**राधास्वामी!! 21-01-21-आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) भक्ति महातम सुन मेरे भाई। सब संतन ने किया बखान।। कहीं सिंध सम करे प्रकाशा। कह़ी सोत और पोत कहान।।-(वह भंडार प्रेम का भारी। जाका आदि न अन्त दिखान।।) ( सारबचन- शब्द-पहला-पृ.सं.24a7,248)
(2) द्वार घट झाँको बिरह जगाय।।टेक।। यह तो देस बिगाना जानो। निज घर की गई सुद्ध भुलाय।।-(राधास्वामी दीनदयाल कृपालि। मेहर से निज घर दें पहुँचाय।।)(प्रेमबानी-2-शब्द-35-पृ.सं.391,392) 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज -भाग 1-
कल से आगे:-( 15 )-13 फरवरी 1940-
आज बसंत का दिन है। प्रातःकाल सत्संग में फरमाया- सन् 1861 में आज के दिन हुजूर स्वामीजी महाराज ने राधास्वामी मत की बुनियाद रक्खी और सत्संग आम जारी करने की मौज फरमाई और इस तरह से न सिर्फ आप साहबान के लिए बल्कि जैसा की अभी शब्द में पढ़ा गया जगत में आवागमन के खात्मा करने का प्रबंध फरमाया । मुख्तलिफ वक्तों में सत्संगी साहबान सत्संग में शरीक होने के बाद उन्होने जो कारर्वाई की और राधास्वामी दयाल के मुख्तलिफ स्वरूपो ने उनके साथ जो दया का बर्ताव किया और वक्तन् फवक्तन् प्रेम प्रीति की जो दात बक्शी उस पर सब कार्रवाई का नतीजा और मजमूई असर आज दूसरे लोगों की हालत में चेहरों से जाहिर है। आप सब साहबान इस बात पर मुझसे इत्तेफाक करेंगे कि जिस तरह आज तक की तमाम कार्यवाही बिल्कुल दुरुस्त रही है ऐसे ही आइंदा भी उसके दुरुस्त रहने में कोई शक नहीं।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज
-[ भगवद् गीता के उपदेश]-
कल से आगे:-
असत्य का कोई वजूद नहीं होता और सत् का कभी नाश नहीं होता। तत्वदर्शी इन रहस्यों को खूब समझते हैं। अविनाशी तो सिर्फ वह चेतन आत्मा है जो इस तमाम संसार के अंदर फैला है। उसे कोई नष्ट नहीं कर सकता।
इस अविनाशी और अनंत चेतन आत्मा ने जो भौतिक शरीर धारण कर रक्खे हैं नाशमान है। इसलिए उठो और युद्ध करो। जो लोग इस शरीरधारी को मारने या मरने वाले समझते हैं मूर्ख है । यह न मारता है न मरता है, न जन्म धारण करता है न मृत्यु को प्राप्त होता है और न इसके भाव का अभाव होता है ।
यह अजन्मा है, नित्य है, सदा रहने वाला है , सनातन है और शरीर के नाश होने पर ज्यों का त्यों बना रहता है। ।20।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर महाराज -प्रेम पत्र -भाग 1
- कल से आगे:-(४)-
उसी धनु और धार को पकड़ के जीव ऊपर को चढ़कर और एक दिन अपने निज स्थान यानी राधास्वामी दयाल के चरणों में पहुँचकर, परम आनंद को प्राप्त हो सकता है और इसी चढ़ाई का नाम सुरत शब्द योग है; l
( ५ )-माया और ब्रह्म (जिसको कालपुरुष भी कहते हैं) सत्तलोक के नीचे से प्रकट हुए। और ब्रह्मांड में निर्मल माया और पिंड में मलीन माया की रचना है और जब तक जीव इन दोनों के घेर में रहेगा, तब तक देहियों के साथ दुख सुख और जन्म मरण भोगता रहेगा, यानी जब तक कि सत्तलोक में, जो निर्माया (माया से रहित) देश है ,नहीं पहुँचेगा, तब तक काल क्लेश से छुटकारा नहीं होगा और पूरन अमर आनंद को प्राप्त नहीं होगा;
( ६)- यह दुनियाँ परदेश है और जिस कदर सामान और भोग विलास यहाँ पर काल और माया ने रचे हैं और जितने भी जीव के इस दुनियाँ में देह के संगी है, वे सब इसकी तवज्जह और ख्वाहिश को अपनी तरफ खैंच कर दिन दिन उसको अपने निज घर की तरफ से यानी राधास्वामी दयाल के चरणों से दूर डालते हैं। इस वास्ते इनमें जरूरत के मुआफिक बर्ताव करना और जरूरत के मुताबिक हर एक के प्रति भाव रखना मुनासिब है। और मुख्य तवज्जह अपनी राधास्वामी दयाल के चरणों में लगाना जरूरी और फायदेमंद है;l
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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