Thursday, March 11, 2021

सतसंग सुबह RS-DB- 12/03

 **राधास्वामी!!12-03-2021-आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-                                   

 (1) माँगू इक गुरु से दाना।। घट शब्द देव पहिचाना।।-

(मन हो गया बहुत निमानि। अब राधास्वामी चरन समाना।।)

 (सारबचन-शब्द-11वाँ-पृ.सं.643,644) (लखनऊ ब्राँच-231उपस्थिति )                  

  (2) भाव धर गुरु सन्मुख आई।।टेक।।

 सुरत प्यारी बँध रही तन में। बचन सुनत हिये उमँगाई।।-

(मेहर करी गुरु लिया अपनाई। राधास्वामी गुन निस दिन गाई।।)

(प्रेमबानी-3-शब्द-8-पृ.सं.7)                     

     सतसँग के बाद:-  

                                           

    (1) राधास्वामी  मूल नाम।।                               

 (2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।                                                                    

(3) बढत सतसँग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।                                

  🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज

-भाग 1- कल से आगे

 परमार्थी करनी करने से ही परमार्थ के मार्ग पर चलने का अधिकार पैदा होता है। बचन सुनना बिना करने के बेफायदा है। इसी तरह से उस सिपाही और उसके तमाम हथियारों से क्या फायदा जो उनको संग्राम भूमि में अच्छी तरह से चला न सके। जो विद्वान अपनी विद्या पर अमल नहीं करता वह केवल वाचक ज्ञानी कहा जावेगा ।

यदि बचनों को सुना और उनको एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल दिया और उनसे अपने अंदर कोई परमार्थी परिवर्तन नहीं होने दिया और न ही कोई परमार्थी कार्रवाई की और इस कारण हृदय ज्यों का त्यों कठोर बना रहा तो कहने के लिए तो उसने वचन सुन लिया लेकिन वास्तव में उसके हृदय के अंदर जहर ज्यों का त्यों भरा रहा।

ये सब बातें बेफायदा है। यदि बचन न हो लेकिन आपस में प्यार व मोहब्बत हो और यह सवाल रहे कि राधास्वामी दयाल की कोई सेवा और संगत की बेहतरी का कोई काम हमसे बन आवे, बड़ों के लिए हमारे दिल में इज्जत हो और छोटों के लिए प्यार व मोहब्बत हो तो यह हालत पहली से बेहतर है।

इसलिए आज आप भी प्रेम विद्यालय के उन छोटे बच्चों की तरह राधास्वामी दयाल से यह प्रार्थना करें कि हे मालिक! आप अपना प्रेम व भक्ति का दान हम सबको प्रदान करें और हमारे अंदर ऐसा परिवर्तन पैदा करें कि हम सतसंगियो को अपने भाई और सतसंगिनों को अपनी बहिनें और सब बच्चों को अपने बच्चे समझें।

इस तरह से अगर आपके दिल में सबके लिये प्यार व हमदर्दी पैदा हो जाए तो बहुत संभव है कि हमारे इस अंग को देख कर प्रसन्न हों और ऐसी दया फरमावें कि हम सबको जल्दी ही अपने चरणों में बुला लें।                        

  🙏🏻राधास्वामी🙏🏻



**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज

-[ भगवद् गीता के उपदेश]

- कल से आगे:-                        

  क्योंकि यह फायदा है कि जिस जिस भी रूप को याद करता हुआ जीव आखिर में शरीर को छोड़ता है हमेशा उसी की चाह से रँगा हुआ वह खास उसी रूप को प्राप्त होता है । इसलिये मुनासिब है कि तुम मेरी याद हर तुम करते हुए जंग करो। मन व बुद्धि को मुझ में जोड़ रखने से तुम निःसन्देह मुझे ही को प्राप्त होगे और जो शख्स लगातार अभ्यास  करके अपने चित्त को ऐसा अंतर्मुख कर लेता है कि वह किसी दूसरी चीज की तरफ नहीं दौड़ता वह लगातार चिंतवनन (याद) करता हुआ अजायब (दिव्य) परम पुरुष को प्राप्त होता है जो शख्स मरने के वक्त स्थिर मन के साथ, प्रेम रंग लेकर और योगबल से अपने प्राण को भँवो के मध्य (बीच) में खींचकर सर्वज्ञ, अनादि और सब के मालिक, सूक्ष्म बल्कि अति सूक्ष्म, सबके आधार , ख्याल से परे , सूर्य की तरह प्रकाशवान, अंधेरे के पार परम पुरुष की याद करता है वह इस अजायब पुरुष में समा जाता है।

【 10】 क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर महाराज-

प्रेम पत्र -भाग 1- कल का शेष:-     

                                

    ब्योम चलाय पवन थमवाऊँ। सिंघ मार और स्यार जिताऊँ।।५।।                                

   अर्थ -ब्योम यानी मनाकाश जब सुरत की चढ़ाई के वक्त ऊपर को सिमटें तब प्राण यानी पवन धीमी हो कर ठहर जाती है। स्यार, जो जीव से मुराद है, वह गगन में चढ़ कर सिंह यानी काल को जीत लेता है।                     

   दुर्बल से बलवान गिराऊँ। त्रिकुटी चढ़ यह धूम मचाऊँ।।६।।                                     

 अर्थ -दुर्बल वही जी या सुरत से मतलब है, जो पिंड में उतरकर निहायत बेताकत हो जाती है और त्रिकुटी में चढ़कर काल बली को पछाड़कर जेर कर लेती है।                      

   कागन झुंड हंस करवाऊँ। लूकन को अब सेर दिखाऊ।।७।।                                        

  अर्थ -अनेक जीवो को, जो पिंड में बिल्कुल काग यानी मनरूप होकर बरत रहे हैं, दसवें द्वार में पहुँचा कर हंसस्वरूप बनाऊँ और निपट संसारी को, जो उल्लू के मुआफिक मालिक की तरफ से अंधे और अनजान हो रहे हैं, त्रिकूट में पहुँचा पर सूर्यब्रह्म का दर्शन कराऊँ।                                                  

 उल्टी बात सभी कह गाऊँ। ऐसे समरथ  राधास्वामी पाऊँ।।८।।                              

 अर्थ -यह सब उल्टी बातें समर्थ सतगुरु राधास्वामी दयाल की दया से सही करके दिखाई जा सकती है। क्रमशः                                                         

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

No comments:

Post a Comment

बधाई है बधाई / स्वामी प्यारी कौड़ा

  बधाई है बधाई ,बधाई है बधाई।  परमपिता और रानी मां के   शुभ विवाह की है बधाई। सारी संगत नाच रही है,  सब मिलजुल कर दे रहे बधाई।  परम मंगलमय घ...