**राधास्वामी!! 22-01-2021- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) मेरे राधास्वामी जग* *आये। करन को जीव उबार।।-(सरन राधास्वामी धारो हो। मेहर से देवें पार उतार।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-9-पृ.सं.88,89)*
*(2) पाती भेजूँ पीव को प्रेम प्रीति सों साथ। छिमा माँग बिनती कहूँ सुनिये पति महाराज।। धन्य सुदेश जहाँ तुम बसते। भूमि पवित्र जहाँ पग धरते।।-( कच्चे फल पर सूर की दृष्टि पडे कुछ काल। सहजहि पक्का होत है सुनिये दीन दयाल।।) (प्रेमबिलास-शब्द-129-पृ.सं190,191)**
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा- कल से आग।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन
- कल से आगे-[ उल्टी बातें]-( 127 ) :-
प्रश्न -खैर विद्या और अविद्या का झगड़ा तो तय हो गया, पर यह तो बतलाइये की पुस्तक सारबचन में उलटी बातें क्यों लिखी हैं। जैसे लिखा है:- ★गुरु उल्टी बात बताई। मूर्खता खूब सिखाई।१।
सोते ने जमा कमाई। जगते ने माल गवाँई।।
★चोरी से खाविंद रीझा। सच्चे को मार खपाई।५।
अगनी को जाडा लागा। बर्षा से सूखी शाखा।६।
रोटी नित भूखी तरसे। पानी अब प्यासा तडपे।७।
बंझा नित जनती हारी। जनती पुनि बाँझ कहाई।९।
आर्यसमाजी आक्षेपक कहते हैं- " अगर आग को सर्दी लगती है तो राधास्वामीयों को चाहिए कि उस पर ले रजाइयाँ डालें" और यह कि "क्या यह सब स्वाँग मूर्खों में अपनी प्रतिष्ठा जमाने के लिए नहीं रचा कि हमारी बानी का अर्थ सिवाय हमारे कोई नहीं जानता?"
उत्तर- जब किसी की जबान बेकाबू हो जाती हैं तो वह जो चाहे कह सकता है। अनर्गल बातों का उत्तर कोई क्या दे? क्या आपको ज्ञात नहीं कि योग्य शिक्षक अपनी शिक्षा को प्रभावशाली बनाने और शिष्य को लाभ पहुँचाने के लिए भांति भांति की रीतियाँ प्रयुक्त करता है?
किंडरगार्टन क्या है? खेल के द्वारा शिक्षा देने का सरल और प्रभावशाली रीति ही तो है। प्रोफेसर आजाद की पुस्तक 'आबेहयात' के प्रारंभिक पृष्ठों को उलट कर देखिये तो आपको ज्ञात होगा कि प्राचीन काल से बुझारतो और पहेलियों के द्वारा माता पिता और शिक्षक बच्चों की बुद्धि को जागृत और उनकी विचारशक्ति को उचित दिशा में प्रवृत कराते आये हैं। मुझे स्वयं अपने बाल्यकाल का स्मरण है।
सबसे पहली पहेली, जो मैंने सुनी और जिस का पहरा गहरा प्रभाव चित्त पर पड़ा, यह थी-" हरी थी मन भरी थी सवालाख मोती जड़ी थी। राजाजी के बाग में दुशाला ओढ़े खड़ी थी"। उसके अनंतर 'आबेहयात' में पहेलियाँ पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ।
जैसे, "तरवर से एक तिरिया उतरी, उसने बहुत रिझाया।बाग का उसके नाम जो पूछा, आधा नाम बताया"। और "एक अचंभा देखो चल, सूखी लकड़ी लागे फल"। क्या इन उल्टी बातों के बताने वालों का भी उद्देश्य मूर्खों में अपनी प्रतिष्ठा जमाने का था? नहीं, नहीं, कदापि नहीं।
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा-
परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!*
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