Saturday, April 3, 2021

सतसंग सुबह RS 04/04

 **राधास्वामी!! 04-04-2021-(रविवार) आज सुबह सतसँग में पढे गये पाठ:-                          

  (1) अगम आरती राधास्वामी गाऊँ। तन मन धन सब भेंट चढाऊँ।।-(मैं चेरी स्वामी तुम्हरे घर की। साफ़ करूँ बुधि मायाबर की।।) (सारबचन-शब्द-13-पृ.सं.580,581-राजाबरारी ब्राँच-123 उपस्थिति।)       

                                                

    (2) गुरु प्यारे के नैना ताक रहूँ।।टेक।। दृष्टि जोड गुरु नैन कँवल में। सीतल होय धुन शब्द सुनूँ।।-(राधास्वामी प्यारे मेरा भाग जगाया। सरन धार उन चरन पडूँ।।) (प्रेमबानी-3-शब्द-15-पृ.सं.21)                        

  सतसँग के बाद:-                                                

 (1) राधास्वामी मूल नाम।।                               

   (2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।                                                                

    (3)  बढत सतसँग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।(प्रे. भा. मेलारामजी)  विद्यार्थियों द्वारा पढे गये पाठ:-                                          

(4) हे दयाल सद् कृपाल हम जीवन आधारे। सप्रेम प्रीति और भक्ति रीति बन्दे चरन तुम्हारे।। दीध अजाध इक चहें दान दीजे दया बिचारे। कृपा दृष्टि निज मेहर बृष्टि सब पर करो पियारे।।(प्रेमबिलास-शब्द-114-पृ.सं.171)                                                           

   (5) आओ री सखी जुड होली गाव़े। कर कर आरत पुरुष मनावें।-(अस होली कहो कौन । राधास्वामी भेद बतावें।।) (सारबचन-शब्द-12-पृ.सं.852,853)                    

  (6) गुरु धरा सीस पर हाथ मन क्यों सोच करे। गुरु रक्षा हरदम संग। क्यों नहिं धीर धरे।।-(प्यारे राधास्वामी दीनदयाल। छिन छिन सार करें।।) (प्रेमबानी-3-शब्द-3-पृ.सं.272,273,274)                                           

    (7) गुरु की कर हर दम पूजा। गुरु समान कोइ देव न दूजा।।-(गुरु रुप धरा राधास्वामी। गुरु से बड. नहीं अनामी।।) (सारबचन-शब्द-2-पृ.सं.322,323)                                                            

    (8) तमन्ना यही है कि जब तक जिऊँ। चलूँ या फिरूँ या कि मेहनत करूँ।। पढूँ या लिखूँ मुहँ से बोलूँ कलाम। न बन आये मुझसे कोई ऐसा काम।। जो मर्जी तेरी के मुवाफिक न हो। रज़ा के तेरी कुछ मुखालिफ जो हो।।।                            

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज -

भाग 1- कल से आगे:

-' न्यू ऑर्डर' का शब्द आजकल अखबारों में बहुत छप रहा है। एक मुल्क का शासक यह कहता है कि वह यूरोप में न्यू आर्डर कायम कर रहा है। जापान का भी यह दावा है कि वह पूरीव दक्षिणी एशिया में न्यू आर्डर कायम करेगा।

 परंतु सत्संग के दृष्टिकोण से न्यू आर्डर के कायम करने के ये ढंग गलत है। यदि मारकाट और रक्तपात से आर्डर कायम किया तो क्या किया?

 दूसरों का खून बहा कर नया ऑर्डर कायम करने के स्थान पर यदि आपका खून दूसरों के हवाले करके न्यू आर्डर काम किया जावे, तो ऐसी दशा में आप ही बतलाइये कि कौन सा ढंग बढ़िया है। वह या यह?  अपने खून से पैदा किये हुये बच्चे यदि संगत के हवाले कर दिए जायँ, तो वह अच्छा है या यह कि अपने बच्चों से दूसरों का खून गिरा कर नया ऑर्डर कायम किया जावे?  इस पर कुछ वृद्ध पुरुषों ने कहा कि पहला ढंग अच्छा है ।

 हुजूर ने फरमाया कि मैं नवयुवको से पूछता हूँ। मैं उन्हीं से कह रहा हूँ , उनसे बात पूछनी है । यदि आप लोगों का विश्वास है कि आप लोगों के पास जो बच्चे हैं वे हुजूर राधास्वामी दयाल के हैं तो इस विश्वास के साथ यदि आप अपने बच्चे अपने पास रखते हैं तो उनको प्रसंता से रखिए। इसमें कोई हर्ज नहीं है ।


अलबत्ता जो औरते ऐसा विश्वास नहीं रखती इस समय उनसे यह बात पूछी जा रही है कि क्या आप लोग अपने बच्चे सत्संग में देने को तैयार हैं या नहीं?  इसी ढंग पर चल कर आप संसार के बंधन से छूट सकती हैं और सतसँग के भीतर नये ऑर्डर या नई व्यवस्था स्थापित करने में सहायता दे सकती हैं।

 क्रमशः                                                         

  

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज

-[ भगवद् गीता के उपदेश ]-

कल से आगे

:- देवताओं के झुंड आप में प्रवेश कर रहे हैं, इन में से कई भयभीत हो कर हाथ जोड़े आप की स्तुति कर रहे हैं। महर्षियों और सिद्धों की मंडलियाँ धन्य धन्य के जयकारे सुना रही है और आप की महिमा के गुण गा रही है ।

रूद्रों, वसुओं, साध्यों आदित्यों और विश्वदेवों, अश्विनी कुमारों, मारुतों और पितरों, गंधर्वो, यक्षो, सिद्धों और असुरों के झुंड के झुंड आपकी ओर विस्मित होकर ताक रहे हैं। आपका यह विशाल रूप देख कर, जिसके बेशुमार मुँह, आँखें ,लंबे बाजू, राने, पैर, और डरावने दाँत है, सब लोग मारे डर के काँप रहे हैं और मेरे भी होश व हवास गुम हो रहे हैं।

हे विष्णु !आपको चमकता हुआ, आस्मान को छूता हुआ, अनेक रंगो वाला, मुँह खोले , बड़ी-बड़ी चमकीली आँखें पसारे देखकर मेरा अंतरात्मा यानी भीतर के भीतर का दिल काँप रहा है और धैर्य और सहनशक्ति क्षीण हो रही है।

 आपके प्रलय काल की तेज आग जैसे मुँह को, जिन्हे दाढों ने अत्यंत भयानक बना दिया है, देख कर मुझे दाएँ बाएँ और आगे पीछे की सुध नहीं रही और मुझे कोई शरण लेने की जगह नहीं सूझती है। हे देवेश ! हे जगत के शरण दाता! मेरे हाल पर रहम करो।

【 25 】                

क्रमशः

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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