*नारायण! नारायण!! नारायण!!!* / कृष्ण मेहता
🙏
*द्रौपदी के स्वयंवर में जाते वक्त श्री कृष्ण अर्जुन को समझाते हुए कहते हैं कि,*
*हे पार्थ !*
*तराजू पर पैर संभलकर रखना, संतुलन बराबर रखना,*
*लक्ष्य मछली की आंख पर ही केंद्रित हो उसका खास खयाल रखना,*
*तो*
*अर्जुन ने कहा,*
*"हे प्रभु " सब कुछ अगर मुझे ही करना है, तो फिर आप क्या करोगे ???*
*वासुदेव हंसते हुए बोले, हे पार्थ !*
*जो आप से नहीं होगा वह में करुंगा !*
*पार्थ ने कहा प्रभु ऐसा क्या है जो मैं नहीं कर सकता???*
*वासुदेव फिर हंसे और बोले, जिस अस्थिर, विचलित, हिलते हुए पानी में तुम मछली का निशाना साधोगे,*
*उस विचलित "पानी" को स्थिर तो *"मैं" ही रखूंगा !!*
*कहने का तात्पर्य यह है कि*
*आप चाहे*
*कितने ही निपुण क्यूँ ना हों,*
*कितने ही बुद्धिवान क्यूँ ना हों,*
*कितने ही महान एवं विवेकपूर्ण क्यूँ ना हों,*
*लेकिन आप*
*स्वंय हरेक परिस्थिति के ऊपर पूर्ण नियंत्रण नहीँ रख सकते ..*
*आप*
*सिर्फ अपना प्रयास कर सकते हो ,*
*लेकिन उसकी भी एक सीमा है,*
*और*
*जो उस सीमा से आगे की बागडोर संभलता है उसी का नाम *"ईश्वर" है ...🏹*
🙏
🌻💐🌿🎋🌸🌲🌺🌿🌳🌷💐🌹
*जय श्रीकृष्ण*
No comments:
Post a Comment