Tuesday, March 9, 2021

सतसंग Rs 09/03

 **परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज

- भाग 1- कल का शेष:

- बिला शुबह साहबजी महाराज के जमाने में बचन होते थे और लोग उनके सुनने का शौक रखते थे। परंतु उनको जिस कदर उनके सुनने का शौक था उस कदर उनके अनुसार चलने या उन को कार्यरूप में बदलने का शौक नहीं था और जब सिर्फ उनको सुन लिया गया और उनकी तारीफ कर दी गई परंतु उनके अनुसार अपने अंदर परिवर्तन नहीं किया गया, तो फिर इससे क्या लाभ हुआ?                                   

  हुजूर ने बातचीत का सिलसिला जारी रखते हुए वचन नंबर (148) का हवाला दिया- बचन नंबर (148) में बताया गया है कि "सत्संग में इस तालीम के मुताबिक हर शख्स को, मर्द हो या औरत, अमीर हो या गरीब, गोरा हो या काला••••••••••• अपनी जिस्मानी, दिमागी, व रूहानी ताकतों को बढ़ाने यानी उन्नति देने के लिए यकसाँ मौका मिलेगा बशर्ते कि उन ताकतों का सोसाइटी यानी मुल्क के लाभ के खिलाफ इस्तेमाल न करें, आदि।"                                                     

हुजूर ने फरमाया- आप देखेंगे कि साम्यवाद की यह शिक्षा धीरे-धीरे हमारे अंदर बराबर अपना घर बना रही है, घुस रही है। आप सत्संग के बड़े से बड़े कार्यकर्ता, अफसर या ओहदेदार को देखिए। आप यह स्वीकार करेंगे कि अब सत्संग के अंदर पहले की अपेक्षा भेदभाव बहुत कम है, और साम्यवाद की शिक्षा को बहुत पसंद किया जाता है ।

 तमाम ऐसी बातें व तरीके जो भेदभाव डालते और छोटे बड़े का फर्क बताते थे, बड़ी तेजी से दूर हो रहे हैं। हमको चाहिए कि सतसंग की इस नई शिक्षा को अपने रोम रोम में बसा ले और सत्संग में होने वाले परिवर्तनों से पूरी अनुकूलता करें। जिन लोगों को ड्रिल या व्यायाम से ऐतराज है वह कम से कम इस बात को स्वीकार करेंगे कि इससे लोगों में साम्यवाद का कितना प्रचार होगा ।

छोटे, बड़े, अफसर व मातहत तमाम लोगों के एक जगह खड़े होकर व्यायाम करने से साम्य और परिश्रम के विचार दिल में पैदा होते हैं। दरअसल हमारी यह कार्यवाही साहबजी महाराज के बचन 148 के अनुसार है और इस ख्याल से इस बचन की कार्यरूप में पूर्ति होती है।

 🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

[ भगवद गीता के उपदेश]

- कल से आगे:

- जो भक्त श्रद्धा के साथ जिस रूप की पूजा किया चाहता है मैं उसकी उसी श्रद्धा को पुख्ता बना देता हूँ। श्रद्धा के पूख्ता हो जाने पर वह उस रूप की भक्ति को याद करता है और उससे अपनी कामनाओं को पाता है मगर यह कामनाएँ पूरी मैं ही करता हूँ। ऐसे कमअक्लो को भक्ति का जो फल प्राप्त होता है वह निःसंदेह अस्थाई (थोड़े दिन का) होता है ।

 देवताओं की पूजा करने वाले देवताओं को प्राप्त होते हैं लेकिन मेरी पूजा करने वाले मुझको प्राप्त होते हैं। बेअक्ल मुझ अव्यक्त अर्थात् निराकार (अरूप) को देह में परिमित (महदूद) समझते हैं क्योंकि उन्हें मेरे प्रभाव( परले स्वरूप) की खबर नहीं है जो अविनाशी और सबसे उत्तम है। चूँकि मैं अपनी योग माया(प्रकृति के तीन गुणों के मेल से जो रचनात्मक शक्ति प्रकट हुई उसे योग माया कहा है) के पर्दे में छिपा हुआ हूँ इसलिए हर शख्स की मजाल नहीं कि मुझे जान ले।  यही वजह है कि भ्रम में भूली हुई दुनिया मेरे निज ग्रुप से, जो जन्म मरन से रहित है, नावाकिफ है।

【 25 】            

   क्रमशः                            

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजूर महाराज

- प्रेम पत्र- भाग 1

- कल से आगे:- [सारबचन शब्द नंबर 29, बचन 49 के अर्थ]-                                               

गुरु उल्टी बात बताई। मूर्खता खूब सिखाई।। १।।                                                      

अर्थ-गुरु ने उल्टी बात बताई कि संसार में मूर्ख होकर के बरत यानी चतुराई छोड़ दे तो तेरा कोई दामन न पकड़ सकेगा और दूसरे यह कि मूर यानी मूल पद की रक्षा और सम्भाल रख यानी इस तरफ से उलट कर राधास्वामी के चरणों को दृढ करके पकड़।                                                     

सोते ने जमा कमाई। जगते ने माल गवाँई।।२।।                                                       

   अर्थ- जिस किसी ने संसार की तरफ से उदास होकर इसके कारोबार में दखल देना छोड़ दिया यानी इस तरफ से सो गया और परमार्थ में लग गया, उसी ने जमा हासिल की यानी परमार्थ की कमाई करके प्रेम की दौलत पाई और जो संसार की तरफ मुतवज्जह रहा और बहुत होशियारी और शौक़ से उसके कारोबार करता रहा उसी ने परमार्थ की दौलत खोई और अपनी चेतनता मुफ्त गवाँ दी।।                                     

   बैठे ने रस्ता काटा । चलते ने बाटन पाई।।३।।                                                           

अर्थ- जो मन कि निश्चल होकर घर में बैठा वही ऊँचे की तरफ़ चढने लगा और परमार्थ का रास्ता तय करता हुआ घर की तरफ चला और जो मन चंचल रहा और इधर उधर संसार में दौड़ता रहा, उसको घर का रास्ता नहीं मिला और न उस तरफ को चला।                                                               

  धरती चढ गगना आई । सुन्नी पाताल समाई।।४।।                                                

   अर्थ- जो सुरत कि अभ्यास करके ब्रह्मांड में और उसके पर पहुँची, उसके संग धरती यानी माया भी जिसका आदि निकास त्रिकुटी से हुआ है, उलट कर अपने असल में जा मिली और जो सूरत कि संसार में लिपट  रही है वह माया के साथ नीचे से नीचे मुकाम तक उतरती चली गई।                                

 क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**राधास्वामी!! 09-03-2021-

परम गुरु परम श्रद्धेय, परम दयालु ग्रैशस हुजूर जी के पावन जन्मदिन के अवसर पर आज सुबह सतसंग में पढे  गये पाठ:-                                               

 (1) देव री सखी मोहि उमँग बधाई। अब मेरे आनँद उर न समाई।।(सारबचन-शब्द-पहला-पृ.सं.74,75)-विशाखापट्पनम दयाल नगर-307 उपस्थित)                                                       

 (2) कामना जग की तज मन यार।।टेक।। जगत गुनावन बिष कर जानो। ता में बहत सुरत की धार।।-(राधास्वामी चरन बसाय हिये में। पहुँची सत्तपुरुष दरबार।।) (प्रेमबानी-3-शब्द-5-पृ.सं.5)                                                                  सतसंग के बाद:-                                   

     (1) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।                                                            

  (2) बढत सतसंग अब दिन दिन अहा हा हा ओहो हो हो।।(प्रे.भा.मेलाराम जी)                    

  🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


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