चलो चलें सतयुग की ओर.../ राजकिशोर सतसंगी
सतयुग में जाने का, लगता है कोरोना एक अहम निमित्त बनेगा
भले हम इसे अभी कोस रहे, पर यह युग-परिवर्तन करके रहेगा
जितना जल्द बदलेंगे हम खुद को, वही वहां उतनी जल्द पहुंचेगा परिवर्तन जो खुद में होगा शुरु, समाज के अंग-अंग को बदलेगा ।।1।।
युग-परिवर्तन में कोई, बहुत बड़े भूचाल-प्रलय नहीं आते
काम-क्रोध-लोभ-मोह-अहंकार, केवल वश में कराए जाते
आदमी की क्या है हैसियत, उससे उसको रूबरू कराए जाते, सहा कर ताप-दाब, किसी को सोना किसी को हीरा बनाए जाते ।।2।।
लोग निखरते दिख रहें हैं, अभी और भी निखरते जाएंगे
सह के तमाम दुख-तकलीफ, जिंदगी के नजरिए बदलते जाएंगे
रहन-सहन, खान-पान, आदतें, सबमें बड़े परिवर्तन आएंगे
आबोहवा बदलेगा ऐसा, मन के भाव भी बदलते चले जाएंगे ।।3
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अपनी जड़ों से हम, और अच्छे से समझ-जुड़ पाएंगे
परिवार व रिस्तों का मूल्य, उन्हें दिल से निभा पाएंगे
पुरातन-सनातन, संस्कार-संस्कृति को भली-भांति अपना पाएंगे
होंगे भाग्यशाली, जो अपनी आंखों से सतयुग-दर्शन कर पाएंगे ।।4।।
छोड़-छाड़ कलयुग के कल-क्लेश, क्रोध-घृणा की बजरिया
जहां पर है भेदभाव, भय-तनाव-चिंता की काली बदरिया
शंखनाद हो चुका, जुड़-मिल चलो चलें सतयुग की डगरिया
जो है, निर्मल चेतन सत्य प्रेम दया धर्म की पवित्र पावन नगरिया ।।5।।
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(राजकिशोर सतसंगी)
17.05.2021
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