**राधास्वामी!! 21-01-21- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) रूनझुन रूनझुन हुइ धुन घट में। सुन सुन लगी मोहि प्यारी रे।।-आगे चल पहुँची निज धामा। राधास्वामी के बलिहारी रे।। (प्रेमबानी-1-भाग10-पृ.सं.89)
(2) हे प्रीतम तुम गुन क्या गाऊँः चरनन पर मैं बलि बलि जाऊँ।।-(नखसिख शोभा जस तुम रची सजाय। दरश दिवानु बाबरी कैसे कहे बनिय।। (प्रेमबिलास-शब्द-129-पृ.सं.189,190)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा कल से आगे।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
* शाम सतसंग में पढा गया बचन
-कल से आगे:-(126)
- राधास्वामी-मत में तो लौकिक विद्या ही की निन्दा की गई है किन्तु इन मन्त्रो में तो स्वयं वेद भगवान् की और उनके सुनने और पढने तथा बुद्धि की नि:सारता प्रकट की गई है। पर उपनिषद् और वेद जो कुछ कहें सब सत्य है और राधास्वामी-मत की पुस्तकें जो कहें सब असत्य! क्या इसी विद्वत्ता और योग्यता के भरोसे राधास्वामी-मत की शिक्षा को दम्भ कहा जाता है? पर हाँ, याद आया कि यह दोष तो स्वामी दयानन्दजी ने गुरु नानक साहब जैसी पवित्र आत्मा के ऊपर भी लगाया था। उनके अनुयायियों की अनर्गल वाचालता की शिकायत ही क्या है?
ईं मुरीदाँ रू बसूए काबा चूँ आरन्द चूँ।
रूबसूए खानए खुम्मार दारद पीरे शाँ।
अर्थ-ये शिष्य अपना मुहँ काबे की ओर क्यों करने लगे जबकि इनके गुरु का मुहँ शाराबखाने की ओर रहता है।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा
-परम गुरु हुजूर महाराज!**.
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