Friday, January 29, 2021

सतसंग दयालबाग़ सुबह 30/01

 **राधास्वामी!!-30-01-2021- आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-

                                                                             

(1) गुरू सोई जो शब्द सनेही। शब्द बिना दूसर नहिं सेई।। धन संतान प्रीति नहिं जाके। जक्त पदारथ चाह न ताके।।-(भेष नेष्ठा नित प्रति धारे। ले परशादी चरन पखारे।। ) ( सारबचन-शब्द-पहला-पृ.सं.254)                                                    

 (2) सुनो धुन घट में सूरत जोड।। गुरू चरनन में धार पिरीति। मन और इंद्री जग से मोड।।-( मगन हुई सतगुरु दर्शन पाय। राधास्वामी रूप लखा चितचोर।।) (प्रेमबानी-2-शब्द-44-पृ.सं.197)                            

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज-

भाग 1- कल से आगे:-

सत्संग का जो मौजूदा प्रोग्राम है उसमें चारों वर्णों के काम शामिल है, यानी आपको परमार्थी कार्रवाई के लिए रोजाना सुबह व शाम दो-तीन घंटे मिलते हैं, फैक्ट्री व शैक्षिक संस्थाओं में काम करके यानी अपनी संगत व बाहर के अनपढ़ व बेकार लोगों को तालीम देकर उनके लिए कारोबार जुटा कर उनकी मदद में सहायता करते हैं।

फिर आप मैन्युफैक्चरिंग का काम करके और बिजनेस में तिजारत को अपने हाथों में लेकर संगत के लिए रुपया पैदा करते हैं। इसी तरह से मुसीबत और बीमारी में आप अपने भाइयों की सेवा करते हैं और उनको आराम पहुँचाते हैं । मतलब यह कि हमारे मौजूदा सत्संग के प्रोग्राम में चारों वर्ण के कर्तव्य शामिल हैं और सत्संगी धीरे-धीरे इन वर्णो के गुण अपने अंदर पैदा करते जा रहे हैं।

                                                     

   इस तरह एक नामालूम तरीके से सत्संगियों के अंदर यह करैक्टर पैदा हो रहा है। जरूरत सिर्फ इस बात की है कि हम अपने इन तमाम कोशिशों को इंटेंसीफाई करें यानी जरा ज्यादा जोर व उत्साह के साथ करें। अगर आप इन गुणों को जरा जोर लगाकर और इधर तवज्जह देकर अपने अंदर और अपनी औलाद के अंदर बड़े पैमाने पर पैदा करने और बढ़ाने के लिए कोशिश करेंगे और उनकी तरक्की के लिए अपनी संगत के अंदर मुनासिब इंतजाम और सहुलियतें जुटायेंगे तो आपकी कौम सुपरमैन की कौम बन जावेगी जो इस प्रकृति की सबसे बढ़ कर कार्रवाई और एक नई रचना होगी।

क्रमशः                       

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज

-[भगवद् गीता के उपदेश]- कल से आगे:-

 मुनासिब है कि वह इंद्रियों को रोककर और एकाग्रचित्त हो कर मेरे ध्यान में बैठे। क्योंकि जो शख्स इंद्रियों को रोक लेता है उसी की बुद्धि स्थिर होती है। इंद्रियों के विषयों का चिंतवन करने से मनुष्य के दिल में उसकी मोहब्बत पैदा हो जाती है, मोहब्बत से उनके भोग की ख्वाहिश जागती है और यह ख्वाहिश पूरी न होने से क्रोध पैदा होता है, क्रोध से अविचार पैदा होता है, अविचार से स्मरणशक्ति बिगड़ जाती है,स्मरणशक्ति बिगड़ने से विवेक यानी निर्णय शक्ति नष्ट हो जाती है और विवेक के नाश होने पर खुद मनुष्य का नाश हो जाता है।

बरखिलाफ इसके साधक इंद्रियों को बस में किए हुए उनके विषयों में राग द्वेष से आजाद रहकर बरतता है और शांति को प्राप्त होता है और इस तरह शांत हो जाने पर उसके लिए दुख नहीं रहता क्योंकि जिसका चित्त शांत है उसकी बुद्धि जल्द ही स्थिर हो जाती है।। 65।।

क्रमशः                 

  🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻*


**परम गुरु हुजूर महाराज-प्रेम पत्र-

भाग-1-कल से आगे:-

 देखो जब बाप बैठा है या उस्ताद या हाकिम मौजूद है, उस वक्त लडके या नौकर कोई काम खिलाफ उनकी मर्जी और हुक्म के नहीं कर सकते और न खेल कूद और नामुनासिब कामों की तरफ तवज्जह करते हैं ।

 और जब यह तीनों नजर से हट गये, तो उसी वक्त लडकों और नौकरों का मन बेखौफ होकर चाहे जिस काम में लग जाता है। इसी तरह परमार्थी जीव का मन जब अपने सच्चे माता पिता और मालिक और सतगुरु राधास्वामी दयाल को हर दम हाजिर नाजिर देखता है, तब किस तरह और कामों में, सिवाय उनके जो राधास्वामी दयाल को पसंद है, जा सकता है और सिवाय उनके और कौन ऐसा जबर है कि जिसमें विशेष और गहरी प्रीति करेगा?

 जब ऐसी हालत मन में मन की हो गई, तब और क्या करना बाकी रह गया ? ऐसे प्रमार्थी जीव बहुत जल्द अभ्यास की मदद से रास्ता तय करते हुए अपने निज घर में यानी कुल मालिक राधास्वामी दयाल के सम्मुख पहुँचकर अपना काम पूरा कर सकते हैं। क्रमशः                      

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


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