**राधास्वामी!! 15-05-2021- आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) अगम आरती राधास्वामी गाऊँ। तन मन धन सब भेंट चढाऊँ।।-(मैं चेरी स्वामी तुम्हरे घर की। साफ़ करूँ बुधि मायाबर की।।) (सारबचन-शब्द-13-पृ.सं.580,581-तिमरनी ब्राँच-आधिकतम उपस्थिति-46)
(2) गुरु प्यारे करें आज जगत उद्धार।।टेक।। कुल मालिक राधास्वामी प्यारे। जीव जन्तु सब लीन्हे तार।।-(मैं बालक उन सरन अधीना। चरन लगाया मोहिं कर प्यार।।) (प्रेमबानी-3-शब्द-52-पृ.सं.48,49)
सतसंग के बाद:-
(1) राधास्वामी मूल नाम।।
(2) अतोला तेरी कर न सके कोई तोल।।
(3)बढत सतसंग अब दिन दिन। अहा हा हा ओहो हो हो।।
(प्रे. भा. मेलारामजी-फ्राँस) 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हजूर मेहताजी महाराज
- बचन-भाग 1- कल से आगे
:- अगर आपने भी हुजूर साहबजी महाराज की किसी बात को कभी सही व ठीक नहीं माना हो या उनकी कार्रवाई में शक व शुबह किया हो तो मुनासिब है कि कम से कम इस समय उसे दुरुस्त व सही मान लें ताकि आपको उसके लिए कुछ सजा न भुगतनी पड़े।
मुझे आज तक उनकी किसी कार्यवाही में गलती का गुमान या किसी किस्म का शक व शुबह नहीं हुआ । इसके बाद हुजूर ने एक शब्द मौज से निकालने के लिए फरमाया शब्द निकला-
सुरतिया सोच करत, कस जाऊँ भौ के पार।। (प्रेमबानी, भाग 4- शब्द 14)
पाठ के बाद हुजूर ने अपनी एक निजी घटना सुनाई- संभवत 7 या 8 दिसंबर , 1921 की बात है। मैं 4 माह की छुट्टी लेकर दयालबाग आया था। यहाँ से रवाना होने से पहले मैंने इंटरव्यू के लिए दरख्वास्त की और एक पर्चे पर यह सवाल लिख कर हुजूरी चरणों में पेश किया कि हजूर, सब सत्संगी भाई भजन व अभ्यास करते हैं परंतु मैंने भजन व अभ्यास न किया मेरा उद्धार कैसे होगा?
हुजूर साहबजी महाराज ने जवाब में फरमाया- "He makes no distinction" यानी हुजूर राधास्वामी दयाल कोई भेद नहीं करते हैं। मेरे इस घटना का यहाँ पर बयान करने से यह मतलब नहीं समझना चाहिए कि आप लोग भी भजन अभ्यास करना छोड़ दें। मैंने तो इस समय यहाँ पर इस निजी घटना का जिक्र इसलिए किया कि ऊपर के शब्द की कड़ियों से इस घटना का गहरा संबंध है और वे इस ओर संकेत करती है। यह जवाब साहबजी महाराज ने मेरे वास्ते दिया था। आवश्यक नहीं कि यह सब पर घट सके। संभव है कि दूसरों के लिए दूसरा जवाब दिया जाता है। क्रमशः 🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-
[ भगवद् गीता के उपदेश]-
कल से आगे :-
अब तीन किस्म के सुखों का बयान करता हूँ वह भी सुनो। जिस सुख का रस अभ्यास से यानी बार-बार के तजुर्बे के बाद प्राप्त हो, जिससे दुख का नाश हो, जो शुरू में जहर का कड़वा लेकिन आखिर में अमृत सा मीठा साबित हो और जो आत्मज्ञान से प्राप्त हो वह सात्त्विकी है। जो सुख दुनिया के सामान व इंद्रियों के संयोग (मेल ) से पैदा हो और शुरू में अमृत की तरह हो लेकिन आखिर में जहर साबित हो वह राजसी सुख है; और जो शुरू और आखिर दोनों में जीव को भरमाने वाला हो, जो नींद सुस्ती और बेपरवाही का परिणाम (नतीजा) हो वह तामसी है।
हे अर्जुन! न दुनिया में कोई मनुष्य ऐसा है और न देवलोक में कोई देवता ऐसा है जो प्रकृति से पैदा होने वाले तीन गुणों से मुक्त हो ।【40】
ब्राह्मणों , क्षत्रियों, वैश्यों और शूद्रों के जो अलग-अलग कर्म नियत किए गये हैं वे खुद उनके स्वभाव के गुणों के हिसाब से नियत किए गए हैं। मतलन् शांत रहना, मन इंद्रियाँ रोक कर रखना, तप, पवित्रता,क्षमा, सच्चाई, ज्ञान,विज्ञान, आस्तिकता( परमात्मा के हस्ती में विश्वास) ऐसे कर्म है जो ब्राह्मणों के लिए नियत है और उनकी प्रकृति (स्वभाव से) पैदा होते हैं।।
शूरता, चमक-दमक , धैर्य चतुरता, लड़ाई से न ,भागना उदारता और शासन क्षत्रियों के कर्म है जो उनकी प्रकृति से पैदा होते हैं। खेती, गोरक्षा और तिजारत करना वैश्यों के कर्म है जो उनकी प्रकृति से पैदा होते हैं और सब प्रकार की सेवा शूद्र का कर्म है जो उसकी प्रकृति से पैदा होता है।
प्रत्येक मनुष्य अपना कर्म करके सिद्धि को प्राप्त हो जाता है। तुम दर्याफ्त करोगे कि यह कैसे संभव है- तो सुनो कि अपने स्वाभाविक कर्म करता हुआ मनुष्य कैसे सिद्धी को प्राप्त होता है।【45】
क्रमशः🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
**परम गुरु हुजूर महाराज-
प्रेम पत्र- भाग 2- कल से आगे:-(5)-
इसी तरह हर एक स्थान का ध्यान करके रास्ता चलेगा और धुर मुकाम यानी राधास्वामी के चरणों में पहुँचने का इरादा पक्का और सच्चा करके हर एक रास्ते की मंजिल को तै करती हुई सुरत चलेगी और हर स्थान पर अपना असली रूप धारण करती हुई जावेगी।
(2)-जोकि हर एक स्थान का धनी यानी मालिक नीचे की रचना का कर्ता और मालिक है, इस वास्ते इसी किस्म का भाव अपने से ऊपर के स्थान के स्वरूप में धारण करके सुरत को चलना पड़ेगा।।
(7)- लेकिन जोकि धार आदि में राधास्वामी दयाल के चरणों से जारी होकर हर एक स्थान पर ठहरती हुई और रूप धर कर रचना करती हुई चली आई है और जोकि अभ्यासी सुरत को धुर मुकाम पर पहुँच कर अपने सच्चे माता पिता और कुल मालिक का दर्शन करना मंजूर है, इस वास्ते उसको मुनासिब और जरूरी है कि बजाय इसके कि हर एक मुकाम के धनी को मालिक समझ कर उसमें प्यार और भाव लाकर चले , सिर्फ कुल मालिक राधास्वामी का ध्यान और उन्हीं के चरणों में प्यार और भाव धर कर रास्ता तै करें। इसमें उसको पूरी मदद और दया हर जगह मिलती जावेगी और हर मुकाम पर इसके बदलने की जरूरत न होगी, क्योंकि एक से ज्यादा स्वरूप में सच्चा और पूरा भाव और प्यार नहीं आ सकता है और जब कि वे सब स्वरूप रास्ते के सिर्फ अपनी अपनी हद में कार्यवाही कर सकते हैं और अपने से ऊपर के स्थान में उनका कुछ दखल नहीं पहुँच सकता है, तो वह पूरे और सच्चे कर्ता और मालिक नहीं हो सकते। यह सब कार-परदाज यानी कारिंदे हैं और राधास्वामी दयाल कुल मालिक और उनका हुकुम सब जगह जारी है। इस वास्ते उन्हीं का इष्ट मजबूत बाँधकर और उन्हीं के चरणों में पूरा प्यार और भाव ला कर चलना चाहिये, तो रास्ता सुखाला और आसानी से तै होगा और किसी किस्म का खतरा और विघ्न सारे रास्ते में वाकै न होगा। क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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