राधास्वामी!! 16-01-2021-आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) सुरत निज घर बिसरानी हो। जगत में पाय कुसंग।।-(मेहर प्यारे राधास्वामी की पावे। प्रेम का धारे अचरज रंग।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-5-पृ. सं.84)
(2) धन्य धन्य सखी भाग हमारे धन्य गुरु का संग री।।-(मेहर करें जब राधास्वामी सतगुरु संशय भरम होयँ भंग री।।) (प्रेमबिलास-शब्द-126-पृ.सं.186)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
*राधास्वामी!! 16-01-2021
-आज शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन-
कल से आगे-( 121 का भाग)-
प्रेमी जीव न मानें तेरी। तू अपनी सी कहत कहानी।१५।*
*हे विद्या! जिन लोगों के हृदय में सच्चे मालिक के दर्शन की उत्कंठा है और जो प्रेम और श्रद्धा की महिमा जानते हैं वे तेरे धोखे के जाल में नहीं आते। अपनी ओर से तू उनके फँसाने के लिए बहुतेरे जाल बिछाती हैं।*
*अस्तुत के भूखे तुम निस दिन। मान अस्तुति चाह भरानी।१६।
अपने औगुन आप बिचारों ।और काढन की जुगत कमानी।१७।
धोखे में क्यों जन्म बिताओ। सुरत शब्द में नित्त चढानी।१८।*
*हे भोले लोगो! तुमको संसारी मान प्रतिष्ठा की भूख ने लौकिक विद्या का अनुरागी बना रक्खा है।
तुम अपनी त्रुटियों पर विचार करो और उनके दूर करने का उपाय करो। क्यों धोखे में रहकर अपना जन्म नष्ट करते हो? तुम अपनी सुरत अर्थात वृति को अन्तरी शब्द में जोड़ने की चिंता करो।*
*विद्या छोड़ करो यह करनी। तौ पावो सतनाम निशानी।१९।
विद्या पढ मन से नहिं जीतो। बिरथा थोथे तीर चलानी।२०।
संत माता विद्या से न्यारा। विद्या ठगनी जीव ठगानी।२१।*
*भक्ति भाव प्रेम नहीं उनके। प्रेमी को वे मूर्ख जानी।२२।*
*विद्या के बल रहे अभिमानी। सन्तन से उन प्रीत न ठानी।२३।*
*जीव अकाज सोच नहिं मन में।*
*जक्त बडाई मन में समानी।२४।
तुम लौकिक विद्या की महिमा चित्त से हटाकर करनी अर्थात् साधन की ओर प्रवृत्त हो तब तुम्हें अंतर में सत्य नाम अर्थात सार शब्द का पता चलेगा।
ज्ञात हो कि तुम पुस्तकों के पढ़ने और सुनने से अपने मन को वश में नहीं ला सकते। तुम व्यर्थ ही थोथे तीर चलाते हो। सन्तमत और वस्तु है और लौकिक विद्याएँ और वस्तु है।* *अज्ञानी जीव लौकिक विद्याओं के धोखे में आ जाते हैं। ये अज्ञ भक्ति और प्रेम से शून्य होते हैं और प्रेमी और श्रद्धावान को मूर्ख जानते हैं।
( संभवत: इसी कारण 'एक आगरानिवासी' ने राधास्वामी-मतानुयायियों को स्वल्पज्ञान समझा है)।ये लोग लौकिक विद्या के बल-बूते पर बहुत कुछ ऐंठते हैं और संतों से प्रीति करने से भागते हैं। इन्हें अपने जीव की हानि का भी विचार नहीं है। लौकिक प्रतिष्ठा के मद ने इनके मन को उन्मुक्त कर रक्खा है।**
*मुंह से मिथ्या जग को कहते। बरतन में जो सच्चा मानी।२५।
मान अपमान समान न कीन्हा। बाचक विद्या रहे भुलानी।२६।
ताते विद्या सभी भुलाओ। संत सरन पकड़ो अब आनी।२७।
बे बिद्या के जो नर प्रेमी । सो संतन के सँग लिपटानी।२८।
विद्यवान एक नहिं ठहरे । ताते विद्या विघन पिछानी।२९।
ये नवीन वेदांती और बाचिक ज्ञानी मुँह से तो जगत् को झूठा पसारा कहते हैं पर बर्ताव में जगत् को सच्चा ही मानते हैं। इनको मान- अपमान का बड़ा ध्यान रहता है और उससे प्रभावित होकर वाचिक ज्ञान में लिपटे रहते हैं। तुम्हें चाहिए कि इस विद्या की ओर से ध्यान हटाओ ( पाँचो वृतियों के निरोध होने पर भी तो सब विद्या भूल ही जाती है)। और संत सतगुरु की शरण ग्रहण करो। जो लोग लौकिक विद्या से विहीन है पर श्रद्धावान है उन्हें संतों की चरण शरण ग्रहण करने में कठिनाई नहीं होती, पर जो अपने आपको बड़ा विद्वान् समझते हैं वे संत- चरण से दूर भागने ही की सोचते हैं । हे प्यारों! विद्या स्पष्टतः तुम्हारे परमार्थ के रास्ते में विघ्नकारक हो रही है।
क्रमशः
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश -भाग दूसरा -
परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!*
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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