*कर्मफल का विधान*
शास्त्रों में कथा आती है कि एक बार नारद जी ने विष्णु जी से कहा की प्रभु, अभी मैं एक जंगल से आ रहा हूं, वहां एक गाय दलदल में फंसी हुई थी। कोई उसे बचाने वाला नहीं था।
तभी एक चोर उधर से गुजरा, गाय को फंसा हुआ देखकर भी नहीं रुका, उलटे उस पर पैर रखकर दलदल लांघकर निकल गया।
आगे जाकर उसे सोने की मोहरों से भरी एक थैली मिल गई।
थोड़ी देर बाद वहां से एक वृद्ध साधु गुजरा। उसने उस गाय को बचाने की पूरी कोशिश की। पूरे शरीर का जोर लगाकर उस गाय को बचा लिया.
लेकिन मैंने देखा कि गाय को दलदल से निकालने के बाद वह साधु आगे गया तो एक गड्ढे में गिर गया और उसे चोट लग गयी ।
*बताइए प्रभु यह कौन सा न्याय है ?*
श्री विष्णु जी मुस्कुराए, फिर बोले नारद यह जो कुछ हुआ, सही ही हुआ।
तुम उस चोर और साधु के पिछले जन्मों के कर्मों को नहीं जानते, इसलिए तुम्हें यह विधि का विधान अन्यायपूर्ण लग रहा है.
जो चोर गाय पर पैर रखकर भाग गया था, पिछले जन्मों में उसके शुभ कर्मों के कारण उसकी किस्मत में तो एक खजाना था लेकिन उसके इस जन्म में इस पाप के कारण उसे केवल कुछ मोहरे ही मिलीं।
वहीं उस साधु को गड्ढे में इसलिए गिरना पड़ा क्योंकि उसका जीवनकाल समाप्त हो गया था और उसके भाग्य में मृत्यु लिखी थी, लेकिन गाय के बचाने के कारण उसके पुण्य बढ़ गए और उसे मृत्यु एक छोटी सी चोट में बदल गई। इंसान के कर्म से उसका भाग्य तय होता है। अब नारद जी संतुष्ट थे।
यही बात शिवबाबा भी हमें समझाते हैं की तीनों कालों का चिंतन करके कर्म करना चाहिए, क्योंकि उसने भूतकाल में क्या कर्म किया हम नहीं जानते. भूतकाल पर आधारित ही उसका आज का वर्तमान काल है.
*सार:-सदा अच्छे कर्म मे ही प्रवत्त रहना चाहिए..!!*
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