Thursday, January 14, 2021

दयालबाग़ सत्संग वचन 14/0

 **परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज- भाग 1- कल से आगे -(11 )-28 दिसंबर 1939

आज तमाम रात सत्संग हुआ । सत्संग में एक शब्द पढ़ा गया-    2

                                       

गुरु सम कोई हितकारी नाहीं (प्रेमबानी -3- बचन- 13 -शब्द 6)                                   

 इस शब्द का हवाला देते हुए हुजूर ने फरमाया - बात यह है कि जिस परिस्थिति में है सब लिखा गया था वह परिस्थिति अब नहीं है।  उस समय गुरु महाराज देह रूप में मौजूद थे।  इसलिये उस हालत में उन्होंने इस शब्द को लिख दिया।  अगर वह हालत मौजूद होती तो उससे काम चल सकता था।

 जब वह हालत मौजूद नहीं है तो फिर यह सवाल होता है कि उनसे नतीजे को कैसे प्राप्त करें।  हुजूर साहबजी महाराज हमारे लिए एक प्रोग्राम मुकर्रर कर गये और फिर नजरों से ओझल हो गये, इसलिये अगर आप इस शब्द से फायदा उठाना चाहते हैं तो मुनासिब है कि उन दयाल को अपने दरमियान बुलावें लेकिन मेरी राय में उनके बुलाने और हमारे दरमियान उनके आने की एक ही सूरत है और वह यह है कि उनका जो प्रोग्राम है उसको हम पूरा करके दिखलायें  या आप सब मिलकर उसके पूरा करने में लीन हो जावें जिससे कम से कम वह यह तो देख सकें कि आप में से कौन-कौन कोशिश व आज्ञा पालन किया चाहते हैं।                          

आपको मालूम है कि हुजूर साहबजी महाराज मद्रास में करीब 8:30 बजे हमारे दरमियान से तशरीफ ले गये थे। अब इस वक्त 7:30 बजा है। अभी एक घंटा बाकी है। मुमकिन है कि वह 8:30 बजे सतसंग में तशरीफ लावें, इसलिये आप साहबान कोशिश करने के सिलसिले में 8:00 बजे तक खूब कमर कसकर तैयार हो जायें। अगर कोई बुजदिल इस प्रोग्राम में हिस्सा नहीं लेना चाहता हैं तो वह हाथ उठावे। उसे हम बहादुर कहेंगे क्योंकि वह अपनी कमजोरी को बहादुरी के साथ सबके सामने जाहिर करने की जुरअत रखता है।  

                 

 क्रमशः🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**.


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज

-[ भगवद् गीता के उपदेश ]-(पहला अध्याय)-

{ अर्जुन का उदास होना}-

[ अर्जुन रणभूमि में आकर युद्ध का परिणाम यानी अपने प्यारों और रिश्तेदारों का खून और खानदान का नाश ख्याल में लाकर  जंग करने का इरादा छोड़ देता है ।]                                                 संजय राजा धृतराष्ट्र को शुरू हुये युद्ध का हाल सुनाता है:- पांडवों और कौरवों की फौजें रणभूमि में सजधज से खडी है। दुर्योधन पांडवों की फौज पर नजर डालता है और अपने गुरु द्रोणाचार्य जी से कहता है- जरा पाण्डवों की फौज पर , जो आपके शिष्य यानी राजा द्रुपद के बेटे ने आरास्ता की है, नजर डालिये। जरा उनके सूरमाओं को देखिए और अपने सरदारों पर भी तवज्जुह डालिये। भीष्म,कर्ण वगैरह कैसे कैसे जान पर खेलने वाले बहादुर युद्ध के लिए तैयार है। मुझे अपनी फौज, हालाँकि इसके सेनापति भीष्म है, नाकाफी(अपर्याप्त)  और पांडवों की फौज, जिसके सेनापति भीम है, जबरदस्त मालूम होती है।

(10)                                          

 इसलिए सब सिपाहियों और जरनेलो के  लिये मुनासिब है कि जहाँ कहीं भी नियुक्त हो भीष्म की रक्षा का पूरा ख्याल रक्खें।

 क्रमशः                     

  🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र- भाग्-1

- कल से आगे:-( 5)-

ऐसे खास लोग जिनको अपने अंतर में सच्चे मालिक की थोड़ी बहुत पहचान आई बहुत कम हैं और बाकी जीव या तो नकल से मेल करते हैं जैसे मूरत निशानों के पूजने वाले, या उस मालिक की कुदरत और ताकत का थोड़ा बहुत हाल सुनकर इस कदर जानते हैं कि कोई मालिक है, पर उसकी पहचान कुछ भी नहीं आई और इस सबब से उसके चरणों की प्रीति और मुहब्बत और उनके मन में नहीं पैदा होती ।

और उनका मालिक को इस कदर जानना कि वह मौजूद है भरोसे के बहुत कम होता है, क्योंकि जरा सी बहस और झगड़े में या पैदा होने कोई सख्त या आकस्मिक तकलीफ वगैरह में उनकी प्रतीति जल्द डामाडोल हो जाती है। और कोई कोई विद्यावान् मालिक के मौजूद होने से इनकार करते हैं। वह सख्त भूल और गलती में पड़े हैं और इस दोष का नुकसान आइंदा भोगेंगे

क्रमशः                                   

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

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