Wednesday, May 19, 2021

भूमिका / अमृत बचन 19/05

 *🌹[राधास्वामी दयाल की दया राधास्वामी सहाय]                                                            

हुजूर राधास्वामी दयाल की दया व मेहर से आज से हम पवित्र पुस्तक "अमृत-बचन" शुरू करने जा रहे हैं। हुजूर राधास्वामी दयाल के चरणों में कोटि कोटि प्रार्थना है कि यदि जाने अनजाने में हमसे कोई त्रुटि हो तो उन दाता दयाल के चरनों में  हम सब क्षमाप्रार्थी है।🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻🌹


*[राधास्वामी दयाल की दया राधास्वामी सहाय]-{अमृत-बचन}- (भूमिका):-                                                                           

यह पुस्तक परम गुरु महाराज साहब के अंग्रेजी ग्रंथ ' डिसकोर्सेज ऑन राधास्वामी फेत' का हिंदी भाषा में अनुवाद है। इसके तैयार करने की खास गरज यह है कि अंग्रेजी जानने वाले भाइयों को 'डिस्कोर्सेज'  के समझने में मदद मिले और आम लोगों के दिल में उस पवित्र ग्रंथ के पढ़ने के लिये शौक पैदा हो। अनुवाद करने में हरचंद यह ख्याल रक्खा गया है कि अंग्रेजी लेख से पूरी मुताबिकत रहे लेकिन जहाँ तहाँ अपनी तरफ से इबारत बढ़ा कर मजमून को साफ हो आमफहम कर दिया गया है। इसमें शक नहीं कि अनुवाद के अंदर अंग्रेजी लेख की सी खूबियाँ मौजूद नहीं है और बहुत सी बातों की महज मुख्तसर तशरीह की गई है लेकिन बावजूद इस कसर के उम्मीद की जाती है कि इसके पढ़ने से प्रेमी जनों को बहुत कुछ मदद अंग्रेजी ग्रंथ का आशय समझने में मिलेगी।                                              

परम गुरु महाराज साहब ने 1906 ई० के आखिरी हिस्से में 'डिसकोर्सेज' के आरंभ करने की मौज फरमाई और हरचंद आइंदा साल में तबीयत ज्यादा अलील होती गई लेकिन मजमून लिखवाने का सिलसिला दया से बराबर जारी रहा। मगर अफसोस है कि यह अमूल्य ग्रंथ मुकम्मल न होने पाया था कि मौज निज धाम में सिधारने की हो गई।

महाराज साहब के गुप्त होने पर कलमी नुस्खा दो एक बुजुर्ग भाइयों के हाथ में रहा जिन्होंने बाद लिखने एक भूमिका के और कायम करने मुख्तलिफ सुर्खियों के और बदलने कुछ एक लफ्ज़ों के इसके छपवाने का प्रबंध किया।

 हरचंद सब किसी को अफसोस है कि यह पवित्र ग्रंथ बवजह गुप्त हो जाने महाराज साहब के संपूर्ण और शुद्ध रूप में न छप सका, लेकिन तमाम सत्संग मंडली जनाबा माता जी साहबा की और उन प्रेमी भाइयों की सच्चे दिल से मशकूर है जिनकी मेहरबानी व परिश्रम से आवाम को 1909 ई० में 'डिसकोर्सेज' के दर्शन नसीब हुए। क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

**परम गुरु हुजूर महाराज -प्रेम पत्र- भाग 2- कल से आगे:- (12)- चरण से मतलब यह है कि सूरत यानी चैतन्य  की धार, जो ऊँचे देश से उतर कर आई है और उसी धार का सिलसिला धुर पद से लगा हुआ है, वही उस कुल मालिक का चरण है यानी उसकी धार दूर से दूर तक फैली और पसरी हुई है और चैतन्य शक्ति उसी के वसीले से हर जगह पहुँचती है और दया और मेहर की धार भी उसी धार के साथ जखरी होती है।                                                              

  (13)- अब ख्याल करो कि जो संत सतगुरु की रसाई यानी पहुँच ऊँचे से ऊँचे स्थान तक शब्द की धार के साथ है, उनमें उस धार में और फिर उस धार के भंडार में किसी तरह का फर्क और भेद नहीं रहा। हर एक स्थान का स्वरुप उनका स्वरुप हुआ और वही स्वरूप असल में सुरतों के स्वरूप है, जो वक्त उतार के राधास्वामी दयाल के चरणों से हर एक सूरत धारण करती हुई चली आई है। फिर ऐसे संत सतगुरु की पूजा और उनके चरणों में प्यार और भाव और कुल मालिक की पूजा और उसके चरणों में प्यार और भाव करना।

क्रमशः                                 

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


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