: **राधास्वामी!! 07--03-2021 (रविवार) आज सुबह सतसंग मे पढे गये पाठ:-
(1) गुरु ध्यान धरो तुम मन में गुरु नाम सूमिर छिन छिन में।।(सारबचन-शब्द-तीसरा-पृ.सं.32-सिकंदरपुर ब्राँच)
(2) सुरतिया (सोग) बिरह भरी । रहे निस दिन चीत्त उदास।।(प्रेमबानी-3-शब्द-3-पृ.सं.3) सतसंग के बाद- पढे गये पाठ:- (1) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।(मेला रामजी)
(2) बढत सतसंग अब दिन दिन।(मेलारामजी)
(3) रंगीले रंग देव चुनर हमारी।।(प्रेमबानी-2-शब्द-2-पृ.सं.406)
(4) फागुन की ऋतु आई सखी। आज गुरु सँग फाग रचो री।।(प्रेमबानी-3-शब्द-15,पृ.सं.305)
(5) कचरज भाग जगा मेरा प्यारी, (मोहि) नाम दिया गुरु दाना री। जनम जनम की तृषि बुझानु, पी पी अमी अघाना री।।(प्रेमबिलास-शब्द-63-पृ.सं.81) (6) सुन री सखी मेरे प्यारे राधास्वामी। मोहि प्यार से गोद बिठाय रहे री।।(प्रेमबानी-4-शब्द-4-पृ.सं.32) (7) तमन्ना यही है कि जब तक जिऊँ। चलूँ या फिरूँ या कि मेहनत करूँ।। पढूँ या लिखूँ मुहँ से बोलूँ कलाम। न बन आये मुझसे कोई ऐसा काम।। जो मर्जी तेरी के मुआफिक न हो। रजा के तेरी कुछ मुखालिफ़ जो हो।। 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज- भाग-1
- कल से आगे:- (48)-
एक दिन सत्संग में "सत्संग के उपदेश " भाग 3 से बचन नंबर 147 व 148 पढे गये।
बचन नंबर 147 का सारांश यह है - इंसान को कितना ही समझाओ लेकिन वह अपनी वासनाओं का गुलाम होने की वजह से ही एक नहीं सुनता। बाज वक्त उसका दिमाग किसी बात को समझ भी लेता है लेकिन उसका दिल उसे स्वीकार नहीं करता।
उस बचन में एक नीच और दुष्ट कैदी का उदाहरण देने के बाद वर्णन किया गया है कि "आमतौर पर इंसान का यह हाल है कि दिन-रात उपदेश सुनते हैं और बहुत सी बातें समझते हैं लेकिन करते वही हैं जो उनका दिल चाहता है।
हुजूर ने इस पर फरमाया इस बचन को सुनने के बाद सत्संगियों को मालूम हो गया होगा कि लोग बचन सुनने का शौक तो रखते हैं लेकिन उन पर अमल खाक भी नहीं करते। यह बात मैंने पहले ही कई मर्तबा बयान की है कि आप साहबान ने साहबजी महाराज के काफी बचन सुन लिये। अब काम करने का वक्त है। मिल कर काम कीजिए और जो बचन सुने हैं उन पर अमल कीजिए।
अगर सिर्फ बचन सुनने का शौक रहा और उनके अनुसार अपने अंदर परिवर्तन नहीं किया गया तो फिर तुम्हारा बचनों के सुनने से लाभ क्या हुआ। माना कि सत्संग के अंदर आजकल बचन नहीं होते दर्शन नहीं होते परंतु यहाँ पर सारा कारोबार साहबजी महाराज के बचनो के अनुसार ही तो हो रहा है और जो बचन उन दयाल ने समय-समय पर फरमाये उनकी कार्य रूप में पूर्ति तो हो रही है।
आप देखिए कि आजकल दयालबाग में काम कैसी शांति और उत्तम विधि से अपने आप बगैर किसी खास परेशानी और फिक्र के हो रहा है। और जो आदर्श स्वार्थ और परमार्थ का नियत किया गया है हम सब उसकी ओर कैसी उत्तमता के साथ बढ़ रहे हैं और हमारी चाल दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। हर संस्था है साहबजी महाराज की आज्ञानुसार खूब पिल कर काम कर रही है।
क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज
-[भगवद् गीता के उपदेश]-
कल से आगे :-
बलवानों में इच्छा और राग से रहित बल मैं हूँ।जानदारो में धर्म के विरुद्ध न जाने वाली अर्थात् केवल धर्म की ओर चलने वाली इच्छा मैं हूँ। और ये जो सात्विकी, राजसी और तामसी भाव यानी गुण हैं मुझसे से जाहिर हुए हैं लेकिन ख्याल रक्खो कि मैं इन में स्थित नहीं हूँ किंतु ये मुझमें स्थित है।
चूँकि तीनों गुणों से प्रकट होने वाले इन भावों ने इस कुल संसार को भरमा रक्खा है इसलिये यह मुझे, जो इनसे परे और अविनाशी हूँ, जानने में असमर्थ है। मेरी इस अचरजी माया के, जो गुणों से पैदा होती है, रचे हुए पर्दों का चीरना कठिन है । जो मेरी शरण धारण करते हैं वे ही उसके पार निकल पाते हैं।
पापकर्मी, मूढ और नीच लोग जिनकी अक्ल माया से नष्ट कर दी है और जिन्होंने असुरों के अंग यानी शैतानी ख्वास इख्तियार कर रक्खें हैं मेरी शरण लेने से महरूम है
【15】
क्रमशः🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुजूर महाराज
-प्रेम पत्र-भाग 1- कल से आगे-( 51) -
[सार बचन शब्द नंबर 20, वचन नंबर 41 के अर्थ]:-
अंत हुआ जग माहिं। आदि घर अपना भूली।।१।।
अर्थ- सुरत भोगों में फँस कर जड़ खान में उतर गई और संतों के दसवें द्वार को, जो तीन लोक की रचना का आदि है और जहाँ से सुरत पिंड में उतरी थी, भूल गई।
मध्य गही पुनि आय। अन्त को फिर ले तोली।।२।।
अर्थ- और फिर मध्य यानी मृत्युलोक में नरदेह पाकर त्रिलोकी के अंतपद की, जोकि वही दसवाँ द्वार है, सुरत में खबर ली।
आदि अंत मध छोड़। गहीं जा अपनी मूली।।३।।
अर्थ- और फिर इन तीनों स्थान यानी दसवाँ द्वार और मृत्युलोक और जड खान को छोड़ कर अपने मूलपद यानी सत्तपुरुष राधास्वामी देश में पहुँची या उसका निशाना और इष्ट बाँध कर उस तरफ को चलने लगी। जीवन पदवी मिले। चढ़े जो अबके सूली।।४।।
अर्थ-सूली मतलब उस धार से है जो सहसदल कमल से गुदा चक्र तक आई है। सो जो कोई उस धार को पकड़ कर ऊपर को चढ़े , वही छठे चक्र के पार जाकर मौत को जीत लेगा और फिर सत्तलोक में पहुँच कर अमर हो जावेगा। ससे मारिया सिंघ। कौन यह समझे बोली।।५।।
अर्थ-और फिर वही सुरत, जो कि मुआफिक खरगोश के पिंड में गरीब और निर्बल थी, दसवें द्वार में पहुँच कर सिंह यानी काल को मार लेगी। मात-पिता दोउ जने। पूत ने बैठ खटोली।।६।।
जब सुरत गर्भ में यानी षटचक्र के देश में आई तब पहले उसने ब्रह्मांड और पिंड की रचना की यानी माया और ब्रह्म के पद उसी से प्रकट हुए, और जब सुरत जन्मी यानी जीव गर्भ के बाहर आया, तब वही जीव पिंड में उतर कर बैठने से माया और ब्रह्म का पुत्र हो गया।
मछली चढ़ी अकाश। धरन कर डारी पोली।।७।।
अर्थ- और जब सुरत मछली की तरह शब्द की धार पकड़ कर उल्टी यानी ऊपर को चढी तब वह धरन यानी पिंड को पोला या खाली कर गई।क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
*राधास्वामी!! 07--03-2021
आज शाम सतसंग मे पढे गये पाठ:-
(1) फागुन की ऋतु आई सखी। मिल सतगुरु खेलो री होरी।।(प्रेमबानी-3-शब्द4-पृ.सं.293)(ठाकुरद्वारा ब्राँच )
(2) पिरेमी सुरत रँगीली आय। दिया सतसँग में प्रेम जगाय।।-( बिनय करूँ राधास्वामी चरनन में । प्रीति रहे बाढत दिन दिन म़े।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-1- भाग 2-पृ.सं.123,124)
(प्रेमबिलास-शब्द-16-पृ.सं.20,21)
(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।
सतसंग के बाद :-
(1) राधास्वामी गुरु दातार। प्रगटे संसारी।। राधास्वामी सद किरपाल। मिले मोहि देह धारी।। (प्रेमबिलास-शब्द-25-पृ.सं.30,31-संत सू ।)
(2) गुरु ने मोहिं(हमारे गुरु) ऐसा रतन बढ दिया।। टेक।।(प्रेमबिलास-शब्द118,पृ.सं.174,17)
(3) होली खेलत आज नई सुरतिया उमँग भरी।।।
(4) बधाई है बधाई है बधाई है बधाई। पावन घडी आई पावन घडी आई पावन घडीआई।। (5) प्रेम सिंध से मौज उठ जगत किया उजियास। सतगुरु रूप औतार धय घट घट प्रेम प्रकाश।। हर सू है आशकारा जाहिर जहूर तेरा। हर दिल में बस रहा है जलवा व नूर तेरा।। (प्रेमबिलास-शब्द-136-पृ.सं.200)
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**राधास्वामी!! 07-03- 2021- आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे:-( 183)- आक्षेपक के 15 आक्षेपों के उत्तर भी दे दिये गये और उपनिषदों में वर्णित सृष्टि- उत्पत्ति का विवरण देकर के कतिपय आक्षेप भी उपस्थित कर दिये गए जिससे आक्षेपक को ज्ञात हो कि महापुरुषों की बानी के ऊपरी अर्थ लगाने से कैसे दूसरों के दिल दुखाने वाले आक्षेप उत्पन्न हो जाते हैं और बिना पर्याप्त अन्वेषण किये महापुरुषों के वचन के मनमाने अर्थ लगाकर मनुष्य कैसी भूलें कर बैठता है। सत्संगी भाइयों को चाहिए कि उपनिषदों के उल्लेखों पर जो आक्षेप किये गये हैं उन्हें कोई महत्व न दें।
स्पष्टतः उपनिष्द्कारों ने सृष्टि उत्पत्ति का वर्णन अलंकार रुप में किया है। वे ऐसे मूर्ख थे कि परमात्मा को एक साधारण मनुष्य समझकर मनुषीय क्रियाओं का कर्ता ठहराते। पर इस प्रकार के अलंकारों के वास्तविक अर्थ वर्णन करना हिंदू और आर्या भाइयों का काम है।
कैसा अच्छा होता यदि वे अपनी शक्ति राधास्वामी- मत पर आक्रमण करने में लगाने के बदले वेदों और उपनिषदों के कठिन और जटिल विषयों के स्पष्टीकरण में लगाते! क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा -परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**
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