**राधास्वामी!! 20-01-2021- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) मेरे राधास्वामी प्यारे हो। दरश दे बिपति हरो।।-(राधास्वामी लेव बचाई हो। अब मैं सरन पडो।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-9-पृ.सं.88)
(2) पाती भेजूँ पीव को प्रेम प्रीती सों साझ। छिमा माँग बिनती कहूँ सुनिये पति महाराज।।-( मैं औगुन की खान नकारी। तुम प्रीतम सब गुन भंडारी।।) (प्रेमबिलास-विनय-पत्र- शब्द-129-पृ.सं.188,189)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**राधास्वामी!! 20-01- 2021
आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन
- कल से आगे-( 125)-
अंत में हम आक्षेपको को का ध्यान इस वचन के शीर्षक की ओर आकृष्ट करेंगे जिसके नीचे पूर्वोक्त शब्द तीसरे नंबर पर आया है। वह शीर्षक यह है:-
" भेद वेदांत और हाल बाचक ज्ञानियों का और यह कि सिद्धांत पर वेदांत का सुरत-शब्द मार्ग की कमाई से प्राप्त होगा" ( देखो बचन 24वाँ सारबचन छंदबंद)।
यदि उन्होंने केवल इस शीर्षक की पंक्तियाँ ही पढ़ ली होती तो राधास्वामी- मत पर मिथ्या दोषारोपण करने के पाप से सहज में बच जाते हैं। पर कोई क्या करें? विद्यारूपी अविद्या ने उन लोगों के हृदयों में घर कर रक्खा है। और अस्मिता, राग, द्वेष आदि क्लेशों की भरमार हो रही है। हम पूछते हैं क्या साधारण जनता में सद्विद्या या परा विद्या के लिए अनुराग उत्पन्न कराना सचमुच जगत् में दंभ फैलाना है? क्या उपनिषदों में परा विद्या को अपरा विद्या पर श्रेष्ठता नहीं दी गई है?
क्या मुंडक उपनिषद में यह नहीं लिखा है कि मालिक का दर्शन न वेद पढ़ने से प्राप्त होता है,न मेधा( बुद्धि) से, न बहुत सुनने से (सीखने से), हाँ जिसको वह आप चुन लेता है वही उसे पा सकता है ।
उपनिषद के मूल मंत्र का अवलोकन कीजिये:-
नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यो न मेधया न बहुना श्रुतेन।
य मेवैष वृणुते तेन लभ्यस्तस्यैम आत्मा विवृणुते तनूं स्वाम् ।३।२।३। और क्या ऋग्वेद के पहले मंडल के १६४ सूक्त के मंत्र ३९ में तथा श्वेताश्वर उपनिषद में यह नहीं कहा गया है कि जो मनुष्य उस अविनाशी परम आकाश (परमात्मा) को नहीं जानता जो ऋचाओं ( वेदों) का तात्पर्य है और जिसमें सब देवता स्थित है वह ऋचा (वेदों ) से क्या करेगा ?
जो उसको जानते हैं वही शांति से रहते हैं (श्वेताश्वतर उपनिषद, अध्याय ४,श्लोक ८)
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा
- परम गुरु हजूर साहबजी महाराज!**
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