**राधास्वामी!! 21-05-2021-आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) राधास्वामी राधास्वामी राधास्वामी गाऊँ। नाम पदारथ नाम पदारथ नाम पदारथ पाऊँ।।-(सत्तनाम धुन निज कर पाई। राधास्वामी भेद जनाई।।) (सारबचन-शब्द-3-पृ.सं.569,70-
बोलारुम (हैदराबाद) ब्राँच-अधिकतम उपस्थिति-62)
(2) गुरु प्यारे ने दी मेरी सुरत जगाय।।टेक।।
किरपा कर सतसँग में खैंचा। दया भरज मोहि बचन सुनाय।।-(राधास्वामी दया परख अंतर में। छिन छिन अपना भाग सराय।।)
(प्रेबबानी-3-शब्द-57-पृ.सं.50) सतसंग के बाद:-
(1) राधास्वामी मूल नाम।।
(2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।
(3) बढत सतसंग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।(प्रे. भा. मेलारामजी -फ्राँस)
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज- बचन भाग 2-
कल से आगे:
शब्द निकला- गुरु चरन पकड़ दृढ भाई। गुरु का सँग करो बनाई।।
( सारबचन- शब्द 4)
हुजूर ने फरमाया- स्कूल में नियम होता है कि उस्ताद जो पाठ पढ़ाता है वह उसे लड़कों के द्वारा दोबारा दोहराता है जिससे कि वह पाठ उनको भली प्रकार याद हो जावे।
इस तरह आज जो तीन शब्द पढ़े गए उन पर यदि दोबारा नजर डाली जाए तो इससे हम सब को लाभ होगा। इस बारे में एक बात का ध्यान रखना चाहिए कि प्रत्येक मनुष्य को शब्दों का भावार्थ अपने ऊपर घटाना चाहिए।
दूसरों पर उनका घटाना ठीक नहीं है। तीनों शब्दों का भावार्थ सामने रखकर ऐसा मालूम होता है कि जिस तरह से हार के फूलों से एक तरह की सुगंध आती है उसी तरह से इन शब्दों से भी एक ही तरह के विषय का सिलसिला जाहिर होता है।
पहले शब्द में मन की दशा का बयान किया गया और कहा गया कि कुछ लोग धन और मान के भूखे हैं और जरा भी ताड़ मार बर्दाश्त नहीं कर सकते और ऊपर से अपने को दीन अधीन प्रकट करते हैं। ऐसे लोगों पर धुर पद की मेहर कैसे हो सकती है?
दूसरे शब्द में भी बताया गया है कि जो लोग सतगुरु के साथ अहंकार से पेश आते हैं उनका निर्वाह बहुत कठिनाई से होता है लेकिन जो जीव की सरन में आते हैं उनको वह दाता अपना लेते हैं ।
इसी शब्द के अंत में सलाह दी गई कि अब चेत कर सतगुरु को पकड़ो और नरदेह को व्यर्थ में न खोओ। राधास्वामी दयाल हर तरह से रक्षा व संभाल करेंगे। तीसरे शब्द में भी जीव को यह सलाह दी गई है कि जब तुमको अपने मन की घात व चाल का पता चल जावे। तब तुमको कौन सा ढंग ग्रहण करना चाहिए। इस प्रकार तीनों शब्द क्रमबद्ध है।
एक बात और कहूँगा कि जब आपको यह मालूम हो जाय कि हुजूर साहबजी महाराज फुलाँ जगह पर विराजमान है तो फिर उनके चरणों को मजबूती से पकड़ लेना चाहिए कि वे छूटने न पावें।
फिर मौज से एक शब्द और निकाला गया और सत्संग समाप्त हुआ।
क्रमशः 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**राधास्वामी!![ अमृत-बचन]
-कल से आगे:-
पिछले जमाने में चूँकि जीव आमतौर पर श्रद्धावान और सीधे साधे थे इसलिए वे महापुरुषों के स्वच्छ जीवन और पाक रहनी गहनी ही से मुतास्सर होकर उनकी शिक्षा को स्वीकार कर लेते थे और उनको ज्यादातर यही शौक रहता था कि अपना तन-मन-धन लगाकर किसी परमार्थी शिक्षा का पालन करें। इसी वजह से पिछले महापुरुषों ने अपने स्थानों का भेद और अंतरी अभ्यास की युक्तियों के समझाने के सिलसिले में युक्तियों यानी दलीलो से काम नहीं लिया।
लेकिन आजकल के जमाने में दूसरी ही हवा चल रही है और हर शख्स की यही माँग है कि परमार्थ के मुतअल्लिक हर एक बात युक्तिसहित बयान की जावे इसलिए जीवो की माँग पूरी करने के निमित्त हुजूर राधास्वामी दयाल ने सच्चे परमार्थ का भेद युक्तिपूर्वक बयान करने की मौज फरमाई और परम गुरु महाराज साहब ने 'डिसकोर्सेज ' के अंदर इस भेद को निहायत उत्तम वैज्ञानिक रीति से वर्णन फरमाया।
अगर शौकीन मुतलाशी 'डिस्कोर्सेज' को या इस अनुवाद को समझ समझ कर बात करेंगे तो उम्मीद है कि सच्चे परमार्थ की निस्बत उनके बहुत से संशय निवृत्त होकर उनके दिल में गहरा शौक सच्चे सतगुरु की तलाश के लिए पैदा होगा ताकि उनसे अभ्यास की युक्तियाँ सीखकर और उनकी दया व मेहर से कुछ कमाई करके प्रत्यक्ष सबूत संतमत की सच्चाई का हासिल करें। और इस किस्म का सबूत मिल जाने पर दिल व जान से संतमत की शिक्षा का पालन करते हुए परम और अविनाशी गति को, जो कि असल उद्देश्य सच्चे परमार्थ का है, प्राप्त हों।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुजूर महाराज-
प्रेम पत्र- भाग 2- कल से आगे:
-(16)-
जो ईश्वर और परमेश्वर या मालिक या कोई उसकी अंश या कला इस लोक में वास्ते सिखाने या जारी करने नई और फायदेमंद चाल या इल्म या अक़्ल के प्रकट हुए, उसने भी वही उत्तम और श्रेष्ठ मनुष्य स्वरूप धारण करके कार्यवाही करी। इसी तरह जो कोई अभी तक भारी विद्यावान या नीति के बनाने और चलाने वाले या हाकिम या वैद्य या डॉक्टर या और कोई हुनर और कारीगरी वाले जाहिर हुए, वह भी मनुष्य स्वरूप में प्रकट हुए और उसी स्वरूप से सब चालें चलाई और लोगों को विद्या और बुद्धि और हुनर और कारीगरी की बातें सिखलाई।।
( 17)- इसी तरह संत सतगुरु ने अपने साथ और मालिक के चरणो में प्यार और भाव करने की विधि समझाई और मालिक का पता और भेद भी उन्होंने यानी संत सतगुरु ने मनुष्य स्वरूप धर कर प्रगट किया। और यह संत सतगुरु स्वतः संत थे यानी आप ही आप उस ऊँचे स्थान से आये और बिना किसी से सीखे हुए या सुने हुए असली भेद सच्चे मालिक का उन्होंने प्रगट किया। इसी तरह स्वतः जोगेश्वर ने ब्रह्म पारब्रह्म पद का भेद और जुगत उसकी प्राप्ति की प्रगट करी और उनके बचन और वाणी को सब कोई बड़ा और ईश्वर का हुकुम मानते हैं।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
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