**राधास्वामी!! 13-01-2021- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) घट में दर्शन दीजिये। मेरे राधास्वामी प्यारे हो।।-(दरस अधार जियत रहूँ प्यारे। राधास्वामी सत करतारे।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-2-पृ.सं.81,82)
(2) मन सोच समझ रे भाई तेरे हित की कहूँ बुझाई।। मत शंका राखो कोई यह वाक्य सत्य हो आई- (यहि हुकुम दिया राधास्वामी संतन सँग मेल मिलाई।।) (प्रेमबिलास-शब्द-125-पृ.सं.182)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!! 13-01-2021 -
आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-
कल से आगे-( 120 )
'एक आगरावासी' ने लिखा है कि "आर्यसमाज और अन्य संप्रदायों में विशेष भेद यही है कि - (१) अन्य संप्रदाय=स्वलपज्ञान+ पूर्ण भक्ति रस।
(२) आर्यसमाज+ पूर्णज्ञान +शून्य भक्तिरस"।
मान लो कि उनका यह विचार ठीक है पर प्रश्न यह है कि आर्यसमाज को पूर्ण ज्ञान कहाँ से प्राप्त हुआ? जो समाज समष्टि-रूप से वेद आदि शास्त्रों के पढ़ने पढ़ाने तो क्या उनके दर्शन से भी वंचित है उसमें पूर्णज्ञान कैसे रह सकता है?
'आर्यसमाज का इतिहास' के दूसरे भाग के पृष्ठ 351 पर लिखा है- "अपने मनुष्यों को स्वयं दुराचारी सिद्ध करने और आपस में युद्ध करने ने अब भी आर्यसमाज की उन्नति को रोकने में अधिक प्रभाव डाला है। इसी कारण से बुद्धिमान और गंभीर पुरुष आर्यसमाज में कम प्रविष्ट होते हैं। और यदि कोई प्यासा आत्मा स्वामीजी महाराज के ग्रंथ पढ़कर आर्यसमाज में दाखिल होता है तो आर्यसमाजियों के कर्तव्य देखकर शीघ्र ही उदासीन हो जाता है। और अपने आप को इस संस्था से पृथक् रखने में ही अपनी भलाई समझता है'। जिस समाज से विद्वान और गंभीर पुरुष पृथक् रहना ही अच्छा समझते हों और जिसमें केवल साधारण बुद्धि और ओछे स्वभाव वालों की भरमार हो तो पूर्ण ज्ञान की थैली कौन सँभालेगा?
आश्चर्य यह है कि आर्यसमाज के मेंम्बरों को तो , जो पूर्वोक्त कथन के अनुसार श्रद्धा, भक्ति, वेदादि शास्त्रों के ज्ञान और क्रियात्मक जीवन में कोरे है , पूर्ण ज्ञान का मालिक कहा जाता है , और राधास्वामी- मत के सैकड़ों समझदार ग्रैजुएट लोगों को स्वलपज्ञान वाला बतलाया जाता है। इस प्रकार की बातें केवल पूर्ण ज्ञान ही समझ सकते हैं!
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा-
परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**
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