**राधास्वामी!! 01-02-2021- आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) गुरु सोई जो शब्द सनेही। शब्द बिना दूसर नहिं सेई।। ऐसी करनी जा की देखें। आप आय सतगुरु तिस मेले।।-(चरनामृत परशादी लेवे। मान मनी तज तन मन देवे।।) (सारबचन-शब्द पहला-पृ.सं.254,255)
(2) उमँग कर सुनो शब्द घट सार।।टेक।। यह धुन है धुर लोक की धारा। इसने रचन रचाई झार।।-(राधास्वामी चरन सरन हिये धारो। पहुँचावें तोहि निज घर बार।।) (प्रेमबानी-2-शब्द-45-पृ.सं.398) 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज-**राधास्वामी!! 01-02-2021- आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:- (1) गुरु सोई जो शब्द सनेही। शब्द बिना दूसर नहिं सेई।। ऐसी करनी जा की देखें। आप आय सतगुरु तिस मेले।।-(चरनामृत परशादी लेवे। मान मनी तज तन मन देवे।।) (सारबचन-शब्द पहला-पृ.सं.254,255)
(2) उमँग कर सुनो शब्द घट सार।।टेक।। यह धुन है धुर लोक की धारा। इसने रचन रचाई झार।।-(राधास्वामी चरन सरन हिये धारो। पहुँचावें तोहि निज घर बार।।) (प्रेमबानी-2-शब्द-45-पृ.सं.398)
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज- भाग 1-
काल से आगे:-(20)-
फरवरी '1940- 'सत्संग के उपदेश' से एक बचन पढ़ा गया। इसमें इंग्लैंड की बेकारी और बेरोजगारी का जिक्र है और उसको दूर करने के तरीकों का बयान है।
हुजूर मेहताजी महाराज ने इस बचन की तरफ ध्यान दिलाते हुए फरमाया कि सत्संग में मौजूदा प्रोग्राम की जबरदस्त ताईद इस बचन के अंदर मौजूद है। हुजूर साहबजी महाराज सर्वशक्तिमान थे। उन्होंने सत्संग के लिए इस जगह हेडक्वार्टर मुकर्रर करके ऐसी शानदार बुनियाद डाली जिस पर कई किस्म की संस्थाओं की इमारतें बनाईं और फिर उनको बखूबी मजबूत बना दिया ।
वह यह सब काररवाइयाँ इस वजह से कर सकें कि वह सर्वशक्तिमान थे । लेकिन इस वक्त यह काम कमजोर हाथों में है और यह पॉलिसी वाइस प्रेसिडेंट साहब व दयालबाग के दूसरे कार्यकर्ताओं के हाथ में है। इसलिए एक बुनियाद पर कई इमारतें खड़ी नहीं की जा सकतीं। मौजूदा पॉलिसी यह है कि इस तरह का इंतजाम होना चाहिए कि जो भी इमारत बने इस तरीके से बनाई जाए कि वह अपनी बुनियाद पर खड़ी हो सके। मेरा यह है कि इस तरह का इंतजाम होना चाहिए कि हर आदमी अपने पाँव पर खड़ा हो सके और अपना गुजारा कर सके। क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
[ भगवद् गीता के उपदेश]
- कल से आगे:
- जो एकाग्रचित्त नहीं है वह निश्चयात्मक बुद्धि से शून्य है , उसे कभी मन की यकसूई हासिल नहीं होती। मन की यकसुई के बगैर किसी को शांति नहीं मिल सकती और जो अशांत हो उसे सुख कैसे प्राप्त हो सकता है?
जैसे समुद्र पर तैरते हुए जहाज को तेज हवा उड़ा ले जाती है ऐसे ही उसके मन की हर एक तरंग उसकी बुद्धि को उड़ा ले जाती है। इसलिये बार-बार कहना पड़ता है कि सिर्फ इंद्रियों को बस में रखने वाले पुरुष ही की बुद्धि स्थिर होती है। एकाग्रचित्त पुरुषों का दिन संसार के साधारण मनुष्य की रात है और संसार के मनुष्यों का दिन एकाग्रचित्त दृष्टि वाले पुरुषों की रात है।
जिस पुरुष के अंदर सब ख्वाहिशें दाखिल हो कर ऐसे निश्चल हो जाती है जैसे समुद्र में दाखिल होकर नदियाँ बेहरकत हो जाती है( समुद्र में जल तो भरा है लेकिन बेहरकत है), वही पुरुष शांति को प्राप्त होता है। इच्छाएँ उठाने वाला पुरुष कभी शांति हासिल नहीं करता।। ।70।
पुरुष के मन में न कोई इच्छा है न वासना, जिसमें ममता है न अहंकार, वही शांति को प्राप्त होता है। अर्जुन! यह है हमेशा कायम रहने वाली गति, यह है एक रस रहने वाली हालत। यहाँ पहुँच कर कोई शख्स मोह को प्राप्त नहीं होता। जो मरते दम भी इस मंजिल पर पहुँच जायं वह ब्रह्म- निर्वाण गति को प्राप्त होता है अर्थात् वह मरने पर ब्रह्म की जात ही में लीन हो जाता है। 72।
क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर महाराज-
प्रेम पत्र- भाग-1- कल से आगे:-( 14 )
जिस कदर कार्यवाही प्रमार्थ की की जाती है, उस सब का मतलब यही है कि अभ्यासी को गहरी प्रतीति और प्रीति सच्चे मालिक के चरणो में हासिल होवे। तब उसका अभ्यास सुरत के चढ़ाने का सहज और सुख पूर्ण बनता जावेगा । और जब तक की प्रतीति और प्रीति में कसर है, उसी कदर मन और इंद्री भी डावाँडोल रहती है, और अभ्यास भी जैसा चाहिए वैसा दुरुस्ती के साथ नहीं बनता।
इस वास्ते कुल पर परमार्थियों को मुनासिब है कि अंतर और बाहर सत्संग करके अपनी प्रतीति और प्रीति को मजबूत करें और दिन दिन बढ़ाते जावें, तो उनको अभ्यास का भी रस आ जावेगा और मन और इंडियाँ भी सहज में भोगों की तरफ से किसी कदर हट कर अंतर में शब्द और स्वरूप के आसरे उलटती जावेंगीं और राधास्वामी दयाल की दया और रक्षा और कुदरत के परचे मिलते जावेंगे कि जिनसे प्रीति और प्रतीति दिन दिन बढ़ती जावेगी और एक दिन काम पूरा हो जावेगा।
(15)-अभ्यासी को चाहिए कि मन और माया और काल और कर्म के धोखों और झकोले से होशियार रहें । यह सब अभ्यासी को अपने पदार्थ तमाशे पेश कर के रास्ते में रोकना और अटकाना चाहते हैं। सो जो कोई सतगुरु राधास्वामी दयाल को रहनुमा करके और उनकी दया का बल लेकर चलेगा,उस पर किसी का जोर या छल पेश नहीं जावेगा और आखिर सब थक कर रास्ते में रह जावेंगे और वह मैदान जीतकर उसके घर से सतगुरु राधास्वामी दयाल की दया से निकल कर बेखौफ अपने निज देश में पहुँच जावेगा। क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻*
* भाग 1- कल से आगे:-(20)-19 फरवरी '1940- 'सत्संग के उपदेश' से एक बचन पढ़ा गया। इसमें इंग्लैंड की बेकारी और बेरोजगारी का जिक्र है और उसको दूर करने के तरीकों का बयान है।
हुजूर मेहताजी महाराज ने इस बचन की तरफ ध्यान दिलाते हुए फरमाया कि सत्संग में मौजूदा प्रोग्राम की जबरदस्त ताईद इस बचन के अंदर मौजूद है। हुजूर साहबजी महाराज सर्वशक्तिमान थे। उन्होंने सत्संग के लिए इस जगह हेडक्वार्टर मुकर्रर करके ऐसी शानदार बुनियाद डाली जिस पर कई किस्म की संस्थाओं की इमारतें बनाईं और फिर उनको बखूबी मजबूत बना दिया । वह यह सब काररवाइयाँ इस वजह से कर सकें कि वह सर्वशक्तिमान थे । लेकिन इस वक्त यह काम कमजोर हाथों में है और यह पॉलिसी वाइस प्रेसिडेंट साहब व दयालबाग के दूसरे कार्यकर्ताओं के हाथ में है। इसलिए एक बुनियाद पर कई इमारतें खड़ी नहीं की जा सकतीं। मौजूदा पॉलिसी यह है कि इस तरह का इंतजाम होना चाहिए कि जो भी इमारत बने इस तरीके से बनाई जाए कि वह अपनी बुनियाद पर खड़ी हो सके। मेरा यह है कि इस तरह का इंतजाम होना चाहिए कि हर आदमी अपने पाँव पर खड़ा हो सके और अपना गुजारा कर सके। क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻*
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