🌀*#हनुमानजी_का_दशांश_और_बाली*🌀
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प्रस्तुति - रेणु दत्ता / आशा सिन्हा
#लंकाधिपति_रावण साधु का वेश धारण कर छल से माता जानकी का हरण कर उन्हें अपनी स्वर्णनगरी लंका ले गया। #श्रीराम अपने अनुज #लक्ष्मण के साथ सीताजी की खोज में वन-वन भटकते हुए ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचे तो वहां उनका साक्षात्कार ब्राह्मण वेशधारी हनुमान से हुआ। प्रभु श्रीराम ने अपने वन-वन भटकने का कारण हनुमान को बताया। 🏹श्रीराम ने तो अपना परिचय दशरथ सुत के रूप में दिया किन्तु #हनुमान_जी ने अपने दिव्य नेत्रों से पहचान लिया कि जिनकी अर्चना वह अपने बाल्यकाल से कर रहे हैं वहीं जगतस्वामी मुनि वेश में उनके सम्मुख हैं।मन ही मन प्रभु को प्रणाम कर हनुमान उन्हें अपने कंधों पर धारण कर सुग्रीव के निकट ले गए। सुग्रीव ने श्रीराम को सीताजी की खोज करने में पूर्ण सहयोग का वचन दिया।
#ऋष्यमूक_पर_निवास_के_मध्य ही हनुमान ने अपने इष्ट श्रीराम को #सुग्रीव और #बाली के मध्य की वैमनस्यता व प्रतिद्वंदता के विषय में बताकर सुग्रीव की सहायता का अनुरोध किया।
एक दिवस #पत्थरशिला पर लक्ष्मण के साथ बैठे 🏹श्रीराम सीताजी के संदर्भ में विचार विमर्श कर रहे थे तो हनुमान ने पुनः #सुग्रीव_को_बाली_से_भयमुक्त कराने की।श्रीराम ने अपने अधरों पर मुस्कान बिखेरते हुए कहा-"अंजनि पुत्र,इस शुभ कार्य हेतु तुम अकेले ही सक्षम हो तो मेरी सहायता की आवश्यकता क्यों?"
हनुमान ने अपने प्रभु के समक्ष अपना सिर झुका दिया-"आप सर्वज्ञ हैं #परमेश्वर लेकिन आपका यह सेवक चाहता है कि बाली को सद्गति आपके #सानिध्य से मिले।"
"नहीं #हनुमंत।उसे सद्गति तो तुम्हारे हाथ से मृत्यु पाकर भी प्राप्त होगी।फिर.....!"🏹श्रीराम ने कहना चाहा।
हनुमान श्रीराम के समक्ष हाथ जोड़कर खड़े होकर बोले-"आपका सेवक #वचनबद्ध है #ब्रह्मा_जी के कारण। आपके कर कमलों से ही यह शुभ कार्य होना है प्रभु!"
"वचनबद्धता?...कैसी वचनबद्धता हनुमान?बाली के मध्य ब्रह्मा जी का प्रवेश क्यों? मुझे बताओ।"श्रीराम ने #प्रश्न किया।
"प्रभु आप तो #सर्वव्यापक और #सर्वज्ञाता हैं।#ब्रह्मांड में ऐसा कुछ घटित हो ही नहीं सकता जो आप से अदृश्य रह सके इसलिए.....।"हनुमान की बातों का आशय समझते हुए श्रीराम ने हनुमान को रोकते हुए कहा-
"यह बात अलग है हनुमंत मगर #देव भी तो कभी कभी #सोते हैं, ज्ञात है न तुम्हें? इसलिए अपने मुखारबिंद से सारा वृत्तांत कहो।"
"जैसी आज्ञा प्रभु!हे जगन्नाथ,सुग्रीव और बाली दोनों ब्रह्मा के औरस ( #वरदान_द्वारा_प्राप्त ) पुत्र हैं।
ब्रह्मा जी द्वारा बाली को वरदान प्राप्त था कि जो भी उससे युद्ध करने उसके सामने आएगा उसकी #आधी_शक्ति बाली में समाहित हो जाएगी। #इसीलिए बाली को #अजेय कहा जाता है।"
कुछ पल के लिए हनुमान ने अपनी वाणी को विश्राम देकर पुनः कहा-"इस वरदान को प्राप्त कर बाली #अभिमान_का_पर्याय बन गया प्रभु।उसका अभिमान तब और विस्तार पा गया जब त्रिलोक विजेता रावण से युद्ध में उसने रावण को परास्त कर अपनी #कांख(बगल) में धारण कर छह महीने तक पूरी दुनिया में भ्रमण किया।तबसे बाली अपने आपको संसार का सबसे बड़ा योद्धा समझने लगा है और उसका यही अभिमान उसकी सबसे #बड़ी_त्रुटि बन गया।"
"अपनी शक्ति से गर्वित एक दिन बाली एक जंगल मे पेड़ पौधों को तिनके के समान उखाड़ कर फेंक रहा था;अमृत समान जल के सरोवरों को मिट्टी से कीचड़ करते हुए बार बार #देव और #नरों को अपने से युद्ध करने की चुनोती दे रहा था।हे त्रिलोकीनाथ! संयोगवश उस समय जंगल में आपका यह सेवक आपके नाम के उच्चारण में लीन था।"कहकर हनुमान ने प्रभु श्रीराम के चरणों में अपना सिर झुका लिया।
हनुमान ने प्रसंग को आगे विस्तार देते हुए कहा-"बाली के इस #अनैतिक व #अमर्यादित कृत्य से मेरे 'राम_नाम' के जाप में विघ्न हो गया तो मैंने बाली के सामने जाकर अनुरोध किया- हे परमवीर, हे ब्रह्मांश, हे राजकुमार बाली( तब बाली किष्किंधा के युवराज थे)आप इस शांत जंगल को अपनी शक्ति के अभिमान की अग्नि में क्यों जला रहे हैं?अमृत समान सरोवरों को क्यों दूषित कर रहे हैं? प्रकृति से दुर्व्यवहार की सजा सदियों को भुगतना पडती है।इससे तुम्हे क्या प्राप्त होगा?क्यों प्रकृति के प्रकोप का भाजन और कारण बनना चाहते हो? इसलिए हे कपि राजकुमार, अपनी शक्ति के घमंड को शांत कर 'राम नाम' का जाप करो।इससे तुम्हारे मन में अपने बल का भान नही होगा और *राम नाम* के जाप से तुम्हारे इहलोक और परलोक दोनों ही सुधर जाएंगे।"
हनुमान ने आगे बताया-"अपने बल के मद चूर बाली ने मुझसे कहा-ए तुच्छ वानर!राजकुमार बाली को ज्ञान मत दे।शक्ति के समक्ष हर ज्ञान व्यर्थ होता है। मेरी हुंकार से विशालकाय पर्वत भी खण्डहर बन जाते हैं।है कौन यह राम? कैसा है,कहां रहता है? मैंने तो कभी इसका नाम सुना नहीं किसी के मुख से। मैंने उसे बताया कि अपरंपार महिमा के स्वामी 🏹प्रभु_श्रीराम तीनो लोकों के स्वामी है। भगवान श्रीराम उस सागर के समान हैं जिसकी एक बूंद पाकर मानव #भवसागर से पार हो जाता है।मेरे ज्ञान को सुनकर क्रोधित बाली बोल उठा- इतना ही महान है🥀राम ...तो बुला अपने उस महान राम को। मैं भी उसकी भुजाओं के बल को तौल कर देखूं।"
कौशल्या-नंदन बहुत ही तन्मयता से हनुमान के प्रसंग को सुन रहे थे! उसी तन्मयता में उनके मुख से उच्चरित हो गया-"आगे बोलो महावीर!"
हनुमान ने आगे कहा-"प्रभु,बाली के कठोर वचन सुनकर मेरा क्रोध अंकुरित हो उठा तो मैंने उसकी चेतना को झंकृत करने के उद्देश्य से कहा-श्रीराम तो समय आने पर तुम्हारे सामने आएंगे अहंकारी बाली,इस समय उनका एक *तुच्छ_सेवक* तुम्हारे समक्ष है पहले उससे ही संग्राम कर लो।अहंकार में चूर बाली मुझसे युद्ध को तैयार होकर बोला-उचित है।कल नगर के मध्य हमारा युद्ध होगा।"
🏹मर्यादा_पुरुषोत्तम_श्रीराम ने सब कुछ जानते हुए भी अनजान बनने के प्रयास में हनुमान जी का उत्साह बढाया-"प्रिय वीर हनुमान,क्या तुम्हें बाली के समक्ष अपनी शक्ति के आधा हो जाने का भय नहीं सताया?आगे कहो ... फिर क्या हुआ?देखो,... सभी जिज्ञासा से तुम्हें देख रहे हैं।"
हनुमान जी ने एक बार सभी को निहारते हुए आगे बताया- "प्रभु,जिस पर प्रभु की कृपा हो, विश्वास हो उसके निकट भय आ ही नहीं सकता।बाली नगर में इस युद्ध की घोषणा कराने चला गया तो मैं अपने आराध्य की उपासना में संलग्न हो गया। अगले दिन तय समय पर मैं युद्ध के उद्देश्य से जब अपने घर से गमन कर रहा था तभी मेरे सामने 🌸ब्रह्मा_जी प्रगट हुए। सृष्टि के रचियता को अपने सम्मुख पाकर मैंने उन्हें सादर प्रणाम करते हुए निवेदन किया- हे जगत पिता,एक तुच्छ वानर के घर आपका आगमन किस प्रयोजन से हुआ है? आदेश किया होता तो मैं स्वयं आपकी सेवा में उपस्थित हो जाता।"
ब्रह्मा जी ने मुझसे कहा -" हे पवनपुत्र, हे शिवांश, हे अंजनि सुत, हे राम भक्त हनुमान....पुत्र बाली को उसकी उद्दंडता और असभ्यता के लिए क्षमा करते हुए युद्ध के लिए प्रस्थान मत करो।"
ब्रह्मा जी के अनुरोध को सुनकर मैंने उनके समक्ष अपना पक्ष रखते हुए कहा-"हे प्रभु,बाली ने यदि मात्र मेरा अपमान किया होता तो मेरे पास उसके लिए 🌷क्षमादान सुरक्षित है मगर अभिमानवश उसने मेरे आराध्य प्रभु श्रीराम का अनादर किया है।अब वह क्षमा का नहीं दण्ड का अधिकारी है।मात्र मेरे बारे में कहा होता तो मैं उसे क्षमा कर देता।यदि आज मैं उसकी चुनौती से मुख मोड़ लूं तो सारी सृष्टि में यह संकेत जाएगा कि कायर हनुमान एक बलवान योद्धा से भयातुर हो गया।मेरा पक्ष सुन ब्रम्हा जी ने कहा-यदि ऐसा है महावीर तो मेरा एक निवेदन स्वीकार कर लो कि युद्धस्थल पर अपनी शक्ति का 🔥दशांश🔥 ही लेकर जाना, अपनी शक्ति के शेष भाग को अपने आराध्य के चरणों में रख जाना। ब्रह्मा जी का अपमान हो यह मैं कैसे स्वीकार कर सकता हूं? उनके मान की रक्षा के लिए मैं अपनी शक्ति का दशांश लेकर युद्धस्थल पर पहुंच गया।"इतना कहकर हनुमान ने अपने आराध्य को निहारा तो पाया कि श्रीराम तो उन्हीं की ओर देख रहे हैं।
हनुमान को अपनी ओर निहारते देख भगवान ने कहा- "आगे का वृत्तांत कहो केसरी नंदन!"
हनुमान जी ने आगे बताया-" हे दयासिंधु, वहां पहुंचने पर मैंने युद्ध के लिए ललकारते बाली को पाया।सारा नगर दो महायोद्धाओं के संग्राम को देखने के लिए व्यातुर था।बाली की ललकार पर मैं अखाड़े में पांव रखकर उसके सम्मुख खड़ा हुआ तो मेरी आधी शक्ति उसमें समाहित हो गई।मेरी शक्ति बाली के शरीर में समाहित हुई तो उसके शरीर में बदलाव आरंभ होने लगे। शक्ति का अथाह सागर हिलोरें लेने लगा उसके शरीर में, शक्ति से विस्तारित शरीर को चीरकर रक्त बहने लगा।अचंभित बाली बस अपने ही शरीर को देख रहा था, उसके बदलाव को देख रहा था।वह समझ ही नहीं पा रहा था कि उसके साथ हो क्या रहा है?
तभी वहां बाली के समक्ष प्रकट हुए 🥀ब्रह्मा जी ने उसे समझाया- समय व्यर्थ किए बिना अविलंब यहां से बहुत दूर चले जाओ पुत्र वरना अनहोनी तुम्हारे अभिनंदन के लिए तैयार है। 🌀किंकर्तव्यविमूढ़ बाली अपनी दयनीय दशा और ब्रह्मा जी के वचन का आश्य समझ वहां से कहीं दूर निकल जाने के उद्देश्य से भाग दिया।शरीर से बहता रक्त उसके जाने की दिशा की चुगली कर रहा था। दूर......दूर.......और ज्यादा दूर फिर थक कर गिर पड़ा बाली।होश आया तो उसने अपने सामने फिर ब्रह्मा जी को पाया तो अवाक् बाली के मुख से निकला-यह सब क्या हो रहा है मेरे साथ?ब्रह्मा जी ने बाली को जब सारा वृत्तांत बताया तो वह विस्मित हो गया।"
"सृष्टि के रचनाकार ब्रह्मा जी ने क्या कहा बाली से, अतुलित बलधाम?"सहजता की प्रतिमूर्ति बने सुमित्रानंदन लक्ष्मण ने जिज्ञासावश हनुमान जी से प्रश्न किया।
"ब्रह्मा जी ने बाली को बताया कि किस तरह उन्होंने मुझे अपनी शक्ति का दशमांश ही ले जाने को राजी किया।ब्रह्मा जी ने बाली से कहा-पुत्र! यदि पवनपुत्र अपनी शक्ति का मात्र दसवां हिस्सा न लेकर अपनी संपूर्ण शक्ति के साथ तुम्हारे सामने आते तो कल्पना करो कि तुम्हारी दशा क्या होती? उनके बल का आधा हिस्सा पाकर तुम्हारा शरीर उसे न सहकर टुकड़ों में उसी पल विभक्त हो जाता और तुम्हरा वरदान तुम्हारे लिए अभिशाप बन जाता।यह सब सुनकर बाली सर्दी में भी पसीने-पसीने हो गया और मैं कुछ दूर एक पेड़ पर बैठा सब सुन रहा था।ब्रह्मा जी ने आगे कहा-पुत्र पवनपुत्र से मैंने वचन ले लिया है। तुम्हें ध्यान रखना होगा कि हनुमान तुमसे कभी रुष्ट न हों। तुम भी बजरंगबली के आराध्य की उपासना कर उनसे अपनी मुक्ति का वरदान प्राप्त करो। तभी से बाली को आपकी प्रतीक्षा है प्रभु।अब समय आ गया है उसकी मुक्त का प्रभु।" कहकर हनुमान अविचल भाव से हाथ जोड़कर अपने आराध्य के समक्ष नतमस्तक हो गए।
🏹❗🏹*जय श्री राम जय श्री राम,*🏹❗🏹
🚩❗🚩*पवनपुत्र हनुमान की जय*,🚩❗🚩
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