*राधास्वामी!! 07--03-2021 आज शाम सतसंग मे पढे गये पाठ:-
(1) फागुन की ऋतु आई सखी। मिल सतगुरु खेलो री होरी।।(प्रेमबानी-3-शब्द4-पृ.सं.293)(ठाकुरद्वारा ब्राँच )
(2) पिरेमी सुरत रँगीली आय। दिया सतसँग में प्रेम जगाय।।-( बिनय करूँ राधास्वामी चरनन में । प्रीति रहे बाढत दिन दिन म़े।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-1- भाग 2-पृ.सं.123,124)
(प्रेमबिलास-शब्द-16-पृ.सं.20,21)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।
सतसंग के बाद :-
(1) राधास्वामी गुरु दातार। प्रगटे संसारी।। राधास्वामी सद किरपाल। मिले मोहि देह धारी।। (प्रेमबिलास-शब्द-25-पृ.सं.30,31-संत सू ।)
(2) गुरु ने मोहिं(हमारे गुरु) ऐसा रतन बढ दिया।। टेक।।(प्रेमबिलास-शब्द118,पृ.सं.174,17)
(3) होली खेलत आज नई सुरतिया उमँग भरी।।।
(4) बधाई है बधाई है बधाई है बधाई।
पावन घडी आई पावन घडी आई पावन घडीआई।। (5)
प्रेम सिंध से मौज उठ जगत किया उजियास।
सतगुरु रूप औतार धय घट घट प्रेम प्रकाश।।
हर सू है आशकारा जाहिर जहूर तेरा।
हर दिल में बस रहा है जलवा व नूर तेरा।।
(प्रेमबिलास-शब्द-136-पृ.सं.200)
शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-
कल से आगे:-( 183)-
आक्षेपक के 15 आक्षेपों के उत्तर भी दे दिये गये और उपनिषदों में वर्णित सृष्टि- उत्पत्ति का विवरण देकर के कतिपय आक्षेप भी उपस्थित कर दिये गए जिससे आक्षेपक को ज्ञात हो कि महापुरुषों की बानी के ऊपरी अर्थ लगाने से कैसे दूसरों के दिल दुखाने वाले आक्षेप उत्पन्न हो जाते हैं और बिना पर्याप्त अन्वेषण किये महापुरुषों के वचन के मनमाने अर्थ लगाकर मनुष्य कैसी भूलें कर बैठता है।
सत्संगी भाइयों को चाहिए कि उपनिषदों के उल्लेखों पर जो आक्षेप किये गये हैं उन्हें कोई महत्व न दें। स्पष्टतः उपनिष्द्कारों ने सृष्टि उत्पत्ति का वर्णन अलंकार रुप में किया है। वे ऐसे मूर्ख थे कि परमात्मा को एक साधारण मनुष्य समझकर मनुषीय क्रियाओं का कर्ता ठहराते।
पर इस प्रकार के अलंकारों के वास्तविक अर्थ वर्णन करना हिंदू और आर्या भाइयों का काम है। कैसा अच्छा होता यदि वे अपनी शक्ति राधास्वामी- मत पर आक्रमण करने में लगाने के बदले वेदों और उपनिषदों के कठिन और जटिल विषयों के स्पष्टीकरण में लगाते!
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा
-परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!
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