'अब सब मापे जाएंगे' / राजकिशोर सतसंगी
संचित-कर्म कब कितनी की थी कमाई
भाग्य, प्रारब्ध-कर्म कितनी अपने संग आई
क्रियमाण-कर्म से हो रही कितनी कर्म-कटाई
सत्कर्म हैं कितने करते, कितनी हो रही भरपाई
.....अब सब मापे जाएंगे ।। 1 ।।
मन के अंदर की तमाम अच्छाई-बुराई
प्रेम दिल में कितनी किसके लिए पनपाई
प्रभु-लगन अब तक अपनी कितनी लग पाई
अंतर्ज्ञान की किवाड़ अपनी कितनी खुल पाई
.....अब सब मापे जाएंगे ।। 2 ।।
दिल में जुबां पर अंतर कितनी कम हो पाई
करते सचमुच सेवा या होती नाम कमाई
बड़बोलापन या हममें है सचमुच गहराई
बैठे ध्यान में या गुनावन में मन रहती रमाई
......अब सब मापे जाएंगे ।। 3 ।।
हैं हम खाली हाथ या अपनी कुछ हुई रसाई
अनहद-नाद अपने तक कौन-कौन सी पहुंच पाई
शब्द से अपनी सुरत, कितनी गहनता से जुड़ पाई
सुरत ने कितनी की ऊंचे लोकों तक चढ़ाई
.....अब सब मापे जाएंगे ।। 4 ।।
आईना होगा ऐसा, दिखेगी खुद की सच्चाई
रूह अपनी धुर-घर से, कितनी दूर तक चली आई
किस गति से आती-जाती, कौन-सी कब शरीर अपनाई
घर उसका भी होगा, कितनी उसकी लंबाई-चौड़ाई-ऊंचाई
......अब सब मापे जाएंगे ।। 5 ।।
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(राज किशोर सत्संगी)
दि : 12.01.2021
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