**राधास्वामी!! 14-05-2021-आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) क्या सोवे जग में नींद भरी। उठ जागो जल्दी भोर भई।।-(फिर अलख अगम जा परसा री। राधास्वामी चरन पर बलिहारी।।)
(प्रेमबानी-1-शब्द-6-पृ.सं.9-
नरामऊ(कानपुर) ब्राँच / अधिकतम उपस्थिति -70)
(2) गुरु प्यारे करें आज जगत उद्धार।।टेक।। जीवन को अति दुखी देख कर। उमँगी दया जाका वार न पार।।-(कोई जीव खाली नहिं छोडा। सब पर मेहर की दृष्टि डार।।
(प्रेमबानी-3-शब्द-52-पृ.सं.45,46) सतसंग के बाद:-
(1) राधास्वामी मूल नाम।।
(2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।
(3) बढत सतसंग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।
(प्रे. भा. मेलारामजी-फ्राँस)
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज
- बचन-भाग 1- कल से आगे :-(88)-
21 जुलाई 1942 को सत्संग में दो शब्द पढ़े गये।
(1)- गुरु प्यारे से प्यारी मत कर मान।। (प्रेमबानी-भाग 3- शब्द 42)
(2)- गुरु प्यारे कि मानो बात सही।। (प्रेमबानी-भाग-3- शब्द-43)
दूसरे शब्द के पाठ के बाद हुजूर ने पूछा- इस शब्द के भावार्थ को ध्यान में रखते हुए क्या आप लोगों में से कोई ऐसा शेर मर्द है यह कह सके कि उसने हुजूर साहबजी महाराज की तमाम बातें सही व दुरुस्त मानीं और किसी बात पर शक व शुबह नहीं किया उनकी हर आज्ञा का पालन किया?
कई भाइयों ने अलग-अलग उत्तर दिये।
हुजूर ने फरमाया- आप लोगों के जवाबो से मन की चालाकी जाहिर होती है। पूछने की बात यह है कि किसने कौन सी बात मानी कौन सी बात नहीं मानी? फिर कई लोगों ने अलग-अलग जवाब दिये।
हुज़ूर ने फरमाया अगर- आप यह नहीं बता सकते कि आप में से किसने उनकी आज्ञा का पालन किया तो कम से कम यह तो बतलाइये कि किसने उनकी आज्ञा का पालन बिल्कुल नहीं किया? इस पर हुजूर ने मौज से एक शब्द निकलवाया-
चेत चल जगत से बौरे, कपट तज गहो गुरु सरना।( सारबचन,शब्द-8)
फरमाया- जो सवाल आप लोगों से पूछा गया है उसका अब आप खुद जवाब दें और उसका जवाब देना अगर आपको नागवार मालूम हो तो आप यह सवाल मुझसे पूछ सकते हैं । मैं उसका जवाब देने के लिए तैयार हूँ। मुझे हुजूर साहबजी महाराज की फरमाई हुई कोई ऐसी बात नहीं मालूम है जिसे मैंने सच व दुरुस्त न माना हो उसमें किसी किस्म की गलती का शक व शुबह किया हो या उनके किसी हुक्म की तामील न की हो। सिर्फ एक मौके पर उनकी फरमई हुई बात को मैंने नहीं माना जिसका खामियाजा जाहिरा तौर पर आज मुझे भुगतना पड़ रहा है। क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज
-[ भगवद् गीता के उपदेश]
कल से आगे
:-जो कर्ता चीजों में दिल की पकड़ से आजाद है, दीनचित्त, धैर्यवान और उत्साही है, और कामयाबी व नाकामयाबी की सूरतों में अडोल रहता है वह सात्विकी कहलाता है। लेकिन जो रागी
(गरजमंद), कर्मफल की इच्छा करने वाला, लोभी ,निर्दयई, अपवित्र, हर्ष और शोक की दशा में सुखी दुखी होने वाला है यह राजसी कहलाता है और जो डावाँडोल चित्त वाला, गवार, घमंडी, धूर्त, द्रोही, आलसी रोनी सूरत और ढीले मिजाज वाला है वह तामसी कहलाता है ।
इसी तरह बुद्धि और धृति( धैर्य) की भी ,गुणों के लिहाज से, तीन किस्में है । अब उनका भी विस्तार से और अलग-अलग हाल सुनो। जो बुद्धि प्रवृत्ति व निवृत्ति और कार्य (मुनासिब) व अकार्य (नामुनासिब ) में विवेक करती है, भय व अभय और बंध व मोक्ष में फर्क देखती है वह सात्विकी है।
【 30】
जो धर्म व अधर्म और कार्य (मुनासिब) व अकार्य नामुनासिब) में ठीक-ठीक फर्क नहीं देखती है वह राजसी है और जो अंधकार से ढकी है और अधर्म को धर्म पर सब चीजों को औंधा देखती है वह तामसी है।
वह धृति( धैर्य) जिससे मनुष्य योगसाधन के द्वारा मन, प्राण और इंद्रियों की क्रियायें रोकता है सात्त्विकी है लेकिन वह धृति (धैर्य) जिससे मनुष्य फल की इच्छा करते धर्म, अर्थ और काम की प्राप्ति के लिए पिलता है राजसी है और वह धृति( धैर्य ) जिसके बस निर्बुद्धि मनुष्य नींद ,भय, शौक, विषाद और मान बढ़ाई में उलझा रहता है तामसी है।
【 35】
क्रमशः🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुज़ूर महाराज-
प्रेम पत्र -भाग 2-
कल से आगे:-
【( बचन- 5)-
राधास्वामी मत में जो गुरुभक्ति जारी है, उस पर तान मारने वालों का जवाब और वर्णन इस बात का कि सच्चे परमार्थ और सच्चे उद्धार की प्राप्ति के लिए अपने समय के भेदी और अभ्यासी मनुष्य स्वरूप गुरु से मिलना और उसके साथ दीनता और भाव और प्यार करना बहुत जरूरी है।】
(1) - राधास्वामी मत के मुआफिक सुरत यानी कुल मालिक सत्तपुरुष राधास्वामी की अंश और उन्हीं के चरणों से निकलकर और नीचे उतरकर पिंड में नेत्रों के मुकाम पर बैठकर अपने देह और दुनियाँ की कार्रवाई करती है और रास्ते में जितने मुकाम है, उन पर हर एक मुकाम पर ठहरती हुई उतरी है।इसी तौर पर जब संत सतगुरु की दया से उलटने की जुगती का भेद लेकर उसका अभ्यास करेगी, तब हर एक मुकाम पर चढती हुई और वहाँ कुछ दिन ठहर कर सैर करती हुई कुछ ऐसे में अपने निज स्थान पर जा पहुँचेगी।
(2)- हर एक स्थान का जो रुप है, वह आदि में सुरत ने ही वक्त उतार के धारण किया और इसी तरह लौटते वक्त वही रुप उसका हर एक स्थान पर होता जावेगा।।
(3)- उतार के वक्त जो रुप की सुरत ने जिस मुकाम पर धारण किया, वह रूप नीचे की रचना का कर्ता और मालिक है।
(4)-उलटते वक्त जब तक कि सूरत अपने से उत्तर के स्थान के रूप में और प्यार और भाव लाकर और उससे मिलने की चाह तेज उठा कर, जो जुगत की संत़ ने दया करके बताई है उसका अभ्यास हर रोज शौक के साथ न करेगी, तब तक उस स्थान और स्वरूप के प्राप्ति न होगी यानी वह मुकाम फतह न होगा क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
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