**राधास्वामी!! 02-03-2021- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) सुरतिया सोच करत।
कस जाऊँ भौ के पार।।
-(गुरु दयाल नित कहत पुकारी।
घट में ले उपदेश सम्हार।।)
(प्रेमबानी-4-शब्द-14-पृ.सं.119-120)
(2) आज देखो बहार बसंत(सखी)।।
उमँग उमँग जगय लोट पोट होय, नैनन नीर बहे बेअन्त।
मौज चौज कुछ वार न पारा, तन मन धन सब वार धरंत।।
-(धन धन राधास्वामी पुरुस दयाला,
आप रची जिन आय बसन्त।।)
(प्रेमबिलास-शब्द-13-पृ.सं.17)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-
कल से आगे:
-( 172)
प्रश्न -११- इसका उत्तर ऊपर आ चुका है। समस्त सृष्टि उस मालिक से आविर्भूत हुई और रचना से पहले उसके अंदर गुप्त थी। आप प्रकृति को प्रथक मानकर अपने को आक्षेप से सुरक्षित समझते हैं किंतु आपको यह ध्यान नहीं कि इनके अतिरिक्त और कितने आक्षेप आप पर किये जा सकते हैं। संतमत में प्रकृति भी मालिक का अंश मानी गई है।
स्वामी शंकराचार्य का सिद्धांत वर्णन करते हुए पंडित राजाराम जी अपने वेदांत- दर्शन- भाष्य के पृष्ठ २९और ३० पर लिखते हैं:-" पर माया ब्रह्म की ही अनिर्वचनीय(जो कहने में न आ स।) शक्ति है, न कि स्वतंत्र सत्पदार्थ । इसलिए मायासम्बद्ध(माया में लिपटा हुआ) ब्रह्म ही अनभिज्ञ(भेद रहित) निमित्त उत्पादन है । माया के संबंध से ब्रह्म को प्रायः ईश्वर कहते हैं"। 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!
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