**राधास्वामी!! 17-05-2021-आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) गुरु तारेंगे हम जानी। तू सुरत काहे बौरानी।।-(चढ बैठो अगम ठिकानु। राधास्वामी कहत बखानी।।)(सारबचन-शब्द-15-पृ.सं.361,362-
नरामऊ (कानपुर) ब्राँच -अधिकतम उपस्थिति -65)
(2) गुरु प्यारे के सँग मन माँजो आय।।टेक।। माया संग भुलाना भारी। विषयन में रहा अधिक फँसाय।।-
(राधास्वामी दया मेहर ले साथा। सहज सहज स्रुत निज घर जाय।।) (प्रेमबानी-3-शब्द-54-पृ.सं.47,48) सतसंग के बाद:-
(1) राधास्वामी मूल नाम।।
(2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।
(3) बढत सतसंग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।(प्रे.भा. मेलारामजी-फ्राँस) 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुजूर मेहताजी जी महाराज-
बचन भाग 2 -कल से आगे:
-( 90)-
अगस्त के तीसरे सप्ताह में एक दिन हुजूर पुरनूर ने फरमाया- जब यह बात अपने मजहब में स्वीकार की जाती है कि हुजूर राधास्वामी दयाल ने संसार के जीवो को चौरासी से निकाल कर राधास्वामी धाम में पहुँचाने का जिम्मा लिया है तो फिर यह कैसे माना जाय कि वह अपनी इस व्यवस्था के संबंध में ऐसा प्रबंध न करें कि बच्चे के पैदा होने के वक्त से उसके विकास व पालन पोषण का प्रबंध न हो।
और जैसे जैसे वह बढ़ कर नौजवान व बूढा होता जाय वैसे वैसे उसकी उम्र के लिहाज आपसे उसकी सारी आवश्यकताओं का ख्याल न रक्खा जाय यानी उसके बड़े होने पर उसकी जीविका, उसकी शादी, उसकी दवा इलाज और उसकी संतान आदि की शिक्षा व पालन पोषण के बारे में उचित प्रबंध न किया जाय। और इस तरह से उससे सेवा लेते हुए उसको अंतिम यात्रा के लिए तैयार न किया जाय। जिनकी यात्रा इस जन्म में समाप्त हो गई है उनका कहना ही क्या है। और जिनकी यात्रा के समाप्त होने में कुछ देरी है उनको दोबारा संसार में आकर अपनी अंतिम यात्रा के लिए तैयार होने के वास्ते
अवसर व सुविधाएँ न दी जायँ। विदित हो कि जीवो को चौरासी से निकालने, भवजल से पार करने और मुक्ति देने के संबंध में प्रबंध व परिवर्तन अवश्य किए जावेंगे। लोग चाहे विरोध करें, चाहे रुकावट डाले, परंतु उनकी बिल्कुल परवाह न की जावेगी, और जो नियम इन बातों की प्राप्ति के लिये बनेंगे उनका पालन अवश्य करना होगा।
इस बारे में यह बात कहने की है कि जो लोग सत्संग के अनुकूल रहेंगे उनको सत्संग के यह नियम कठोर नहीं ज्ञात होंगे और प्रसन्नता से इन्हें स्वीकार कर लेंगे। परंतु जो लोग सत्संग के अनुकूल नहीं चलेंगे वे अवश्य सत्संग के इन नियमों को कठोर समझेंगे और इन पर चलने में वे कठिनाई समझेंगे और जब नियमों पर ठीक तौर से चलाने और सतसंगियों के भीतर से ढीलापन दूर करने के लिये थोड़ी चाबी मरोड़ दी जावेगी जिससे कि नियम के अंदर काम किए जा सके, तो ऐसी दशा में यह नियम उनको दुगने,तिगुने, व चौगुने कठिन प्रतीत होंगे।
क्रमशः
🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज
-[ भगवद् गीता के उपदेश]
कल से आगे:-
ऐसा शख्स हर किस्म के कर्म करता हुआ मेरी शरण लेकर, मेरी कृपा से हमेशा कायम रहने वाले और अविनाशी पद को प्राप्त हो जाता है। चित्त से सब कर्मों को मेरे अर्पण करके मुझमें तवज्जुह लगा कर बुद्धि योग करते हुए तुम अपनी तवज्जुह मुझमें जोड़ो।
मेरी याद करते हुए तुम मेरे कृपा से सब विघ्न्नो पर फतह हासिल करोगे । और अगर अहंकार बस तुम मेरी बात पर ध्यान न दोगे तो नष्ट हो जाओगे। तुम अहंकार का आसरा लेकर विचार करते हो कि मैं नहीं लडूँगा- तुम्हारा यह संकल्प (इरादा) दो कौड़ी का है। तुम्हारी प्रकृति तुम्हें विवश करेगी और अपनी प्रकृति से पैदा होने वाले स्वभाव से मजबूर होकर तुम अवश्य वह कर्म करोगे जिससे तुम इस वक्त भ्रम की वजह से भाग रहे हों।
【 60】
अर्जुन! ईश्वर सब जीवो के हृदय में निवास करता है और अपनी माया से सब को नचा रहा है, गोया सब जीव कुम्हार के चाक पर चढ़े हैं। तुम्हारे लिये मुनासिब है कि पूर्ण भाव से उसकी शरण धारण करो। उसकी कृपा से तुमको परम आनंद और अविनाशी स्थान की प्राप्ति होगी। यह ज्ञान जो रहस्यों का रहस्य है, मैंने तुम्हारे सन्मुख बयान कर दिया है । तुम इस पर पूर्ण विचार करके जैसा जी चाहे अमल करो।
मेरे परम बचन को एक बार फिर सुनलो जो कि अति गुप्त भेद की बात है। क्योंकि तुम मुझे दिल से प्यारे हो इसलिए तुम्हारे फायदे के लिए मैं इसे दोबारा वहन कर देता हूँ। अपने मन को मुझ में गला दो, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो, मुझे नमस्कार करो, तुम जरूर मुझको प्राप्त होगे। मैं तुम्हें अपना वचन देता हूंँ; तुम मेरे प्यारे हो ।
【65)
सब धर्मों को त्याग कर तुम मेरी शरण धारण करो, मैं तुम्हें सब पापों से छुडा लूँगा; इसकी बिल्कुल फिक्र न करो। यह भेद ऐसे शख्स को कभी मत बतलाओ जो तपस्वी या भक्तिमान् नहीं है या जो इसे सुनने की इच्छा नहीं रखता है या जो मेरी निंदा करता है। जो शख्स या गुप्त भेद मेरे भक्तो को सुनावेगा वह मेरी परम भक्ति करता हुआ निःसंदेह मुझको प्राप्त होगा। मनुष्यों में उससे बढ़कर मेरी रुचि के अनुकूल सेवा करने वाला कोई न होगा और न दुनिया में कोई दूसरा मुझे उससे ज्यादा प्यारा होगा, और जो शख्स हमारे इस धर्ममय संवाद का अध्ययन करेगा मेरी राय में उसकी यह कार्रवाई ज्ञान यज्ञ द्वारा मेरी पूजा होगी।
70】
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुजूर महाराज
-प्रेम पत्र- भाग 2- कल से आगे:-( 9)
- मालिक के चरणो में प्यार और भाव भी कई तरह पर करते हैं। बाजो ने (
1) पुत्र भाव यानी मालिक को बाल स्वरूप मानकर प्रीति करी। और किसी किसी ने
(2) सखा भाव यानी मित्र भाव माना और कोई
(3) स्वामी और यानी दास भाव कायम करते हैं और बहुत से (4) पति और स्त्री भाव मानते हैं और बिरले(
5) पिता-पुत्र भाव मानकर प्रीति करते हैं । हरचंद की सब का मतलब मालिक के चरणो में प्रीति पैदा करने और बढ़ाने का है, पर इन सबमें पति और स्त्री और पिता और पुत्र भाव बहुत उम्दा है, बल्कि पिता-पुत्र भाव सबमें बेहतर और सुखाला और निर्मल और निर्विघ्न है। और खास कर इस जमाने में जबकि जी निहायत निबल और कमजोर हो गया है, और काल के झकोले और माया का आकर्षण अनेक रीति से जबर हो रहा है, पिता पुत्र भाव में सहज जीव का गुजारा यानी उद्धार मुमकिन है। इस वास्ते मुनासिब मालूम होता है कि हर एक सच्चा परमार्थी अभ्यासी राधास्वामी दयाल के चरणों में माता और पिता भाव धारण करके तब अपनी प्रीति और प्रतीति बढ़ावे और संतों से जुक्ति लेकर नित्य उसका अभ्यास विरह और प्रेम अंग के साथ करें। तो आहिस्ता आहिस्ता एक दिन उसका कारज बन जावेगा और सच्चे माता पिता राधास्वामी दयाल की दया और मेहर और रक्षा के तजरुबे जीते जी अंतर में और बाहर देख कर दिन दिन उसकी प्रीति और प्रतीति बढ़ती जावेगी और अपने सच्चे और पूरे उद्धार की निस्बत कोई शक उसके दिल में बाकी न रहेगा। क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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