परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज- भाग 1- कल से आगे
:- तीसरी यह कि पिछले मौके पर तीन चार प्रॉविशियल एसोसिएशन ने अपने मेंबरों की तादाद में वृद्धि करने की कोशिश भी की थी। हमको यह इत्तिला मिली है कि कुल एसोसिएशंस के मेंबरों की तादाद बढ़ गई है। मेंबर होने का चंदा ₹5 सालाना के बजाए ₹3 सालाना कर दिया गया है।
इन रकमों के जमा करने की गरज यह थी कि सूबो के अंदर जिस किसी मुकाम के लोग इस कदर गरीब हैं कि वह स्टोर्ज अकेले नहीं खोल सकते या उनको प्राइवेट रजिस्टर्ड कंपनी में बदलने की हैसियत नहीं रखते, तो ऐसी सूरत में हमारे प्रॉविशियल एसोसिएशन उनको मदद पहुँचा सके। इसलिए आपमें से हर एक के लिए अपने प्रॉविशियल एसोसिएशन का मेंबर होना निहायत होना निहायत जरूरी है।
चौथे यह कि 21 दिसंबर को प्रदर्शनी का उद्घाटन हो गया है ।इस साल प्रदर्शनी में सामान ज्यादा और पिछले सालों के मुकाबले बढ़िया रक्खा गया है । आप साहबान जो इस दफा यहाँ तशरीफ लायें हैं उन सबसे मेरी यह दरख्वास्त होगी कि वे मेरे बार-बार कहने से पहले अपनी साल भर की जरूरी चीजों का तमखीना कर लें और जो छपे हुए फार्म उनको बिजनेस सेक्रेटरी साहब की तरफ से दिए गए हैं उनमें अपनी तमाम जरूरी चीजों की खानापूरी करके उनको बिजनेस सैक्रैटरी को दे दें।
एक बात और भी अर्ज करनी है कि कई महीनों से लोगों पर अमृतसर मिल की रकम बाकी है जो कि मिलकर अच्छी खासी और बड़ी रकम हो जाती है । आपको मालूम है कि आजकल चीजों की खासकर कपास की कीमत बहुत बढ़ गई है। मिल को कच्चे माल के खरीदने के लिए रुपए की जरूरत पड़ती है, इसलिए आप साहिबान अपने व स्टोर्ज के जिम्में जो रकमें बाकी हैं उनको एक दो रोज के अंदर अदा कर दें।
क्रमशः
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -
【भगवद् गीता के उपदेश】-
कल से आगे -(15)
- यहाँ पर यह स्पष्ट कर देना भी आवश्यक मालूम होता है कि यह अनुवाद न इस अभिप्राय से तैयार किया गया है कि दूसरे अनुवादको की त्रुटियाँ दिखलाई जायँ और न इस विचार से कि श्लोको का अपनी इच्छा के अनुसार अर्थ लगाकर राधास्वामीमत की शिक्षा के लिए सहारा ढूंढा जाय।
गत 2 वर्षों में कई ऐसे जिज्ञासुओ से मिलने का संयोग हुआ जो भगवद्गीता के अत्यंत प्रेमी है। उनके पूछने पर कुछ श्लोकों के अर्थ वर्णन करने पड़े जो उन्हें पसंद आये और जिनसे उनकी बहुत सी शंकाएं दूर हुई। कुछ उन जिज्ञासुओं के आग्रह से , कुछ विचार कर के सत्संगमंडली को भी भगवद्गीता के असली उपदेशों से जानकारी प्राप्त करने का अवसर मिले और कुछ इस आशा से कि कदाचित दूसरे जिज्ञासाओं को भी अपनी शंकाएं दूर करने में सहायता मिले, यह अनुवाद तैयार किया गया।
( 16)- हर अध्याय के आरंभ में उसका सारांश संक्षेप में लिख दिया गया है कि जिससे पाठकों को अध्याय का विषय समझने में सुविधा रहे। अनुवाद करने में किसी विशेष टीका का अनुसरण नहीं किया गया है । और जहाँ तक संभव हुआ भाषा अत्यंत सरल रखी गई है। इन अक्षरों के लेखक के विचार में सुयोग्य ग्रंथकार ने 15वें अध्याय के अंतिम श्लोकों में और 18वें अध्याय के श्लोक नंबर 64, 65 ,66 में गीता के उपदेशों की कुंजी प्रस्तुत कर दी है। इसलिए यह उन श्लोकों के ' परम उपदेश' ही के प्रकाश में तैयार किया गया है।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र -
भाग 1- कल से आगे :-(48 )-
[सत्तपुरुष राधास्वामी दयाल से जान पहचान और मुहब्बत करना]
-(१)- हर एक आदमी, जिस जिस शख्स से उसका कोई न कोई काम निकलता है, जान पहचान और मुहब्बत करता है, जैसे गृहस्थ आदमी अपनी जरूरत के मुआफिक किसी डॉक्टर या हकीम और साहूकार और किस्म किस्म के दुकानदार और हाकिम वक्त वगैरह से जान पहचान यानी मुलाकात और मुहब्बत पैदा करते हैं इस मतलब से कि जब उनको किसी चीज की जरूरत होवे या किसी मामले में इन लोगों से मदद दरकार होवे, तो वह वक्त पर आसानी से मिल जावे और किसी तरह का हरज और तकलीफ न होवे।।
(2)- जैसे दुनियाँ के कामों के अंजाम देने के वास्ते दुनिया के कारबारी लोगों की जरूरत होती है तो इसलिए दुनियादार लोग उन कारबारी शख्सों से मेल और मुलाकात रखते हैं, ऐसे ही परमार्थ के मामले में कुल मालिक और उसके प्यारे संत और साध और भक्तजन के दया और मदद और सहायता वक्त तकलीफ और रंज और मौत के दरकार होती है और इस वास्ते उनसे भी मोहब्बत और मेल रखना यह निहायत जरूरी है।
क्रमशः
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻
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