Thursday, March 4, 2021

सतसंग सुबह 04/03

 **राधास्वामी!! 04-03-2021- आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-    

                                                                 

(1) मुसाफिर रहना तुम हुशियार। ठगों ने आन बिछाया जाल।।-( सरन में आ जा लेउँ सम्हार। नाम सँघ होजा होत उधार।।) ( सारबचन-शब्द-चौथा-पृ.सं.279,280)                                                         

(2) दया गुरु क्या करूँ बरनन। अहा हा हा ओहो हो हो।। करत रही सुर्त गुरु दर्शनः अहा हा हा ओहो हो हो।।-(परस राधास्वामी हुई पावन। अहा हा हा ओहो हो हो।।) ( प्रेमबानी-3-शब्द-पहला-पृ.सं.2)                                🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज- भाग 1- कल से आगे:-( 40)- 9 नवंबर 1940 को प्रातः धर्मपुरा में सत्संग में 'गुरु गोविंद सिंह के जीवन चरित्र में से एक वर्क' बचन पढ़ा गया।।                                                             हुजूर ने सतसंगियों से सवाल किया कि आप लोग आराम पसंद बनना चाहते हैं, खुद आराम करना चाहते हैं या आयंदा नस्ल को आराम देना चाहते हैं?  जैसा कि 'गुरु गोविंद सिंह जी के जीवन चरित्र में से एक वर्क'  में लिखा है कि उस समय एक लेखक ने हाशिया आराई यानी (टीका टिप्पणी) की थी उसी तरह डेढ़ माह के करीब हुआ कि प्रेम प्रचारक के चीफ एडिटर साहब ने भी टीका टिप्पणी की थी कि जैसे गुरु साहब ने खंडे की पाहुल देना करार दिया था उसी तरह अब वर्तमान में भविष्य का ख्याल रखते हुए इंडस्ट्री की पाहुल के बारे में फैसला करना चाहिए और सिर्फ सतसंगियों को ही नहीं बल्कि तमाम हिंदुस्तानियों के लिए जरूरी है कि वह इंडस्ट्री को उन्नति दें। हुजूर साहबजी महाराज ने सन् 1935 में फरमाया था कि दयालबाग में 5 साल में साढे सात लाख से बढ़कर एक करोड़ रुपए की चीजें बनानी चाहिए। आप साहबान को उनके इस बचन को अपने दिल में अव्वल नंबर पर जगह देनी चाहिए और सब बातें पिछे रखनी चाहिए।।                                             हुजूर ने संगत से पूछा- क्या आपको ऐसी पाहुल मंजूर है?  फरमाया कि अगर मंजूर है तो आप लोग कौन सा शस्त्र धारण करेंगे और इस्तेमाल करेंगे?  जवाब में लोगों ने कहा कि- इंडस्ट्री।                                                 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-"[ भगवद गीता के उपदेश]- कल से आगे:- पुण्य कर्म करने वालों के लोक को प्राप्त हो कर और वहाँ बेशुमार साल तक विश्राम करके योगभ्रष्ट (योग में नाकामयाब) पुरुष इस दुनिया में किसी पवित्र और उच्च कुल में जन्म पाता है। और यह भी संभव है कि उसे किसी बुद्धिमान योगी के ही कुल में जन्म मिल जाय, यद्यपि ऐसा जन्म मिलना दुर्लभ है। जन्म धारण करने पर उसके अंदर पिछले  जन्म के बुद्धि संबंध अर्थात स्वभाव फिर से प्रकट हो जाते हैं और उनके पुराने फुर आने पर वह योग की सिद्धि के लिए फिर कोशिश शुरू कर देता है और पुराने अभ्यास की वजह से उसकी चाल अपने आप इस तरफ चलने लगती है। अजी! ऐसे लोगों का तो कहना ही क्या है,  वे लोग तक जो सिर्फ योग के जिज्ञासु या मुतलाशी है, शब्दब्रह्म अर्थात वेदों की हद से परे पहुंच जाते हैं। लेकिन वह योगी जो (पहले जन्म में योगभ्रष्ट हो गया था) तवज्जुह के साथ साधन करके, पापों की मैल से रहित होकर कुल जन्मों में सिद्ध बन कर परम गति को प्राप्त होता है।【45】       

                                                               

 योगी का दर्जा तपस्वी से ऊंँचा है। वह ज्ञानी से भी श्रेष्ट समझा जाता है और कर्ममार्ग पर चलने वालों से भी उत्तम है।  इसलिए हे अर्जुन!  तुम योगी बनो, और योगियों में जो श्रद्धा से पूर्ण है और अपना आत्मा मुझ में जोड़ कर मेरी उपासना करता है, वह मेरी राय में कामिल अर्थात् सिद्ध पुरुष है।【 47】 क्रमशः                               🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र- भाग 1- कल से आगे:- मगर ऐसी सूरत बहुत कम होती है, यानी जब परदेशी लोग आते हैं और हफ्ता, आठ दस दिन ठहरते हैं, या कोई कभी एक या दो महीने ठहरते हैं, तो उनके संग जो औरतें खास सत्संग और भजन के वास्ते आती हैं, वे अलबत्ता अपने परमार्थी शौक और उमंग के साथ सत्संग में बैठती है, मगर उनकी नजर हमेशा दर्शन पर जमी रहती है । और इसी तरह कुल मर्द और औरत अपनी नजर सत्संग में बचन कहने वाले पर जमाये रखते हैं । यह एक किस्म का खास अभ्यास सत्संग में जारी है कि या तो नजर जमा कर बैठते हैं, या आँखें बंद करके ध्यान की हालत में बैठते हैं। फिर बहुत कम ऐसा होता है कि मर्द या औरत एक दूसरे को देखें, सब अपने-अपने अंतरी आनंद और फायदे के वास्ते ध्यान के कायदे के मुआफिक नजर अपनी बाहर बचन सुनाने वाले पर और अंतर में ध्यान के स्वरूप पर जमा कर बैठते हैं। अब ख्याल करो कि इसमें किस कदर बेपरदगी है। सिर्फ मालिक की दया और दर्शन की प्राप्ति के वास्ते यह सब काम किया जाता है वह दुनियाँ और उसके ख्यालात उस वक्त वहाँ तो दूर रहते हैं। और दूसरे मुकामों और मौकों पर, जहाँ औरतें बाहर निकलती है, वहाँ कोई काम खास परमार्थी नहीं करती है बल्कि सैर और तमाशे देखती है। फिर ख्याल करो कि उस हालत में और सतसंग की हालत में किस कदर भारी फर्क है और वहाँ के और यहाँ के फायदे में किस कदर भारी फर्क है। क्मशः                                               🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

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