Tuesday, March 2, 2021

सतसंग सुबह RS 03/03


 **राधास्वामी!! 03-03-2021-आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-                                   

 (1) मत देख पराये औगुन। क्यों पाप बढावे दिन दिन।।-(यह बात कही मैं चुन चुन। कर राधास्वामी चरन अस्पर्सन।।) (सारबचन-शब्द-तीसरा-पृ.सं.278)                                                                    

  (2) दया गुरु क्या करूँ बरनन। अहा हा हा ओहो हो हो।।-( वहाँ से आगे पग धारन। अहा हा हा ओहो हो हो।।) (प्रेमबानी-3-शब्द-1 बचन बारहवाँ ,पृ.सं.1)                                              

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हजूर मेहताजी महाराज

- भाग 1- कल से आगे-( 39)-

8 नवंबर 1940 को लाहौर में पाठ के बाद ' सतसग के उपदेश' भाग 1 से बचन नंबर 26 "सच्चे सत्संग से क्या लाभ होते हैं ?" पढ़ा गया । हुजूर ने फरमाया-                                                                   

आप साहबान ने भी अभी जो बचन सुना है, उम्मीद है कि आपने उस पर गौर भी किया होगा। सत्संग करने से जीव की निर्णय- शक्ति जागती है। आपने साहबजी महाराज का 23- 24 साल तक सतसंग किया। आपको यह विचारना चाहिए कि उससे आप के अंतर में निर्णय- शक्ति जगी या नहीं। निर्णय- शक्ति के जाग्रत होने की पहचान यही है कि आप में अच्छी और बुरी बात के पहचानने की तमीज आ जाय।।

कुछ बातें ऐसी हैं जिनमें यह तमीज आसानी से की जा सकती है  जैसे लस्सी में से मक्खन अलग कर लेना तो आसान है लेकिन दूध की लस्सी में से पानी अलग करना बहुत मुश्किल है। अगर आपने सत्संग के अंदर रह कर इस तरह की नाजुक और बारीकी नहीं सीखी तो अब भी आपको इस बात को सीखने की कोशिश करनी चाहिए इस सिलसिले में इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि कुछ बातों के लिए जो लफ्ज़ मुकर्रर होते हैं वह देखने में आसान मालूम पड़ते हैं मगर उनके असली मानी बड़े गूढ होते हैं। इंसान को उनके असली मानी निकालने की कोशिश करनी चाहिए।

क्रमशः🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -

[भगवद् गीता के उपदेश]

- कल से आगे:-


 मेरी राय में जिस शख्स का अपने ऊपर काबू नहीं है उसके लिए योग प्राप्त करना मुश्किल है। लेकिन जिसे अपने ऊपर काबू हासिल है वह मुनासिब तरीके से यत्न करके कामयाब हो सकता है।                                              

 अर्जुन ने कहा- आपकी आज्ञा सिर आँखों पर हैं परंतु यह तो बतलावे कि अगर कोई ऐसा शख्स है कि जिसको अपने ऊपर काबू हासिल नहीं हुआ लेकिन उसे श्रद्धा पूरी है और उसका मन योग से भाग गया और उसे सिद्धि हासिल नहीं हुई तो उस बेचारे की क्या गति होगी? 

वह गरीब न दीन का रहा न दुनिया का। क्या वह ब्रह्मप्राप्ति के रास्ते से भरमाया जा कर, बेसहारे ,फटे बादल की तरह नष्ट हो जाता है?

  महाराज! कृपा करके मेरा संशय अवश्य पूर्ण रीति से निवारण कीजिए क्योंकि सिवाय आपके मुझे दूसरा कोई नजर नहीं आता जो उसे निवारण कर सके।                                                           

श्री कृष्ण जी ने उत्तर दिया - हे अर्जुन! ऐसा शख्स न इस लोक में नाश को प्राप्त होता है न परलोक में । जो कल्याण के लिए यत्न करता है वह कभी दुर्गति को प्राप्त नहीं होता।

【 40】 क्रमशः                             

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजूर महाराज-

प्रेम पत्र- भाग 1-

 कल से आगे:-

 और अब सत्संग का हाल सुनिये कि वहाँ सिर्फ उमर रशीदा यानी बूढ़ी औरतें खास कर शामिल होती है और उनके साथ भी कोई न कोई उनका खास रिश्तेदार संग होता है और पहले तो नौजवान औरतें आम सत्संग में शामिल नहीं की जाती है, अलहदा पर्दे में बिठाई जाती है कि जहाँ से पर्दे में वे बचन सुन सकती हैं, और जो कोई सत्संग में कभी-कभी बैठती हैं तो उनके खाविंद या माँ-बाप या भाई या लड़के उनके संग होते हैं और एक तरफ जो औरतों के लिये निश्चित है और जहाँ कोई मर्द नहीं बैठता है, उनकी बैठक रहती है। 

और जब सत्संग बर्खास्त होता है, तब उसी वक्त अपने रिश्तेदारों के साथ बाद उठ जाने मर्दों के अपने अपने घर चली जाती हैं। और जो कोई ठहरती है तो वह जनाने मकान में बैठती हैं। मर्दों की कतार में कोई औरत नहीं बैठती और न किसी की आपस में बातचीत होती है, बल्कि मर्दों की भी आपस में बातचीत बहुत कम होती है, क्योंकि सबके सब या तो सत्संग के बचनों के सुनने में लीन रहते हैं और बाद सत्संग के अपने अभ्यास में अलग बैठ जाते हैं ,औरतें जनाने मकान में और मर्द मर्दाने मकान में ।और जब सत्संग में बैठती है, तो चादर ओढ़कर कि जिससे उनका सर्व अंग ढका रहता है ।

और सिवाय चंद पुरानी और बूढ़ी औरतों के, बाकी औरतें और खासकर जवान औरतें, कभी कभी रात के सत्संग में आती हैं, हर रोज कोई नहीं आती। और जब आती है अपने खास रिश्तेदारों के संग और उन्हीं के संग घर को बाद सतसंग को वापस जाती है। और दिन के वक्त जवान औरतें बहुत कम सत्संग में शामिल होती हैं और जो कभी होती है, तो वह पर्दे के मकान में ,जो सत्संग घर से मिला हुआ है, बैठती है।

कोई कोई साहब अपनी स्त्री व र रिश्तेदार औरत का दूर और परदे में बैठना पसंद नहीं करते, तो उनकी स्त्री या रिश्तेदार और उनकी खास इजाजत के चादर ओढ़ कर बैठती है।

क्रमशः                                      

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻

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