि राधास्वामी मत में ऊपर की लिखी हुई 7 बातों का निर्णय इस तौर से किया जाता है कि जीव उस कैफियत और हाल को अपने अंतर में, और हर एक देह में भी निरख और परख कर उसकी प्रतीति कर सकता है। किसी किताब या ग्रंथ या किसी पिछले महात्मा के बचन की गवाही नहीं दी जाती है, बल्कि कुदरत और रचना, जिस कदर की नजर में आती है उन बातों की गवाही और मजबूत सबूत देती है। और जो कोई चाहे थोड़े दिन अभ्यास संतों के जुगती का करके अपने अंतर में उसका फल और नतीजा देख कर सबूत इस बात का कि सिवाय सुरत- शब्द मार्ग के और तरह सच्चा और पूरा उद्धार नहीं होगा, हासिल कर सकता हैँ
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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