**राधास्वामी!! 26-01-2021- आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) जक्त भाव भय लज्जा छोडो। सुन प्यारे तू कर भक्ति।। बिना मौज गुरु कुछ नहिं होता। सुन प्यारे तू टर भक्ती।।-(राधास्वामी कहत सुनाई। जैसी बने तैसी कर भक्ती।।) (सारबचन-शब्द-दूसरा-पृ.सं.251)
(2) आज घट दामिन दमक रही।।टेक।। घंटा संख धूम अति डारी। झिलमिल जोती चमक रही।।-(राधास्वामी चरन प्रीति हुई गहिरी। हिये में निस दिन खटक रही।।) (प्रेमबानी-2-शब्द-40-पृ.सं.395)
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज-भाग-1
- कल से आगे
:- आप सब लोग मिल कर यह तजवीज पास करें और इन तकलीफों व फिक्रों को दूर करने की दरख्वास्त उन दयाल के चरणों में भेजें। हुजूर साहबजी महाराज ने ड्रामा "दीन व दुनियाँ" में लिखा है कि इंसान दुनियाँ में इसलिए पैदा हुआ है कि वह दीन व दुनियाँ दोनों के लुत्फ उठाये। उन दयाल ने कई बार सत्संग में फरमाया कि मालिक सतसंगियों को उनके एक हाथ में स्वार्थ का लड्डू और दूसरे हाथ में प्रमार्थ का लड्डू देना चाहता है जिससे सत्संगी दोनों के लुत्फ व मजे लेते हुए अपने जीवन को सफल करें और जब हुजूर साहबजी महाराज ने ऐसा फरमाया तो फिर क्या वजह है कि सत्संगियों को परमार्थ की दात और बख्शिशश के साथ स्वार्थ की दात न दी जावे।
यह ठीक है कि किसी चीज में लिप्त न होना चाहिए। दुनियाँ की चीजों में लिप्त होना या उनके लिये बंधन कायम करना बुरा है लेकिन अगर अंतर की आँख खुली हुई है और गुरु महाराज की दया का हाथ अपने सिर पर है तो स्वार्थी सुविधाएँ मिलते हुए आप उन सुविधाओं के खराब असर से सुरक्षित रहेंगे। इसलिये मुनासिब होगा के आप सब साहबान आज मिलकर यह तजवीज पास करें और दरख्वास्त हुजूरी चरणों में भेजें।
मैं भी सत्संगीयों के साथ मिल कर हुजूर राधास्वामी दयाल के चरणों में प्रार्थना पेश करूँगा कि वह दाता दयाल तमाम सत्संगियो को इन चारों किस्म की दिक्कतों व फिक्रों से छुटकारा देंवें और उनकी सहायता फरमावें।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज
-[ भगवद् गीता के उपदेश]
- कल से आगे :
- जिसकी बुद्धि स्थिर या निश्चयात्मक हो जाती है वह हमेशा एकाग्रचित्त रहता है और जो स्थिरबुद्धि नहीं है उसके मन में किस्म किस्म के ख्यालात उठते रहते हैं।
बाज मूर्ख वेद-वाक्यों को पकड़कर बड़ी-बड़ी बातें बनाते हैं और कहते हैं कि वेदों में बयान किए हुए फलों के सिवाय मनुष्य और कुछ हासिल ही नहीं कर सकता। ये लोग, जो कामनाओं से सने हुए हैं और स्वर्ग के अभिलाषी हैं, उपदेश करते हैं कि कर्म का फल जन्म ही हो सकता है और आइंदा जन्म में सुख और ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए किस्म किस्म की रस्में तजवीज करते हैं। मालूम हो कि जिन लोगों के मन में सुख और ऐश्वर्य की वासना मौजूद है और जिन के मन इस किस्म के उपदेश पर मोहित हो जाते हैं वे निश्चयआत्मक बुद्धि के अधिकारी नहीं हैं।
उन्हें समाधि अवस्था हरगिज़ प्राप्त नहीं हो सकती। हे अर्जुन! वेदों में तीन गुणों के हद के इधर ही के विषय का वर्णन है, तुम्हें उस हद के पार जाना चाहिये। तुम्हे द्ंदो से आजाद, सदा सात्विकी वृतिवाला वाला, धन ऐश्वर्य की उलझन से लापरवाह और आत्मवान् बनना चाहिये ।।45।।
क्रमशः🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र- भाग-1-
कल से आगे:-(10)-
हर एक शख्स को जो शौक के साथ सतसंग में शामिल होकर दो तीन रोज बराबर बचन सुने और गौर से उनको बिचारे और अपने में और कुल रचना में उनकी कैफियत और हालत मुलाहिजा करें, तो उसको जरूर औसत दर्जे की प्रतीति उन सब बातों की, जिनका जिक्र ऊपर किया है, आ सकती है। पर जोकि मन सब जीवों का अनेक युगो से और अनेक जन्मों से कार्यवाही दुनियाँ की करता हुआ और इंद्री द्वारा भोगों का रस लेता चला आया है और अनेक तरह के कारोबार जरूरी और फजूल अपने जिम्मे ले लिये हैं, इस सबब से उसको इस कदर फुर्सत और मौका नहीं मिलता कि जो बचन परमार्थी सुने हैं उनको बिचार कर अपना इरादा अभ्यास करने का मजबूत करके कार्रवाई शुरू कर दे, या यह कि निंदको की झूठी सच्ची बातें उसके मन को भरमा कर उस प्रतीति को, जो बचनों के सुनने से थोड़ी बहुत आई है , डगमग कर देते हैं, या यह कि घरवाले और कुटुंबी और दोस्त और बिरादरी के लोग तान और तंज और धमकी और घुड़की के बचन सुना कर इसके मन को भरमा देते हैं और उस प्रतीति को जो थोड़ी बहुत आई है, ठहरने नहीं देते और तरह-तरह के खौफ दिलाकर परमार्थी कार्रवाई करने से उसको वंचित रखते हैं।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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