Monday, March 8, 2021

सतसंग RS सुबह शाम DB 08/03

राधास्वामी!!08-03-2021-आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-.                                 

 (1) करूँ बेनती राधास्वामी आज। काज करो और राखो लाज।।-(मैं जंगी तुम हो राधास्वामी। जोड मिलाया तुम अंतरजामी।।) (सारबचन-शब्द-3-पृ.सं.166)(विशाखापत्तनम-दयालनगर- 207सतसंगी उपस्थित)                                                

 (2) चलो घर गुरु सँग धर मन धीर।। टेक।। यह तो देश बिगाना जानो। सुद्ध कऱ निज घर की बीर।।-दया हुई स्रुत अधर सिधारी। पहुँची राधास्वामी चरनन तीर।।) (प्रेमबानी-3-शब्द-4-पृ.सं.4,5)                         

 सतसंग के बाद:-                                             

 (1) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।                                                        

(2) बढत सतसंग अब दिन दिन अहा हा हा ओहो हो हो।।(मेलारामजी द्वारा)                        

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज

- भाग 1- कल का शेष:-

बिला शुबह साहबजी महाराज के जमाने में बचन होते थे और लोग उनके सुनने का शौक रखते थे। परंतु उनको जिस कदर उनके सुनने का शौक था उस कदर उनके अनुसार चलने या उनको कार्यरूप में बदलने का शौक नहीं था और जब सिर्फ उनको सुन लिया गया और उनकी तारीफ कर दी गई परंतु उनके अनुसार अपने अंदर परिवर्तन नहीं किया गया, तो फिर इससे क्या लाभ हुआ?                                    

 हुजूर ने बातचीत का सिलसिला जारी रखते हुए वचन नंबर (148) का हवाला दिया- बचन नंबर (148) में बताया गया है कि "सत्संग में इस तालीम के मुताबिक हर शख्स को, मर्द हो या औरत, अमीर हो या गरीब, गोरा हो या काला••••••••••• अपनी जिस्मानी, दिमागी, व रूहानी ताकतों को बढ़ाने यानी उन्नति देने के लिए यकसाँ मौका मिलेगा बशर्ते कि उन ताकतों का सोसाइटी यानी मुल्क के लाभ के खिलाफ इस्तेमाल न करें, आदि।"                                                     

हुजूर ने फरमाया- आप देखेंगे कि साम्यवाद की यह शिक्षा धीरे-धीरे हमारे अंदर बराबर अपना घर बना रही है, घुस रही है। आप सत्संग के बड़े से बड़े कार्यकर्ता, अफसर या ओहदेदार को देखिए। आप यह स्वीकार करेंगे कि अब सत्संग के अंदर पहले की अपेक्षा भेदभाव बहुत कम है, और साम्यवाद की शिक्षा को बहुत पसंद किया जाता है ।

तमाम ऐसी बातें व तरीके जो भेदभाव डालते और छोटे बड़े का फर्क बताते थे, बड़ी तेजी से दूर हो रहे हैं। हमको चाहिए कि सतसंग की इस नई शिक्षा को अपने रोम रोम में बसा ले और सत्संग में होने वाले परिवर्तनों से पूरी अनुकूलता करें। जिन लोगों को ड्रिल या व्यायाम से ऐतराज है वह कम से कम इस बात को स्वीकार करेंगे कि इससे लोगों में साम्यवाद का कितना प्रचार होगा ।

छोटे, बड़े, अफसर व मातहत तमाम लोगों के एक जगह खड़े होकर व्यायाम करने से साम्य और परिश्रम के विचार दिल में पैदा होते हैं। दरअसल हमारी यह कार्यवाही साहबजी महाराज के बचन 148 के अनुसार है और इस ख्याल से इस बचन की कार्यरूप में पूर्ति होती है। 🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**

**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज

-[भगवद् गीता के उपदेश]-

 कल से आगे:-

 मेरी याद करने वाले 4 तरह के साधु जन होते हैं-(१)  दुखिया,(२) जिज्ञासु, (३) स्वार्थी और (४) ज्ञानी। इन में से ज्ञानी, जो हमेशा अंतर में जुड़ा हुआ और एक प्रभु की भक्ति करने वाला है, सबसे उत्तम है। ज्ञानी मेरे साथ बेहद प्यार करता है और मुझे भी ज्ञानी अत्यंत प्रिय है।

 वैसे तो ये सब ही श्रेष्ठ हैं लेकिन मैं ज्ञानी को अपनी आत्मा या जान ही समझता हूँ क्योंकि वह युक्तात्मा (जिसका तार अंतर में जुडा है) मुझे ही उत्तम गति मानता हुआ मेरा ही आसरा लेता है। इन्सान अनेक जन्म गुजरने पर ज्ञान से युक्त हो कर और यह समझता हुआ कि वासुदेव ही सब कुछ है मुझको प्राप्त होता है , लेकिन ऐसा महात्मा दुर्लभ होता है ।

 वे लोग जिनका ज्ञान इच्छाओं ने नष्ट कर दिया है, अपनी प्रकृति से मजबूर होकर अनेक प्रकार के कर्मकांड में उलझे हुए दूसरे देवताओं को प्राप्त होते हैं ।

【20】                          

  क्रमशः🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजूर महाराज

 -प्रेम पत्र -भाग 1- कल से आगे:-

                                                

 चाँद सूर पाताल से। निकले पट खोली।।८।।                                                

अर्थ- और जब चढ़ते चढ़ते दसवें द्वार के परे गई तब सूरज और चाँद यानी त्रिकुटी और सुन्न स्थान दोनों पाताल यानी नीचे नजराई दिये।                                                    

   चोरन पकड़ा साह। साह ने पहिरी चोली।।९।।                                                          

अर्थ- जब सुरत यानी जीव का उतार हुआ तब काल और कर्म और काम , क्रोध, लोभ मोह और अहंकार वगैरह चोरों ने इसको घेर कर बंद यानी चोले में गिरफ्तार कर लिया। 

अमृत पीपी मरें। जहर की गाँठी खोली।।१०।।                                                             

 अर्थ -और जब वही जीव यानी सुरत उलट कर अपने घर की तरफ को चली और ब्रह्मांड के परे  चढ गई और अमृत की धारा बहाने लगी तब वही सब चोर अमृत पीकर मर गये  और उनकी जहर की गाँठ खुलकर भस्म हो गई।                                               

 राधास्वामी गाइया। यह भेद अमोली ।।११।।

अर्थ-राधास्वामी ने यह अमोल पद का अमोल भेद गाया।                                        

 संत बिना को बुझिहै। यह मर्म अतोली।।१२।।                                                     

 अर्थ- और इसको बिना संत के कोई नहीं समझ सकता है।                                    

 अजा मारिया भेड़िया। ले मिरगन टोली।।।                                                 

अर्थ-अजा बकरी को कहते हैं, सो यह सूरत सुरत की पिंड में थी यानी काल भेडिये का खाजा हो रही थी,सो जब सतगुरु की कृपा से उलट कर ब्रह्मांड और उसके परे पहुँची तो मन और इंद्रियों को संग लेकर काल भेड़िये पर चढ़ाई की और उसको मार दिया।                  

   सुरत शब्द मेला भया। ले अनरस घोली।।१४।।                                                          

 अर्थ-और तब सुरत का शब्द के साथ मेल हो गया यानी अमृत का भंडार खोल दिया।           

क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻


राधास्वामी!! 08-03- 2021

- आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-

कल से आगे:-( 184)-

 बृहदारण्यक उपनिषद के पहले अध्याय के चौथे ब्राह्मण के अंत में एक बार फिर सृष्टि-उत्पत्ति का वर्णन आया है।वहाँ लिखा है -"आरंभ में यह केवल आत्मा अकेला ही था। उसने इच्छा की,कि मेरे लिए स्त्री हो, 'तब मैं संतान वाला बनूँ, और मेरे लिए धन हो तब मैं कर्म करूँ••••••••••• मन ही इसका आत्मा (पति) है । (वाक यानी) वाणी (इसकी) पत्नी है; प्राण संतान है••••••••••••

( १७)"।  'वाक' शब्द का अर्थ वाणी या शब्द है और इस अवतरण में वाक् को पत्नी ठहराया गया है। अब यदि आत्मा की पत्नी का अर्थ शब्द ध्यान में रखकर पहले दो अवतरणों का अर्थ लगाया जाए तो हमारे प्रायः सभी आक्षेप कट जाते हैं। निघंटु में, जोकि वैदिक शब्दों का कोष है, वाच् शब्द के (जिससे वाक् बनता है)

५७ पर्यायवाची शब्द दिये है। उनमें 32 में नंबर पर 'शब्द' प्रायवाची शब्द है। इसका धातु 'शप'  और अर्थ चिल्लाना बतलाया जाता है इसलिये 'वाक' शब्द का अर्थ शब्द लगाना अनुचित न होगा । और उपनिषद के पहले अवतरण का अर्थ यह ठहरेगा कि सृष्टि के आदि में केवल आत्मा था। आत्मा पहले सुन्नसमाधि अवस्था में था।

 एक समय आया कि उसमें जागृति हुई और उसे 'अहम' अर्थात 'मैं' का ज्ञान हुआ। फिर वह डरा अर्थात उसकी शक्ति का अंतर्मुख (केंद्र की ओर ) सिमटाव हुआ, पर शीघ्र ही उसका डर जाता रहा अर्थात सिमटाव बंद  होकर बाहर की ओर शक्ति का फैलना आरंभ हुआ। प्रत्येक शक्ति में क्षोभ  उठने की यही क्रिया देखने में आती है। और जब किसी निष्क्रिय पिंड को सक्रिय किया जाए तो उसमें क्रिया या कंप भी इसी रीति से होती है।

 सक्रिय होने पर वह पिंड कम्पित हो जाता है। उपनिष्द्कार ने इसी क्रिया को 'डरना' पद से निरूपण किया है।  क्रमशः।                    

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻                                   

यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा-

परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!


**राधास्वामी!! मार्च महीने के कुछ महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दिवस् व प्रोग्राम:-                                                                              

9 मार्च 2021 ग्रैशस हुजूर जी पावन जन्मदिन। 09-03-1937)।।                                                     

★14 मार्च 2021 परम गुरु हूजूर महाराज जी पावन जन्मदिन।(14-03-1829)।।              

★20-मार्च 2021- सभा मीटिंग-(शनिवार).                                       

★21-मार्च-2021-(रविवार) -भंडारा परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज।।                        

  ★28-मार्च-2021-परम गुरू हुजूर महाराज साहब  पावन जन्मदिन-(28-03-1861)                                

★29-मार्च 2021-सोमवार- होली!                            

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**राधास्वामी!! 08-03-2021-आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-   

                                                                        

   (1) होली खेलन आये सतगुरु जग में। हिल मिल के अब सरन पडो री।।(प्रेमबानी-3-शब्द-9-पृ.सं।299)(विशाखापट्टनम-दयालनगर-197 उपस्तिथ)                                                                    

  (2)पिरेमी सुरत रँगीली आय। दिया सतसँग में प्रेम जगाय।। मिले नित घट में रस आनंद। कटे सब काल करम के फंद।।-(हुई सतसँग में भारी धूम। नाच रहे सब मिल झूम और धूम।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-1-पृ.सं.124,124)                                                     

  (3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरग-कल से आगे।।                                                           

सतसंग के बाद:-       

                                         

 (1)अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।                                                                                                

  (2) बढत सतसंग अब दिन दिन अहा हा हा ओहो हो हो।।(मेलाराम जी)                                               

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻

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