*राधास्वामी!!08-03-2021-आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-.
(1) करूँ बेनती राधास्वामी आज। काज करो और राखो लाज।।-(मैं जंगी तुम हो राधास्वामी। जोड मिलाया तुम अंतरजामी।।) (सारबचन-शब्द-3-पृ.सं.166)(विशाखापत्तनम-दयालनगर- 207सतसंगी उपस्थित)
(2) चलो घर गुरु सँग धर मन धीर।। टेक।। यह तो देश बिगाना जानो। सुद्ध कऱ निज घर की बीर।।-दया हुई स्रुत अधर सिधारी। पहुँची राधास्वामी चरनन तीर।।) (प्रेमबानी-3-शब्द-4-पृ.सं.4,5)
सतसंग के बाद:-
(1) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।
(2) बढत सतसंग अब दिन दिन अहा हा हा ओहो हो हो।।(मेलारामजी द्वारा)
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज-
भाग 1- कल का शेष:-
बिला शुबह साहबजी महाराज के जमाने में बचन होते थे और लोग उनके सुनने का शौक रखते थे। परंतु उनको जिस कदर उनके सुनने का शौक था उस कदर उनके अनुसार चलने या उनको कार्यरूप में बदलने का शौक नहीं था और जब सिर्फ उनको सुन लिया गया और उनकी तारीफ कर दी गई परंतु उनके अनुसार अपने अंदर परिवर्तन नहीं किया गया, तो फिर इससे क्या लाभ हुआ?
हुजूर ने बातचीत का सिलसिला जारी रखते हुए वचन नंबर (148) का हवाला दिया- बचन नंबर (148) में बताया गया है कि "सत्संग में इस तालीम के मुताबिक हर शख्स को, मर्द हो या औरत, अमीर हो या गरीब, गोरा हो या काला••••••••••• अपनी जिस्मानी, दिमागी, व रूहानी ताकतों को बढ़ाने यानी उन्नति देने के लिए यकसाँ मौका मिलेगा बशर्ते कि उन ताकतों का सोसाइटी यानी मुल्क के लाभ के खिलाफ इस्तेमाल न करें, आदि।"
हुजूर ने फरमाया- आप देखेंगे कि साम्यवाद की यह शिक्षा धीरे-धीरे हमारे अंदर बराबर अपना घर बना रही है, घुस रही है। आप सत्संग के बड़े से बड़े कार्यकर्ता, अफसर या ओहदेदार को देखिए। आप यह स्वीकार करेंगे कि अब सत्संग के अंदर पहले की अपेक्षा भेदभाव बहुत कम है, और साम्यवाद की शिक्षा को बहुत पसंद किया जाता है । तमाम ऐसी बातें व तरीके जो भेदभाव डालते और छोटे बड़े का फर्क बताते थे, बड़ी तेजी से दूर हो रहे हैं। हमको चाहिए कि सतसंग की इस नई शिक्षा को अपने रोम रोम में बसा ले और सत्संग में होने वाले परिवर्तनों से पूरी अनुकूलता करें। जिन लोगों को ड्रिल या व्यायाम से ऐतराज है वह कम से कम इस बात को स्वीकार करेंगे कि इससे लोगों में साम्यवाद का कितना प्रचार होगा ।
छोटे, बड़े, अफसर व मातहत तमाम लोगों के एक जगह खड़े होकर व्यायाम करने से साम्य और परिश्रम के विचार दिल में पैदा होते हैं। दरअसल हमारी यह कार्यवाही साहबजी महाराज के बचन 148 के अनुसार है और इस ख्याल से इस बचन की कार्यरूप में पूर्ति होती है।
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज
-[भगवद् गीता के उपदेश]
- कल से आगे:-
मेरी याद करने वाले 4 तरह के साधु जन होते हैं-(१) दुखिया,(२) जिज्ञासु, (३) स्वार्थी और (४) ज्ञानी। इन में से ज्ञानी, जो हमेशा अंतर में जुड़ा हुआ और एक प्रभु की भक्ति करने वाला है, सबसे उत्तम है। ज्ञानी मेरे साथ बेहद प्यार करता है और मुझे भी ज्ञानी अत्यंत प्रिय है। वैसे तो ये सब ही श्रेष्ठ हैं लेकिन मैं ज्ञानी को अपनी आत्मा या जान ही समझता हूँ क्योंकि वह युक्तात्मा (जिसका तार अंतर में जुडा है) मुझे ही उत्तम गति मानता हुआ मेरा ही आसरा लेता है।
इन्सान अनेक जन्म गुजरने पर ज्ञान से युक्त हो कर और यह समझता हुआ कि वासुदेव ही सब कुछ है मुझको प्राप्त होता है , लेकिन ऐसा महात्मा दुर्लभ होता है । वे लोग जिनका ज्ञान इच्छाओं ने नष्ट कर दिया है, अपनी प्रकृति से मजबूर होकर अनेक प्रकार के कर्मकांड में उलझे हुए दूसरे देवताओं को प्राप्त होते हैं ।
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क्रमशः🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुजूर महाराज
-प्रेम पत्र -भाग 1- कल से आगे:-
चाँद सूर पाताल से। निकले पट खोली।।८।।
अर्थ- और जब चढ़ते चढ़ते दसवें द्वार के परे गई तब सूरज और चाँद यानी त्रिकुटी और सुन्न स्थान दोनों पाताल यानी नीचे नजराई दिये।
चोरन पकड़ा साह। साह ने पहिरी चोली।।९।।
अर्थ- जब सुरत यानी जीव का उतार हुआ तब काल और कर्म और काम , क्रोध, लोभ मोह और अहंकार वगैरह चोरों ने इसको घेर कर बंद यानी चोले में गिरफ्तार कर लिया। अमृत पीपी मरें। जहर की गाँठी खोली।।१०।।
अर्थ -और जब वही जीव यानी सुरत उलट कर अपने घर की तरफ को चली और ब्रह्मांड के परे चढ गई और अमृत की धारा बहाने लगी तब वही सब चोर अमृत पीकर मर गये और उनकी जहर की गाँठ खुलकर भस्म हो गई।
राधास्वामी गाइया। यह भेद अमोली ।।११।।अर्थ-राधास्वामी ने यह अमोल पद का अमोल भेद गाया।
संत बिना को बुझिहै। यह मर्म अतोली।।१२।।
अर्थ- और इसको बिना संत के कोई नहीं समझ सकता है।
अजा मारिया भेड़िया। ले मिरगन टोली।।।
अर्थ-अजा बकरी को कहते हैं, सो यह सूरत सुरत की पिंड में थी यानी काल भेडिये का खाजा हो रही थी,सो जब सतगुरु की कृपा से उलट कर ब्रह्मांड और उसके परे पहुँची तो मन और इंद्रियों को संग लेकर काल भेड़िये पर चढ़ाई की और उसको मार दिया।
सुरत शब्द मेला भया। ले अनरस घोली।।१४।।
अर्थ-और तब सुरत का शब्द के साथ मेल हो गया यानी अमृत का भंडार खोल दिया।
क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻
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