Saturday, January 30, 2021

बजरंग बाण / गोस्वामी तुलसीदास

 जो बजरंग बाण तुलसीदास जी कृत है ! आजकल पुस्तको में उसकी भी कुछ चौपाइयां अधूरी है! सभी के सम्मुख यह पूर्ण बजरंग बाण 


यह बजरंग बाण प्राचीन पाण्डुलिपियों के आधार पर पाठ

संशोधनपूर्वक प्रस्तुत किया जा रहा है । साधकों मेंप्रसिद्ध

गोकुलभवन अयोध्या के श्रीराममंगलदास जी महाराज के यहाँ

से प्रकाशित पुस्तक तथा बीकानेर लाइब्रेरीकी

पाण्डुलिपियों का सहयोग इसके स्वरूप प्रस्तुति में मूल कारण है

। बाज़ार में उपलब्ध बजरंगबाण में २१चौपाइयांछूटी हुई हैं । जिनमें

दैन्यभाव की झलक के साथ इसके अनुष्ठान का दिग्दर्शन होता

है ।-- TulasiDas जी महlराज

बजरंगबाण का यह पाठक्रम प्रामाणिकऔर अनुभूत है । उपलब्ध

पुस्तकों में लगभग २१ चौपाइयाँ छूटी हुई हैं ।


निश्चय प्रेम प्रतीति ते,

विनय करैं सनमान ।

तेहि के कारज सकल शुभ,

सिद्ध करैं हनुमान ।।

जय हनुमन्त सन्त हितकारी ।

सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी ।।

जन के काज विलम्ब न कीजै ।

आतुर दौरि महा सुख दीजै

।।२।।

जैसे कूदि सिन्धु वहि पारा ।

सुरसा बदन पैठि विस्तारा ।।

आगे जाय लंकिनी रोका ।

मारेहु लात गई सुर लोका

।।४।।

जाय विभीषण को सुख दीन्हा ।

सीता निरखि परम पद लीन्हा

।।बाग उजारि सिन्धु मंह बोरा ।

अति आतुर यम कातर तोरा

।।६।।

अक्षय कुमार को मारिसंहारा ।

लूम लपेटि लंक को जारा ।।

लाह समान लंक जरि गई ।

जै जै धुनि सुर पुर में भई ।।८।।

अब विलंब केहि कारण स्वामी ।

कृपा करहु प्रभु अन्तर्यामी ।।

जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता ।

आतुरहोई दुख करहु निपाता ।।१०।।

जै गिरधर जै जै सुख सागर ।

सुर समूह समरथ भट नागर ।।

ॐ हनु-हनु-हनु हनुमंत हठीले ।

बैिरहिं मारू बज्र के कीलै ।।१२।।

गदा बज्र तै बैरिहीं मारो ।

महाराज निज दास उबारो ।।

सुनि हंकार हुंकार दै धावो ।

बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो

।।१४।।

ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमंत कपीसा ।

ॐ हुँ हुँ हुँ हनु अरि उर शीशा ।।

सत्य होहु हरि शपथ पायके ।

राम दुत धरू मारू धायके ।।१६।।

जै हनुमन्त अनन्त अगाधा ।

दुःख पावत जन केहि अपराधा ।।

पूजा जप तप नेम अचारा ।

नहिं जानत कछु दास तुम्हारा ।।१८।।

वन उपवन मग गिरि गृह माहीं

। तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं ।।

पाँय परौं कर जोरि मनावौं । अपने काज लागि गुण गावौं ।।

२०।

।जय अंजनि कुमार बलवन्ता

। शंकर सुवन वीर हनुमन्ता ।।

बदन कराल काल कुल घालक ।

राम सहाय सदा प्रतिपालक ।।२२।

।भूत प्रेत पिशाच निशाचर

। अग्नि बैताल काल मारी

मर ।।

इन्हें मारु तोहि शपथ राम की ।

राखुनाथ मर्जाद नाम की ।।२४।

।जनकसुतापति-दास कहावौ ।

ताकी शपथ विलम्ब न लावौ ।

।जय जय जय धुनि होत अकाशा ।

सुमिरत होत दुसहु दुःख नाशा ।।२६।

।चरन पकरि कर जोरि मनावौं |

एहि अवसर अब केहि गोहरावौं ।

।उठु-उठु चलु तोहि राम दोहाई

पाँय परौं कर जोरि मनाई ।।२८।

।ॐ चं चं चं चं चपल चलन्ता

। ॐ हनु हनुहनु हनु हनु हनुमंता ।

।ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल ।

ॐ सं सं सहमि पराने खलदल ।।३०।।

अपने जन को तुरत उबारौ ।

सुमिरत होतअनन्द हमारौ ।

।ताते विनती करौं पुकारी ।

हरहु सकल प्रभु विपति हमारी ।।३२।

।ऐसो प्रबल प्रभाव प्रभु तोरा ।

कस नहरहु दुःख संकट मोरा ।।

हे बजरंग, बाण सम धावो ।

मेटि सकल दुःख दरस दिखावो ।।३४।।

हे कपिराज काज कब ऐहौ ।

अवसर चूकि अन्त पछितैहौ ।।

जन की लाज जात ऐहि बारा ।

धावहु हे कपि पवन कुमारा ।।३६।।

जयति जयति जय जय हनुमाना ।

जयति जयति गुणज्ञान निधाना ।।

जयति जयति जय जय कपिराई ।

जयति जयतिजय जय सुखदाई ।।३८।।

जयति जयति जय राम पियारे ।

जयति जयति जय सिया दुलारे ।।

जयति जयति मुद मंगलदाता ।।

जयति जयति त्रिभुवन विख्याता ।।४०।।

यहि प्रकार गावत गुण शेषा ।

पावत पार नहीं लवलेषा ।।

राम रूप सर्वत्र समाना ।

देखत रहत सदा हर्षाना ।।४२।।

विधि शारदा सहित दिनराती ।

गावत कपि के गुण गण पांती ।।

तुम सम नही जगत् बलवाना ।

करि विचारदेखेउं विधि नाना ।।४४।।

यह जिय जानि शरण तव आई ।

ताते विनय करौं चित लाई ।।

सुनि कपि आरत वचन हमारे ।

मेटहु सकलदुःख भ्रम सारे ।।४६।।

यहि प्रकार विनती कपि केरी ।

जो जन करै लहै सुख ढेरी ।।

याके पढ़त वीर हनुमाना ।

धावत बाण तुल्य बलवाना ।।४८।।

मेटत आय दुःख क्षण मांहीं ।

दै दर्शन रघुपति ढिग जाहीं ।।

पाठ करै बजरंग बाण की ।

हनुमत रक्षाकरै प्राण की ।।५०।।

डीठ, मूठ, टोनादिक नासै ।

परकृत यंत्र मंत्र नहीं त्रासे ।।

भैरवादि सुर करै मिताई ।

आयसु मानि करैं सेवकाई ।।५२।।

प्रण करि पाठ करैं मन लाई ।

अल्प-मृत्यु ग्रह दोष नसाई ।।

आवृति ग्यारह प्रतिदिन जापै ।

ताकी छाँह काल नहिं चांपै ।।५४।।

दै गूगल की धूप हमेशा।

करै पाठ तन मिटै कलेशा ।।

यह बजरंग बाण जेहि मारै ।

ताहि कहौ फिर कौन उबारै ।।५६।।

शत्रु समूह मिटै सब आपै ।

देखत ताहिसुरासुर काँपै ।।

तेज प्रताप बुद्धि अधिकाई ।

रहै सदा कपिराज सहाई ।।५८।।

प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै।

सदा धरैं उर ध्यान ।।

तेहि के कारज तुरत ही,

सिद्ध करैं हनुमान ।।


इति श्रीगोस्वामितुलसीदासविरचितः बजरंगबाणः

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